महायुति व महाविकास आघाडी का ‘मिशन विदर्भ’
वर्हाड की अधिक से अधिक सीटें जीतने की रणनीति
अमरावती/दि.17– इससे पहले कांग्रेस का और अब भाजपा का ‘बालेकिल्ला’ यानि मजबूत गढ रहने की पहचान रखने वाले विदर्भ प्रांत में विधानसभा की 62 सीटें है. जिसमें से अधिक से अधिक सीटों पर जीत हासिल करने वाला दल ही सत्ता स्थापना की प्रक्रिया के समय निर्णायक स्थिति में रहेगा. ऐसे में सत्ताधारी महायुति व विपक्षी गठबंधन महाविकास आघाडी द्वारा अब विदर्भ क्षेत्र की सभी विधानसभा सीटों पर अपना ध्यान केंद्रीत किया गया है.
बता दें कि, महायुति में शामिल अजीत पवार गुट वाली राकांपा और शिंदे गुट वाली शिवसेना का विदर्भ क्षे के कुछ गिने-चुने निर्वाचन क्षेत्रों पर ही थोडा बहुत प्रभाव है. यही स्थिति महाविकास आघाडी में शामिल ठाकरे गुट वाली शिवसेना व शरद पवार गुट वाली राकांपा की भी है. ऐसे में विदर्भ में असली लडाई भाजपा और कांग्रेस के बीच ही होने की संभावना है. जिसके लिए दोनों ही राजनीतिक दलों द्वारा अपनी-अपनी ओर से जमकर तैयारियां की जा रही है.
उल्लेखनीय है कि, विदर्भ क्षेत्र की पहचान किसान आत्महत्याओं के साथ ही औद्योगिक पिछडेपन व बढती बेरोजगारी सहित अन्य कई समस्याओं से ग्रस्त क्षेत्र के तौर पर रही है. साथ ही इस क्षेत्र में जातीय राजनीति का भी अच्छा खासा प्रभाव है. पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के दिक्कत में रहते समय विदर्भ क्षेत्र ने ही कांग्रेस को जबर्दस्त साथ दिया था. लेकिन वर्ष 2009 के बाद भाजपा ने ओबीसी नेताओं के जरिए इस क्षेत्र में अपनी जडों को मजबूत करने का प्रयास करना शुरु किया और अब भाजपा भी विदर्भ क्षेत्र में काफी मजबूत हो गई है.
ज्ञात रहे कि, विदर्भ क्षेत्र में कुल 11 जिले है. जिनका पूर्वी विदर्भ व पश्चिमी विदर्भ के तौर पर दो हिस्सों में विभाजन किया गया है. इसके तहत अमरावती संभागीय मुख्यालय रहने वाले पश्चिमी विदर्भ में अमरावती सहित अकोला, यवतमाल, वाशिम व बुलढाणा इन पांच जिलों का समावेश है. वहीं नागपुर संभागीय मुख्यालय रहने वाले पूर्वी विदर्भ में नागपुर सहित वर्धा, चंद्रपुर, भंडारा, गोंदिया व गडचिरोली इन 6 जिलों का समावेश किया गया है. इन सभी 11 जिलों में विधानसभा की कुल 62 सीटें है. जिसमें से 30 सीटें पश्चिम विदर्भ में और 32 सीटें पूर्वी विदर्भ में है. यदि विधानसभा सीटों का जिला निहाय विचार किया जाये, तो पश्चिमी विदर्भ के अमरावती जिले में 8, बुलढाणा जिले में 7, यवतमाल जिले में 7, अकोला जिले में 5 व वाशिम जिले में 3 विधानसभा सीटेें है. वहीं पूर्वी विदर्भ के नागपुर जिले में 12, चंद्रपुर जिले में 6, वर्धा जिले में 4, गोंदिया जिले में 4, भंडारा जिले में 3 व गडचिरोली जिले में 3 सीटें है.
बता दें कि, वर्ष 2014 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने विदर्भ क्षेत्र की 62 मेें से 42 सीटें जीती थी और इसके बाद वर्ष 2014 से 2019 तक विदर्भ क्षेत्र से वास्ता रखने वाले देवेंद्र फडणवीस ही राज्य के मुख्यमंत्री थे. परंतु वर्ष 2019 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को विदर्भ क्षेत्र में अपेक्षित सफलता नहीं मिली और 62 मेें से केवल 29 सीटों पर ही भाजपा चुनाव जीत पायी. वहीं उस समय चारों ओर से दिक्कतों में फंसी रहने वाली कांग्रेस व राकांपा ने शानदार प्रदर्शन करते हुए विदर्भ क्षेत्र की 21 सीटों पर जीत हासिल की थी. जिसमें कांग्रेस की 15 व राकांपा की 6 सीटों का समावेश था. विदर्भ क्षेत्र में भाजपा को हुए इसी नुकसान का खामियाजा भाजपा को आगे चलकर उठाना पडा था और भाजपा के हाथ राज्य की सत्ता आते-आते रह गई थी तथा राज्य में हुए बडे उलटफेर के बाद महाविकास की सरकार बनी थी. हालांकि आगे चलकर भाजपा ने बडा उलटफेर करते हुए महाविकास आघाडी के कब्जे से सत्ता छीनी और शिंदे गुट वाली शिवसेना का साथ लेते हुए राज्य मेें महायुति की सरकार बनाई. ऐसे में अब सत्ताधारी महायुति व विपक्षी गठबंधन महाविकास आघाडी द्वारा विदर्भ क्षेत्र की अधिक से अधिक सीटों पर जीत हासिल करने की रणनीति बनाई जा रही है, ताकि विदर्भ के रास्ते से होकर राज्य की सत्ता को हासिल किया जा सके.
