अमरावतीलेख

गुरूतत्व से ओत-प्रोत हैं माऊली सरकार

गुरूपूर्णिमा पर विशेष

कल 13 जुलाई को कौंडण्यपुर के अंबिकापुर स्थित श्री रूख्मिणी विदर्भ पीठ में गुरूपूर्णिमा पर्व के निमित्त अनंत श्री विभूषित जगतगुरू रामानंदाचार्य स्वामी श्री रामराजेश्वराचार्य जी महाराज यानी श्री समर्थ माउली सरकार की प्रमुख उपस्थिति में गुरूपूर्णिमा उत्सव का आयोजन किया जा रहा है. प्रतिवर्ष आयोजीत होनेवाले इस उत्सव में अमरावती जिले सहित राज्य व देश के विभिन्न स्थानों से भाविक श्रध्दालु गुरूपूर्णिमा का उत्सव मनाने के लिए कौंडण्यपुर आते है और बडे भव्य-दिव्य पैमाने पर श्री रूख्मिणी विदर्भ पीठ में गुरूपूर्णिमा का महोत्सव मनाया जाता है. कौंडण्यपुर में श्री रूख्मिणी विदर्भ पीठ की स्थापना करनेवाले पीठाधीश्वर अनंत श्री विभूषित जगतगुरू रामानंदाचार्य स्वामी श्री रामराजेश्वराचार्य जी महाराज को भारतीय अध्यात्मिक, धार्मिक, सामाजिक व सांस्कृतिक क्षेत्र में एक महान व्यक्तित्व कहा जा सकता है, जो अपने आप में गुरू तत्व से ओत-प्रोत है. यही वजह है कि, देश में लाखोें भाविक श्रध्दालुओं द्वारा उन्हें अपना गुरू मानकर आदरवाला स्थान दिया गया है.
बता दें कि, 17 जनवरी 2013 को देश के विभिन्न अखाडों के संतों व महंतों ने महज 30 वर्ष की आयुवाले स्वामीजी को जगतगुरू रामानंदाचार्य पद के लिए पात्र मानते हुए उनकी नियुक्ति को मंजुरी दी. यह अपने आप में एक ऐतिहासिक व अभूतपूर्व घटना है. क्योंकि इससे पहले इतनी कम आयु में बहुजन समाज का कोई भी व्यक्ति जगतगुरू पद पर नियुक्त नहीं हुआ था. जिस समय स्वामीजी का पट्टाभिषेक करते हुए उनकी प्रयागराज के कुंभ मेले में भव्य-दिव्य शोभायात्रा निकाली गई, तो वह क्षण मराठी भाषिकों को लिए गौरवास्पद पल था. साथ ही यह विश्व के धार्मिक इतिहास एवं हिंदू धर्म के लिए एक महत्वपूर्ण घटना थी. बेहद साधे व सरल स्वभाव, निष्कलंक चरित्र तथा अगाध आत्मज्ञान आदि गुणों के चलते स्वामीजी का जगतगुरू रामानंदाचार्य पद के लिए चयन किया गया. इसके साथ ही 300 वर्षों की प्रदीर्घ व उज्वल परंपरा रहनेवाले अमरकंटक स्थित फलहारी मठ के गादीपति के रूप में भी स्वामीजी कार्य करते है. अमरकंटक यह नर्मदा का उगमस्थल रहने के चलते उसे देश में बेहद महत्वपूर्ण स्थान माना जाता है और इस मठ के जरिये आदिवासी विकास का काम बडे पैमाने पर होता है. अमरकंटक के साथ ही ओंकारेश्वर स्थित आश्रम में भी स्वामीजी का काम बेहद महत्वपूर्ण है. जहां पर स्वामीजी द्वारा धर्म जागृति व सामाजिक परिवर्तन आदि कार्य किये जाते है. इसके अलावा उन्होंने विभिन्न मठों का भी निर्माण किया है. जहां पर धार्मिक, सामाजिक, अध्यात्मिक व सांस्कृतिक कार्य बडे पैमाने पर शुरू है.
