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भाजपा की बैठक में ‘राणा’ के प्रति मिलाजुला रूख

पार्टी अगर पत्थर को भी सिंदूर लगाकर दें तो चुनकर लाना हैं- पोटे

* वह हमारे पोस्टर बैनर फाडते हैं, हम उनका काम कैसे करें- भारतीय
अमरावती/ दि. 19 – आगामी लोकसभा चुनाव में अमरावती संसदीय सीट पर महायुति की ओर से भाजपा का प्रत्याशी रहना लगभग तय माना जा रहा हैं. साथ ही इस बात के भी पूरे आसार दिखाई दे रहे है कि जिले की मौजूदा सांसद नवनीत राणा को भाजपा द्बारा पार्टी प्रत्याशी बनाया जाए. इसके लिए नवनीत राणा को अधिकृत तौर पर भाजपा में प्रवेश करना होगा. जिसे लेकर काफी हद तक गतिविधियां तेज चल रही हैं. साथ ही यदि किसी कारणवश ऐसा नहीं हो पाता है तो उस सूरत में नवनीत राणा निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनावी मैदान में उतरेगी और उन्हें एनडीए के घटक दल का प्रत्याशी मानते हुए भाजपा सहित अन्य सहयोगी दलों द्बारा समर्थन दिया जायेगा. ऐसी संभावनाएं बनती दिखाई दे रही है. परंतु यहां पर इस तथ्य की अनदेखी नहीं की जा सकती है कि यद्यपि सांसद नवनीत राणा व विधायक रवि राणा द्बारा भाजपा के प्रादेशिक व राष्ट्रीय नेताओं के साथ मिलकर टिकट एवं समर्थन के लिए कितने ही उठापटक क्यों न कर ली जाए. लेकिन स्थानीय स्तर पर राणा दंपत्ति और भाजपा पदाधिकारियों के बीच छत्तीस का आंकडा है. स्थानीय स्तर पर भाजपा का शायद ही कोई ऐसा पदाधिकारी हो जो राणा दंपत्ति के पक्ष में खडा दिखाई दे सके. ऐसे में यदि सांसद नवनीत राणा को भाजपा के वरिष्ठ नेताओं द्बारा एनडीए या भाजपा के प्रत्याशी के तौर पर मैदान में उतारा जाता है तो यह राणा दंपत्ति सहित भाजपा के स्थानीय नेताओं के लिए सांप-छंछूदर वाली स्थिति हो जायेगी. क्योंकि उस सूरत में दोनों को ही न उगलते बनेगा और न ही निगलते बनेगा.
बेहद विश्वसनीय सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक भाजपा में स्थानीय स्तर पर सामने आ सकने वाली ऐसी ही संभावित स्थितियां को ध्यान में रखते हुए गत रोज भाजपा के शहराध्यक्ष व विधायक प्रवीण पोटे पाटिल के आवास पर स्थानीय भाजपा पदाधिकारियों की एक बैठक बुलाई गई थी. जिसमें पार्टी के लिए मायक्रो फायनेंस के जरिए रकम संकलित करने के बाद में विचार विमर्श करने के साथ- साथ आगामी लोकसभा चुनाव को लेकर सामने आनेवाली ‘अगर-मगर’ वाली स्थिति से कैसे निपटा जाए और उस स्थिति में क्या किया जाए. इस पर भी विचार विमर्श किया गया. इस समय जहां एक ओर भाजपा का शहराध्यक्ष होने के नाते पूर्व पालकमंत्री और विधायक प्रवीण पोटे पाटिल का कहना रहा कि भाजपा में पार्टी का आदेश ही सर्वोपरि होता हैं. ऐसे में इधर उधर एवं पुरानी बातों को लेकर माथाफोडी करने की बजाय पार्टी की ओर से जो भी आदेश आयेगा. उसका पालन करना ही पार्टी जनों की पहली प्राथमिकता रहेगी. वहीं दूसरी ओर इस बैठक में शामिल पार्टी के कई वरिष्ठ पदाधिकारियों का कहना रहा कि बात इक्का- दुक्का मौकों की नहीं हैं. बल्कि वर्ष 2014 से लेकर