अमरावती

देश के टॉपटेन में शामिल हुआ मेलघाट

व्याघ्र प्रकल्प को हुए 48 वर्ष पूरे

  • बाघों की संख्या में आयी कमी

अचलपुर प्रतिनिधि/दि.22 – देश के टॉपटेन में शुमार रहनेवाले मेलघाट व्याघ्र प्रकल्प को आज 48 वर्ष पूरे हो चुके है. लेकिन इन 48 वर्षों के दौर में मेलघाट व्याघ्र प्रकल्प को बाघों की कम हो रही संख्या की चिंता सता रही है. इस ओर ध्यान देकर उपाययोजना करने की मांग जोर पकडने लगी है.
यहां बता दें कि, मेलघाट व्याघ्र प्रकल्प की शुरूआत 22 फरवरी 1972 में हुई थी. व्याघ्र प्रकल्प अस्तित्व में आने से पहले मेलघाट के जंगल में 210 बाघों का संचार रहने की आकडेवारी है. लेकिन इसके बाद से प्रतिवर्ष बाघों की संख्या कम होते जा रही है. 125 बाघों की क्षमता रहनेवाले मेलघाट में 55 के आसपास बाघ है. हाल की घडी में 55 बाघ ही मेलघाट में मुक्त संचार कर रहे है. यह जानकारी अमरावती कार्यालय से प्राप्त हुई है. जंगल क्षेत्र में भोजन के लिए पर्याप्त खाद्य नहीं रहने से बाघो की संख्या कम हो रही है. कभी भूखे पेट, तो कभी आधा-अधूरा पेट खाली रहने से मेलघाट के बाघ भोजन की तलाश में अन्य जंगलों में जा रहे है. मेलघाट के रंगूबेली, हरिसाल, सेमाडोह, जारिदा, माखला, सिपना व गूगामल वन्यजीव क्षेत्र के जंगलों का ग्राफ गिरता जा रहा है. जंगल के कुछ हिस्सों में शिकारियों के चलते जंगल का तनाव बढ गया है. बाघों का अधिवास सुरक्षित नहीं रहने से कोकटू अथवा कोअर क्षेत्र के दो-चार हिस्सों को छोड मेलघाट की बाघिन केवल एक-दो शावकों को जन्म दे रही है. यह जानकारी सामने आयी है. वहीं मेलघाट की तुलना में ताडोबा में बाघों की संख्या 3 से 4 होने की जानकारी है.

  • पर्यटकों की संख्या में इजाफा

मेलघाट व्याघ्र प्रकल्प की ओर से पर्यटको के लिए विविध प्रकार की सुविधाएं निर्माण की जा रही है. जिनमें हरिसाल में झोरबीबॉल, आमझरी, एडवेंचर, जंगल सफारी, हाथी सफारी, हाथीबाथ आदि सुविधाएं उपलब्ध कराकर दी गई है. वहीं रहने की सुविधा होने से पर्यटको की संख्या भी मेलघाट में दिन-ब-दिन बढती जा रही है. यह मेलघाट की दृष्टि से राहतवाली खबर है.

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