* लोकसभा के समय मविआ रही आगे
राज्य में उद्धव ठाकरे के नेतृत्ववाली महाविकास आघाडी की सरकार के गिरने के बाद एक बार फिर राज्य में भाजपा के नेतृत्ववाली महायुति की सरकार बनी. परंतु तोडफोड वाली राजनीति, बढती बेरोजगारी व कृषि उपज को दाम नहीं मिलने की वजह से सरकार के खिलाफ आमजनमानस में काफी हद तक नाराजगी देखी जाने लगी. जिसका असर वर्ष 2024 के संसदीय चुनाव में दिखाई दिया और भाजपा को विदर्भ की 10 संसदीय सीटों में से केवल तीन सीटों पर ही जीत हासिल हुई. जबकि महाविकास आघाडी को 7 सीटों पर सफलता मिली. इसे देखते हुए माना जा रहा है कि, अब महाविकास आघाडी को विधानसभा चुनाव में काफी हद तक आसानी होगी.
* हालांत में हो रहे बदलाव
लोकसभा चुनाव में हुई हार के बाद महायुति सरकार द्वारा लिये गये लोकप्रिय निर्णय के चलते अब ग्रामीण क्षेत्र में काफी हद तक हालांत बदलते नजर आ रहे है. विदर्भ में ओबीसी मतदाताओं की संख्या काफी अधिक है, जिनका रुझान भाजपा की ओर है. परंतु वे लोकसभा चुनाव के समय महाविकास आघाडी की ओर चले गये थे. ऐसे में ओबीसी मतदाताओं को दोबारा अपने साथ बोलने के लिए भाजपा द्वारा तमाम प्रयास किये जा रहे है. इसके अलावा आदिवासी व अन्य समाजों को अपने साथ लेने के लिए भी भाजपा के नेतृत्ववाली महायुति सरकार ने विविध महामंडलों के गठन की घोषणा की है. जिसका फायदा इस चुनाव में भाजपा को हो सकता है. वहीं दूसरी ओर महाविकास आघाडी में शामिल रहने वाले कांग्रेस, शरद पवार गुट वाली राकांपा व शिवसेना उबाठा द्वारा सरकारी योजनाओं में रहने वाली कमियों को मतदाता के सामने रखते हुए लोकसभा चुनाव की तरह माहौल बनाये रखने का प्रयास किया जा रहा है.
* सीटों के बंटवारे में दिक्कतें
मविआ के तहत कांग्रेस ने विदर्भ में सर्वाधिक सीटों पर चुनाव लडने का निर्णय लिया है. वर्ष 2019 में विदर्भ की 4 सीटों पर तत्कालीन एकीकृत शिवसेना ने जीत हासिल की थी. वहीं अब ठाकरे गुट वाली शिवसेना द्वारा मविआ के तहत खुद के लिए 20 सीटेंं मांगी जा रही है. इसके अलावा पिछली बार एकीकृत राकांपा ने विदर्भ क्षेत्र की 6 सीटें जीती थी और अब मविआ में शामिल रहने वाली राकांपा द्वारा कुछ सीटोंं की अदलाबदली किये जाने की मांग की जा रही है. वहीं दूसरी ओर शिंदे गुट वाली शिवसेना और अजीत पवार गुट वाली राकांपा की ताकत विदर्भ क्षेत्र के केवल कुछ निर्वाचन क्षेत्रों तक ही सीमित है. ऐसे में इन दोनों दलों के मौजूदा विधायकों वाले निर्वाचन क्षेत्रों के अलावा इन दोनों दलों को अतिरिक्त सीटें मिलना काफी मुश्किल है. जिसके चलते विदर्भ में मुख्य मुकाबला भाजपा और कांगे्रस के बीच ही होने के प्रबल आसार है. वहीं विदर्भ की 62 सीटों में से जिस पार्टी को सर्वाधिक सीटें मिलेंगी. वहीं पार्टी सत्ता स्थापना में निर्णायक भूमिका निभाने की स्थिति में रहेगी. जिसके चलते विदर्भ क्षेत्र के चुनावी नतीजे काफी महत्वपूर्ण रहेंगे.