अमरावती

हम जितना सोचते है, उससे अधिक माता-पिता एवं गुरूदेव ने हमें संस्कार दिए है

संत श्री डॉ. संतोषजी महाराज के कथन

गुरूदेव ने दिया है
अमरावती/दि. 21-स्थानीय पूज्य शिवधारा आश्रम, सिंधु नगर में शिवधारा झूलेलाल चालिहा के उपलक्ष्य में सुबह के सत्संग के पांचवे दिवस परम पूज्य संत श्री डॉ. संतोषजी महाराज ने अपने प्रवचन में कहा कि हम जितना अपने माता-पिता, अपने बुजुर्गो, अपने शिक्षको एवं सद्गुरूदेव भगवानजी के लिए सोचते हैं, उन्होंने हमें उससे बहुत अधिक दिया है. जैसे कि माता पिता ने केवल हमारी परवरिश की है. हमें पढाया- लिखाया है, हमें घर दिया, हमारी सगाई- विवाह करवाया, लेकिन उससे अधिक उन्होंने जो हमें संस्कार दिए हैं, वह उन सबसे अधिक मूल्यवान है, जैसे शिक्षक हमें पढना-लिखना सिखाते हैं, भले उनको उनका वेतन हमारे परिवार या सरकार की ओर से मिलता है, लेकिन इससे अधिक जो जीवन के मूल्यों के संदर्भ मेंं समझाते हैं, व उससे बहुत अधिक है. उन्होंने बताया कि सदगुरूदेव भगवान की शरणागति में जाने से उनकी कृपा से ना सिर्फ हमारे दु:ख कटते हैं, सुख में वृध्दि होती है. लेकिन वह आनंदमय जीवन जीने की कला भी सिखाते है. साथ ही जीते जी मरने, मर कर फिर अमर होने की कला भी सिखाते है. हमारे शरीर का अंत कैसे अच्छा हो, ऐसी भी शिक्षा देते है और हमारा परलोक कैसे संवरेगा, उस संदर्भ में भी समझाते है. यह उनका अपने भक्तों पर बढा ऋण है. इन सब के लिए हमें सदैव कृतज्ञता व्यक्त करते रहना चाहिए और कभी भी हम इन ऋणों को भुला नहीं सकते.
उन्होंने उदाहरण दिया कि, स्वामी विवेकानंद महाराज जी ने एक बार अपनी मां से पूछा, सूना है भगवान है वह मिलते है, मां वह कैसे मिलेंगे? तब उनकी मां ने कहा तुम बैठकर ओम नम: शिवाय का जाप करो, धीरे-धीरे तेरी आंतरिक उन्नति होगी, आगे चलकर उनको ब्रह्म ज्ञानी संत स्वामी रामकृष्ण परमहंस जी भले मिले थे, लेकिन फिर भी उनके हृदय में भक्ति का बीजरोपण करनेवाली उनकी मां थी, वैसे ही आज के माता-पिता को भी अपने बच्चों को अच्छाई, सच्चाई, धर्म, राष्ट्र एवं भक्ति के संदर्भ में प्रेरित करने के लिए वैसा दिखाना, सुनाना एवं वैैसे स्थानों पर लेकर जाना चाहिए.
दूसरे उदाहरण में कहा कि, महात्मा गांधी जी जब विदेश पढाई करने के लिए जा रहे थे, तब उनकी मां ने उनको कहा कि विदेश में मदिरापान होती है और भी कई प्रकार की बुराईयां सुलभता से सामने आएंगी, लेकिन तुझे इन सबसे परे रहना है और मांस आहार से भी खुद को बचाते रहना है. महात्मा गांधीजी ने भी अपनी मां की आज्ञा का पालन किया, इसी तरह हमें भी अपने बच्चों को बाहर पढाई आदि के लिए भेजते समय उनको शिक्षाएं देनी चाहिए और उनको अलग-अलग माध्यमों से याद दिलाते रहना चाहिए. तीसरा उदाहरण दिया कि, 1008 सतगुरू स्वामी शिवभजन जी महाराज जी को उनकी माता बाल्यकाल से ही गुरू स्थान पर लेकर जाती थी और कहती थी कि झाडू लगाओ, जल भरने की सेवा करो और अन्य भी सेवा करवाती थी. उनका नम्रता भरा सेवाभाव देखकर उनके गुरूवार ने एक बार उनको बुलाकर कहा, मैं तुम्हें अपना उत्तराधिकारी बनाना चाहता हूॅ तब सदगुरूदेव भगवानजी ने कहा कि पहले मैं अपनी माता से पूछकर आता हूॅ. इस उदाहरण से भी हमें शिक्षा मिल रही है. कई हजारो भक्त सदगुरूदेव भगवान के आध्यात्मिक एवं सेवा कार्य में आगे बढ रहे है. उनका कहीं तो भी श्रेय उनकी माताजी को भी जाता है. हमें भी वैसे अपने बच्चों को शिक्षित-दीक्षित कराने की धारना बनानी चाहिए. 1008 सतगुरू स्वामी शिवभजन जी महाराज जी की जन्मतिथि 20 सितंबर है. उस अनुसार हर महीने की 20 तारीख को पूज्य शिवधारा आश्रम सिंधु नगर द्बारा हर महिने की 20 तारीख को अनाज किराणा, सब्जियां, दवाइयां एवं जरूरत अनुसार वस्तुएं जरूरतमंदों में बांटी जाती है. यह सेवा बुधवार को भी शिवधारा मिशन फाउंडेशन की ओर से की गई, जिसका लाभ समाज के कई जरूरतमंद भाई बहनों ने लिया.

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