मनपा ठेका कर्मचारियों को मिला सिर्फ एक महीने का वेतन
कर्मचारियों में फैली नाराजगी
अमरावती/दि.31– मनपा में काम करने वाले ठेका कर्मचारियों को 4 माह का वेतन देने सहित विभिन्न समस्याओं को पूर्ण करने की मांग को लेकर श्रमाधार सांसद डॉ. अनिल बोंडे ने असंगठित कामगार संगठन की ओर से हडताल की गई थी. संगठन व कर्मचारियों की मांग को देखते हुए पहल कर मनपा आयुक्त को वेतन देने के निर्देश देने के बाद मनपा व्दारा कुछ रकम मनपा व कुछ रकम ठेका कंपनियों व्दारा दिए जाने की बात को मंजूर किया गया था. लेकिन इसके बावजूद गुरुवार को मनपा की ओर से ठेका मजदूरों को सिर्फ एक महीने का ही वेतन दिया गया. वही बाकि की रकम ठेका कंपनियों व्दारा दिए जाने की बात कहकर मनपा ने अपना पलडा झाड दिया. जिसके कारण ठेका कर्मचारियों में नाराजगी व्याप्त दिखाई दे रही है.
विगत 21 अक्तूबर को मनपा गेट के सामने संगठन की ओर से हडताल शुरू की गई थी. दौरान आचार संहिता रहने के चलते मजदूरों पर हडताल खत्म करने व काम पर लौटने का दबाव डाला गया था. किंतु इसके बावजूद भी ठेका कर्मचारियों ने अपनी हडताल लगातार 3 दिनों तक जारी रखी. जिस पर मध्यस्थता कर राज्यसभा सांसद डॉ. अनिल बोंडे ने पहल कर मनपा आयुक्त को फोन लगाकर मनपा व्दारा दिवाली पूर्व कर्मचारियों का वेतन देने के निर्देश दिए. जिस पर मनपा की ओर से आयुक्त सचिन कलंत्रे ने हामी भरते हुए कुछ रकम मनपा की ओर से व कुछ टैक्स वसुली के बाद ठेका कंपनी को बील अदा कर वेतन देने की बात को मंजूरी दी गई थी. लेकिन दिवाली के ऐन एक दिन पहले ही कर्मचारियों 4 महीने की बजाए सिर्फ 1 महिने का ही वेतन देने से कर्मचारियों में काफी नाराजगी दिखाई दे रही हैं. वही जब संगठन के पदाधिकारी व कर्मचारी ठेका कंपनियों से इस संबंध में मुलाकात की तो ठेका कंपनियों व्दारा बील पास नहीं हुआ. तो कहां से पैसे देंगे जैसे शब्दों के चलते भी कर्मचारियों में नाराजगी दिखाई दे रही है और दिवाली कैसे मनाए यह सवाल मन में लिए अफसोस कर रहें हैं.
जाएंगे कोर्ट
कर्मचारियों के संगठन श्रमाधार असंगठित कामगार संगठन की अध्यक्ष भाग्यश्री देशमुख ने दैनिक अमरावती मंडल को जानकारी देते हुए बताया कि मनपा आयुक्त जैसे बडे व्यक्ति की बात को ठेका कंपनी व्दारा मान्य न करना यह गलत है. मनपा व ठेका कंपनी कर्मचारियों के अधिकारों का हनन कर रही है.जब पूरा वेतन देने का कमिंटेमेंट किया गया था, तो अब क्यों बातों से मुकर रहे हैं. अब ऐसा लगता है कि अपने अधिकारों की लडाई के लिए कोर्ट जाना पडेगा. तो हम वहां भी जाएंगे.