देश में निजी चुंगी ठेका का ऐतिहासिक फैसला करनेवाले महापौर
1986 में बचाए थे अमरावतीवासियों के 5.5 करोड
* डॉ. शेखावत ने किए थे जनहित में साहसी निर्णय
अमरावती/ दि. 24-90 वर्षीय डॉ. देवीसिंह रामसिंह शेखावत के पुणे में अंतिम सांस लेने की खबर पर अमरावती के अनेक वरिष्ठ जन गमगीन हो गए. डॉ. शेखावत के भूतकाल में किए गए कार्यो और किस्सों का बखान करने लगे. अनेक ने डॉ. शेखावत की बदौलत अमरावती स्टेशन बचने तथा उसके मॉडल स्टेशन बनने के योगदान का गौरवपूर्ण जिक्र किया तो उससे भी पहले अमरावती की जनता के हित में अनेक साहसी निर्णयों का भी लोगों ने स्मरण करवाया. मनपा की आमदनी बढाने के लिए देश में पहली बार चुंगी ठेके के निजीकरण का फैसला डॉ. शेखावत ने महापौर के रूप में लिया था. ऐसे ही अमरावती की प्रगति हेतु कई निर्णय उन्होंने करवाए. अमरावती विश्वविद्यालय एवं नवोदय विद्यालय की स्थापना भी शेखावत के प्रयत्नों से हुई थी.
अनुशेष दूर करने सहयोग
विधान परिषद के लंबे समय तक माननीय सभासद रहे प्रा. बीटी देशमुख ने डॉ. शेखावत के अनेक अवसरों पर योगदान और प्रखर भूमिका को याद किया. उन्हाेंंने अमरावती मंडल से बातचीत में 1986 का किस्सा शेयर किया. बीटी ने बताया कि 14 अक्तूबर 1986 को राज्य शासन का निर्णय आ गया. अमरावती की 55 करोड की जलापूर्ति योजना मंजूरी हेतु 10 प्रतिशत रकम जन चंदे से लेने का निर्णय था. जिसका स्वयं बीटी ने विरोध किया. किंतु डॉ. शेखावत ने भी सत्तापक्ष का दबाव दरकिनार कर जनहित में भूमिका रखी. बीटी बताते है कि जलापूर्ति योजना हेतु 29 अप्रैल 1987 के आंदोलन में कांग्रेस विधायक के रूप में डॉ. शेखावत ने जनता का साथ देने का ऐलान 14 अप्रैल को पत्रकार परिषद लेकर कर दिया था. इतने पर ही शेखावत नहीं रूके. बीटी बताते है कि 27 अक्तूबर 1986 से लेकर 26 अक्तूबर 1987 का दौर अतिरिक्त जलापूर्ति योजना हेतु बहुत हडबडी का कहा जा सकता है. उस समय मनपा और विद्यापीठ की घोषणा एवं स्थापना हो गई थी. शेखावत सत्तापक्ष के विधायक थे.
बीटी ने बताया कि सरकार ने निर्णय जारी कर दिया था. अमरावती मनपा को अतिरिक्त जलापूर्ति के लिए 5 से 8 करोड रूपए जन चंदे के जमा करवाना था. नहीं तो जलापूर्ति योजना गर्त में चली जाती. ऐसे में जिला नियोजन समिति की बैठक आहूत की गई. बीटी के अनुसार इस बैठक में उन्होंने जलापूर्ति में जन चंदे की शर्त रद्द करने का प्रस्ताव रखने का विचार किया था. उन्हें डॉ. शेखावत की भूमिका का एहसास न था. डॉ. शेखावत पर सत्तापक्ष का बडा दबाव था. उन्हें कहा जा रहा था कि बीटी के प्रस्ताव पर वे अनुमोदक के रूप में दस्तखत न करें. किंतु बीटी को बडा सुखद धक्का लगा. शेखावत ने अपने वरिष्ठों को दो टूक संदेश भेज दिया. अपने शहर की जनता के हित में उन्होंने बीटी के प्रस्ताव पर अनुमोदक के रूप में सही कर दी है. अब वे इससे पीछे नहीं हटेंगे. बीटी बताते है कि 23 दिसंबर 1986 की बैठक में वह प्रस्ताव एक मत से मंजूर हो गया. अमरावती के लोगों के 5 से 8 करोड रूपए बचा लिए गए. बीटी आज भी इस बात के लिए डॉ. शेखावत की प्रशंसा करते हैं. बीटी ने अमरावती संभाग के अनुशेष दूर करने की लडाई में भी डॉ. शेखावत के योगदान का उल्लेख किया. उन्होंने कहा कि बैकलॉग की कमर तोडने के प्रयत्न में डॉ. शेखावत का सदैव सहयोग मिला. उल्लेखनीय है कि बीटी ने उच्च सदन को विदर्भ के बैकलॉग के मुद्दे पर हिला कर रखा था.
प्रथम महापौर के रूप में भी डॉ. शेखावत ने अमरावती-मनपा को काम की अनुशासनबध्द लाइन लगाई. उनके दौर में देश में पहलीबार चुंगी ठेका का निजीकरण का निर्णय किया गया. जो कालांतर में मनपा के लिए बडा लाभदायी सिध्द हुआ था. मनपा को 30-40 करोड की बैठे बिठाए कमाई का जरिया डॉ. शेखावत ने दे दिया था. जिससे मनपा अनेक विकास कार्य साकार कर सकी.