स्वामीजी स्वयंस्फूर्त प्रज्ञावान, लेखक, वक्ता व कवि है और उनके व्यक्तित्व में संत व महंत का अद्भूत संगम है. उनका स्पष्ट मानना है कि, पूरी दुनिया में हिंदू धर्म ही सबसे प्राचीन एवं सर्वश्रेष्ठ धर्म है और यह धर्म पूरी तरह से मानवतावादी भी है. धर्म जागृति व समाज जागृति को अपना प्रमुख कार्य माननेवाले स्वामीजी बेहद विवेकवादी व बुध्दी प्रामाण्यवादी है तथा वे अंधश्रध्दा, बुआबाजी और चमत्कार का विरोध करते है. समताधिष्ठित समाज का निर्माण करने हेतु स्वामीजी ने अमरकंटक में ग्राम जोडो अभियान जैसे महत्वपूर्ण उपक्रम को शुरू किया है. साथ ही आदिवासियों के सामाजिक, शैक्षणिक, सांस्कृतिक, आर्थिक व धार्मिक विकास का अभियान भी वे चलाते है. इसके अलावा वे ग्रामीण क्षेत्रों के विकास के लिए भी योजनाबध्द तरीके से प्रयास कर रहे है. चंद्रबुध्दी स्तंभ, सामाजिक स्तंभ, शैक्षणिक स्तंभ, औद्योगिक स्तंभ व निर्माण स्तंभ ऐसे पांच स्तंभों के जरिये वे ग्रामीण व आदिवासी विकास एवं समाज जागृति का कार्य करते है. साथ ही उन्होंने आदिवासी संस्कृति व आदिवासी युवाशक्ति को भी संवर्धित किया है. जिसके लिए वे आदिवासी एवं ग्रामीण क्षेत्र में विविध उत्सव एवं क्रीडा स्पर्धाओं का आयोजन करते है. उनके द्वारा किये जानेवाले कार्यों के साथ आज हजारों आदिवासी जुडे हुए है, जो धर्म एवं विकास की मुख्यधारा के साथ जुड रहे है.
प्रज्ञावान प्रतिभा से संपन्न स्वामिजी का व्यक्तित्व विविध क्षमताओं, योग्यताओं तथा शक्तिपूर्ण सिध्दियों से युक्त है. वे किसी वंश परंपरा के जरिये पीठाधिश्वर या जगतगुरू नहीं बने. बल्कि उन्होंने भारतीय एवं वैश्विक स्तर पर अपने आप को इस पद के लिए योग्य साबित करते हुए धार्मिक व अध्यात्मिक क्षेत्र में अपना महत्वपूर्ण स्थान निर्मित किया. जिसका पूरा श्रेय उनकी स्वतंत्र प्रज्ञा, प्रतिभा व तपस्या को दिया जा सकता है. वे एक व्रतस्थ मुनी है. उनका ज्ञान, आत्मज्ञान, प्रतिभा, सेवाभाव तथा आम लोगोें के प्रति उदात्त भावना आदि गुणों के दम पर वे आज अध्यात्मिक, धार्मिक व सामाजिक क्षेत्र में उच्च स्थान प्राप्त व्यक्तित्व है. देश के अध्यात्मिक व धार्मिक क्षेत्र में स्वामिजी का स्थान बेहद आदरणीय व महत्वपूर्ण है. वे देश के सभी धर्म प्रमुखों में अग्र्रज माने जाते है. कुंभ मेले में देश के सभी महत्वपूर्ण संतों, महंता, स्वामियों व पीठाधिश्वरों का समावेश होता है. किंतु इन सभी में माउली सरकार को विशेष सम्मान व आदर दिया जाता है.
अनंत श्री विभूषित जगतगुरू रामानंदाचार्य स्वामी श्री रामराजेश्वराचार्य जी महाराज को जनसामान्यों का मार्गदर्शक कहा जा सकता है. साथ ही वे हिंदू धर्म के धर्ममार्तंडों के भी मार्गदर्शक है. हिंदू धर्माभिमानी रहनेवाले स्वामिजी महान व्रती व योगी है, जो हिंदू धर्म की मूल अवधारणा एवं श्रेष्ठत्व का प्रचार-प्रसार कर रहे है. हजारों-लाखों लोगोें का श्रध्दास्थान रहनेवाले स्वामीजी द्वारा हिंदू धर्म के मूल तत्वों एवं अलौकिकत्व को बडे ही सहज एवं सरल तरीके से विषद किया जाता है.
