मेलघाट व मध्यप्रदेश का पठार खिला जगनी के फूलों से
सतपुडा की पर्वत श्रृंखला में पारंपारिक फसल से फैली पीली चादर
* पर्यटकों के लिए बनी आकर्षण का केंद्र, तिलहन के तौर पर होता है प्रयोग
अमरावती /दि.14– महाराष्ट्र व मध्यप्रदेश की सीमा पर स्थित मेलघाट के पठार पर इन दिनों जगनी के फूलों के खिलने से चहूंओर पीली चादर फैली दिखाई दे रही है, जो इस क्षेत्र से होकर गुजरने वाले यात्रियों को अपनी ओर आकर्षित भी कर रही है. आदिवासियों के लिए पारंपारिक फसल रहने वाली जगनी का प्रयोग तिलहन के तौर पर किया जाता है. यह विशेष उल्लेखनीय है.
बता दें कि, मेलघाट मेें आदिवासी और गवली समाज की अपनी एक अलग संस्कृति है. जिसके तहत पोशाख, बोली भाषा के साथ ही पांरपारिक फसलें भी काफी अलग है. जिसमें से कुछ फसलें तो अब दुर्लभ होती जा रही है. क्योंकि समय बदलने के साथ ही शैक्षणिक रुप से होने वाले बदलाव, प्रकृति की मनमानी और आर्थिक बातों के मद्देनजर अब मेलघाट की धारणी व चिखलदरा तहसील के किसानों द्वारा भी सोयाबीन, गेहूं, मक्का, ज्वार व धान जैसी फसलें ली जाने लगी है. जिसके चलते पौष्टिक रहने वाली पारंपारिक फसले अब दुर्लभ हाती जा रही है.
* ऐसे होती है जगनी की बुआई
मेलघाट में आदिवासी व गवली समाज के किसानों की उंची व ढलान वाली टेकडियों पर पत्थर व मुरुम वाली जमीन पर खेत होते है. जिसमें पारंपारिक के साथ ही अन्य फसलें ली जाती है. इसके तहत 100 से 110 दिन की फसल रहने वाली जगनी की बुआई 25 से 10 जून के दौरान की जाती है और बुआई के 10 दिन पश्चात ही जगनी के पीले फूल खेत में दिखाई देने शुरु हो जाते है. जिसके चलते दूर तक फैली पहाडियों पर हर ओर जगनी के इन्हीं फूलों की पीली चादर फैली दिखाई देती है.
* आयुर्वेदिक इलाज व जानवरों के लिए काम का तेल
जगनी के बीजों से तेल निकाला जाता है, जिसका आयुर्वेद मेें काफी महत्व है. हाथ-पांव एवं जोडों के दर्द पर यह तेल काफी बेहतर उपाय है. साथ ही मेलघाट के आदिवासी एवं गवली इस तेल का प्रयोग भोजन तैयार करने में भी करते है. इस तेल से नवप्रसूता महिलाओं व छोटे बच्चे की मालिश भी की जाती है एवं पालतू मवेशियों को भी यह तेल पिलाया जाता है, ताकि उन्हें रोगों से दूर रखा जा सके.
* जगनी के साथ ही कोडो, कुटकी व मांडगी हुए दुर्लभ
मेलघाट में किसी समय जगनी के साथ ही कोडों, कुटकी व मांडगी जैसे कई पौष्टिक व सर्वाधिक जीवनसत्व रहने वाले फसलों की खेती किसानी की जाती थी. परंतु मेलघाट व्याघ्र प्रकल्प से वैराट, चूरणी, मेमणा, पस्तलई जैसे कई गांवों का पुनर्वसन हो जाने के चलते अब इन फसलों की खेती का प्रमाण काफी घट गया है. हालांकि पहाड पर रहने वाली चिखलदरा तहसील सहित सतपुडा से सटे मध्यप्रदेश के कुकरु, खामला, देडपानी, काटकुंभ व चुरणी परिसर के प्रत्येक गांव में दो से तीन किसान जगनी सहित अन्य पारंपारिक फसलों की बुआई करते दिखाई देते है.