अब तक राणा दंपत्ति ने कई बार अलग- अलग मौको पर भाजपा के तमाम छोटे व बडे नेताओं का अपमान किया है. वर्ष 2014 एवं 2019 के लोकसभा चुनाव द्बारा कांग्रेस और राकांपा की ओर से प्रत्याशी रहते हुए नवनीत राणा ने सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधा था. हालांकि बाद में वे और उनके पति अपने फायदे के लिए भाजपा और पीएम मोदी के सामने नतमस्तक हो गये. लेकिन स्थानीय स्तर पर राणा दंपत्ति की भाजपा पदाधिकारियों से कभी नहीं बनी. इस समय कई भाजपा पदाधिकारियों ने उस प्रसंग का भी उल्लेख किया. जब विधायक प्रवीण पोटे के जिला पालकमंत्री रहते समय विधायक रवि राणा ने उनका ‘बालकमंत्री’ कहकर मजाक उडाया था. साथ ही मनपा के पूर्व सभागृह नेता तुषार भारतीय सहित अन्य कुछ पूर्व पार्षदों एवं पदाधिकारियों का कहना रहा कि विधायक रवि राणा द्बारा हमेशा से ही भाजपा पार्षदों के विकास कामों का श्रेय लूटने का काम किया जाता था. जिसके लिए विधायक रवि राणा व उनके लोग हमेशा ही भाजपा पार्षदों द्बारा लगाए जानेवाले बैनर और पोस्टर को फाड दिया करते थे. ऐसे में अब राणा दंपत्ति के लिए काम करने की मानसिकता भाजपा पदाधिकारियों में नहीं.
े बैठक में मौजूद एक सूत्र ने यहां तक बताया कि कुछ भाजपा पदाधिकारियों ने तो पार्टी के शहराध्यक्ष प्रवीण पोटे के सामने यह तक कह दिया कि भले ही नवनीत राणा अपने लिए पार्टी का टिकट हासिल करने लेकिन पार्टीजनों का समर्थन उन्हें कदापि नहीं मिलनेवाला हैं. क्योंकि राणा दंपत्ति ने स्थानीय स्तर पर पार्टीजनों को काफी आहत करने का काम किया हैं. ऐसे में यदि पार्टी द्बारा राणा दंपत्ति को टिकट देकर पार्टीजनों पर उनके पक्ष में काम और प्रचार करने का दबाव भी बनाया जाता हैं. हो सकता है कि कुछ पार्टीजन अपने पद की जिम्मेदारी के चलते राणा के साथ खडे दिखाई दें, लेकिन वे राणा के लिए दिल से काम और प्रचार करेंगे ही, यह जरूरी नहीं.
इसके साथ ही इस बैठक में उपस्थित एक भाजपा पदाधिकारी का यह भी कहना रहा कि इससे पहले भी ऐसा हो चुका हैं. जब नवनीत राणा ने राकांपा की प्राथमिक सदस्यता ली थी. लेकिन इसके बावजूद भी युवा स्वाभिमान पार्टी की मार्गदर्शिका भी बनी हुई थी. आगे चलकर इसका नतीजा क्या हुआ. यह सभी को पता है. ऐसे में उस नतीजे से सबक लेते हुए भाजपा को चाहिए कि राणा दंपत्ति को युवा स्वाभिमान पार्टी का भाजपा में पूरी तरह से विलय करने हेतु राजी किया जाए. अन्यथा एक पांव इधर और दूसरा पांव उधर रहनेवाली स्थिति के चलते राणा दंपत्ति द्बारा भाजपा के साथ भी पुरानी कहानी को दोहराय जाने का पूरा खतरा हैं.
कुल मिलाकर गत रोज पार्टी को मायक्रो फायनेंस के जरिए धनराशि उपलब्ध कराने हेतु बुलाई गई बैठक में मायक्रो फायनांस के साथ साथ आगामी चुनाव व संभावित राजनीतिक स्थिति को लेकर भी चर्चा हुई. जिसमें महायुति की ओर से सांसद नवनीत राणा की संभावित दावेदारी को लेकर एक तरह से मिला जुला और काफी हद तक विरोधी माहौल दिखाई दिया.

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