कहा जाता है कि, संतों का कुल और नदी का मूल नहीं देखा जाना चाहिए. लेकिन यहां इस बात की अनदेखी भी नहीं की जा सकती कि, पांडित्य की कोई परंपरा नहीं रहनेवाले एक परिवार में स्वामीजी का जन्म हुआ और बहुजन समाज से निकलकर वे राष्ट्रीय एवं वैश्विक अध्यात्मिक जगत में अपने स्व कर्तृत्व से उदियमान होने के साथ ही दैदिप्यमान भी हुए. जगतगुरू रहने के चलते उन्हें इस पद के साथ जुडे प्रोटोकॉल का भी पालन करना पडता है. जिसके तहत धर्मदंड व भगवे वस्त्र को धारण करते हुए वे उच्चासन पर बैठते है, लेकिन उनका मूल स्वभाव संत तुकाराम, संत नामदेव एवं संत गाडगेबाबा की तरह है. संतत्व एवं महंतत्व के अद्भूत सहयोग से उनका व्यक्तित्व बेहद तेजस्वी व तपस्वी रूप में साकार हुआ है. स्वामी विवेकानंद व राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज द्वारा अंतरराष्ट्रीय धर्म परिषद में व्यक्त किये गये विचार पूरी दुनिया में ज्ञात है. उसी परंपरा को स्वामीजी द्वारा भी संभाला जा रहा है. हाल ही में संपन्न अंतरराष्ट्रीय काशी विद्वत परिषद में 128 देशों के धर्म प्रतिनिधियों को स्वामीजी ने अपनी वाणी व विचारों से प्रभावित किया और साथ विविध विषयों पर स्वामीजी ने प्रबोधन सत्र को संबोधित किया. भारत सरकार के सांस्कृतिक मंत्रालय की ओर से आयोजीत इस अंतरराष्ट्रीय धर्म परिषद में स्वामिजी ने देश-विदेश से आये सभी धर्म प्रतिनिधियों को प्रभावित किया और आदि शंकराचार्य, स्वामी विवेकानंद, संत ज्ञानेश्वर, संत नामदेव, संत एकनाथ, संत तुकाराम, राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज व कर्मयोगी संत गाडगेबाबा द्वारा प्रतिपादित, धार्मिक, अध्यात्मिक व सामाजिक मूल्यों को अपने विचारों के जरिये प्रतिपादित किया.
यहा यह विशेष उल्लेखनीय है कि, स्वामीजी द्वारा चलाये जानेवाले ग्राम जोडो अभियान की दखल खुद देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी ली है और उन्होंने इसके लिए स्वामीजी का अभिनंदन किया है. अपने इस उपक्रम के जरिये स्वामीजी हिंदू धर्म मूल्यों के तेज से अलंकृत संपन्न, स्वावलंबी, देशाभिमानी व धर्माभिमानी समाज का निर्माण करना चाहते है. साथ ही अहिंसा को परमोधर्म माननेवाले स्वामीजी का यह भी मानना है कि, जरूरत पडने पर धर्म के लिए अपने प्राण न्यौछावर करना भी एक धर्म है. वे अपने आप में योगी व कर्मयोगी है और उन्होंने कई धर्मग्रंथों का अध्ययन भी किया है. लेकिन उनका स्वभाव पुस्तकी पांडित्यवाला नहीं है. बल्कि वे प्रज्ञावंत आत्मज्ञानी है और हिंदू धर्म के मूल्यों, तत्वों व सिध्दांतों पर उनका विशेष जोर रहता है. साथ ही इसके जरिये वे पूरी तरह से मानवतावादी रहनेवाले हिंदू धर्म का प्रचार-प्रसार करते है. आज स्वामीजी के तौर पर भारत देश को एक महान धार्मिक, अध्यात्मिक, सामाजिक व सांस्कृतिक नेतृत्व प्राप्त हुआ है. साथ ही श्री रूख्मिणी विदर्भ पीठ के रूप में अमरावती को भारत का एक महत्वपूर्ण धर्मपीठ भी प्राप्त हुआ है.
गुरूपूर्णिमा पर्व के निमित्त श्री रूख्मिणी विदर्भ पीठ के पीठाधिश्वर अनंत श्री विभूषित जगतगुरू रामानंदाचार्य स्वामी श्री रामराजेश्वराचार्य जी महाराज के चरणों में कोटी-कोटी प्रणाम. उनका आशिर्वाद सभी पर हमेशा बना रहे, ऐसी मंगलकामना
डॉ. सतीश तराल
अमरावती.

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