मनपा में अब की बार हो सकती है ‘त्रिशंकू’ सरकार
संशोधित प्रभाग रचना से कई प्रत्याशियों का वोट बैंक खिसका
* चार सदस्यीय की बजाय तीन सदस्यीय प्रभाग पध्दति से कई वॉर्ड हुए इधर से उधर
*गठ्ठा वोटों के भरोसे चुनाव लडनेवाले प्रत्याशियों को होगी मुश्किलें
* चुनाव पश्चात आपसी गठजोड के बाद पक सकती है ‘मिली-जुली खिचडी’
अमरावती/दि.4– हाल ही में राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा प्रभाग रचना की संशोधित सूची घोषित की गई. इसके साथ ही चुनाव लडने के इच्छुक प्रत्याशी अब इस बात को लेकर माथापच्ची करने और वोटों का गणित जोडने-घटाने में जुट गये है कि, उनके लिए कहां से चुनाव लडना ज्यादा फायदेमंद व सुविधाजनक रहेगा. सबसे मुश्किल में इस समय उन इलाकों के प्रत्याशी देखे जा रहे है, जहां पर गठ्ठा वोट बैंक के भरोसे चुनाव लडे व जीते जाते है. क्योंकि नई प्रभाग रचना के चलते कई प्रभागों का वोट बैंक अब किसी अन्य प्रभाग में चला गया है. ऐसे में ‘आधे इधर-आधे उधर, हम जायें किधर’ वाली स्थिति बन गई है. यह स्थिति विशेषकर शहर के सीमावर्ती प्रभागों में कुछ अधिक देखी जा रही है. इस प्रभाग रचना की वजह से मनपा के कई कद्दावर नेताओं का भी जनाधार इधर से उधर खिसक गया है और मनपा सहित शहर की राजनीति पर मजबूत पकड रखनेवाले कई पुराने व वरिष्ठ पार्षदों को अपने अगले निर्वाचन क्षेत्र यानी प्रभाग के बारे में अभी से माथापच्ची करनी पड रही है.
बता दें कि, इससे पहले अमरावती मनपा के चुनाव 4 सदस्यीय प्रभाग पध्दति से हुए थे और तब 87 वॉर्डों के लिए कुल 22 प्रभाग बनाये गये थे. वहीं इस बार 3 सदस्यीय प्रभाग पध्दति से चुनाव करवाये जाने है और वॉर्डों की संख्या 87 से बढाकर 98 कर दी गई है. जिसके चलते प्रभागों की संख्या भी 22 से बढकर 33 हो गई है. जाहीर सी बात है कि, चार सदस्यीय प्रभाग पध्दति की बजाय तीन सदस्यीय प्रभाग पध्दति किये जाने के साथ ही यह तय हो गया था कि, हर प्रभाग का एक-एक वॉर्ड कटेगा. जिसे किसी अन्य प्रभाग के साथ जोडा जायेगा. साथ ही नये परिसिमन के तहत कुछ नये प्रभाग भी बनेंगे. किंतु इस चक्कर में कई पार्षदों सहित चुनाव लडने के इच्छुकोें के वोटर अब अलग-अलग प्रभाग में बंट गये है. ऐसे में अब इस प्रभाग से चुनाव लडा जाये या उस प्रभाग से जोर आजमाया जाये, इस बात को लेकर कई इच्छुकों द्वारा माथापच्ची की जा रही है. साथ ही कई इच्छुकों ने अब मनपा प्रशासन के समक्ष प्रभाग रचना को लेकर अपनी आपत्ति दर्ज करानी भी शुरू कर दी है. जिसमें प्रभागों के परिसिमन को दुरूस्त करने के संदर्भ में सुझाव देते हुए मौजूदा परिसिमन को लेकर आक्षेप दर्ज कराये जा रहे है. इन सभी आपत्तियों व आक्षेपों को मनपा द्वारा आगामी 16 फरवरी तक राज्य निर्वाचन आयोग के समक्ष पेश किया जायेगा. जिस पर 26 फरवरी तक सुनवाई पूरी करते हुए निर्वाचन आयोग द्वारा आगामी 2 मार्च को अंतिम प्रभाग रचना घोषित की जायेगी.
* जहां विकास काम किया, अब वहीं इलाका दूसरे प्रभाग में
कई मौजूदा पार्षदों की एक समस्या यह भी है कि, अपने जारी कार्यकाल के दौरान उन्होंने जिन वॉर्डों में हाल-फिलहाल के दिनों के दौरान विकास कामों का जमकर भुमिपूजन किया और जहां पर विकास की गंगा प्रवाहित करने का दावा किया, अब वे वॉर्ड किसी अन्य प्रभाग में शामिल है. चूंकि तीन सदस्यीय प्रभाग पध्दति के तहत जीत हेतु प्रभाग में शामिल तीनों वॉर्डों के मतदाताओं से वोट मिलना जरूरी है. ऐसे में किसी एक वॉर्ड के दम पर चुनाव लडने अथवा जीतने की बात नहीं सोची जा सकती. ऐसे में एक या दो वॉर्डों पर पकड रखनेवाले पार्षदों के समक्ष उन्हीं वॉर्डों का विभाजन दो अलग-अलग प्रभागों में हो जाने की वजह से काफी समस्या पैदा हो गई है. यानी गठ्ठा वोट बैंक के कटने और बंटने के साथ-साथ विगत पांच वर्ष के दौरान की गई मेहनत के भी पानी में चले जाने का खतरा सामने है.
* संमिश्र बस्ती व आपस में सटे इलाकों में वोटों के बंटने का खतरा
यहां यह विशेष उल्लेखनीय है कि, जिन इलाकों में दो अलग-अलग समुदायों की संमिश्र बस्ती है, या जहां पर दो समुदायों की बस्तियां आपस में एक-दूसरे से सटी हुई है, उन इलाकोें में प्रभाग परिसिमन की वजह से वॉर्डों के विभाजन के चलते चुनाव लडने के इच्छूकों को कुछ हद तक परेशानियों का सामना करना पड सकता है. क्योेंकि चुनाव के दौरान समुदाय व समाज भी अपने आप में एक महत्वपूर्ण विषय होता है. ऐसे में यदि किसी प्रत्याशी के एक वॉर्ड में अच्छे-खासे वोटर है, किंतु अन्य दो वॉर्डों में उसके समुदाय या समाज के वोटर नहीं है, तो उसे चुनाव लडने व जीतने में काफी मुश्किलों व परेशानियों का सामना करना पड सकता है. इस बात के मद्देनजर भी कई मौजूदा पार्षद व चुनाव लडने के इच्छुक प्रत्याशी अभी से जीत हेतु आवश्यक वोटों का गणित बिठाने और जमा-जोड करने में व्यस्त हो गये है. साथ ही साथ प्रभागों का परिसिमन दुबारा निर्धारित करवाने के लिए अंतिम प्रयास के तौर पर मनपा के निर्वाचन विभाग के समक्ष आपत्ति व आक्षेप दर्ज करा रहे है.
* सोचे-समझे तरीके से प्रभाग रचना की चर्चा
इस समय यदि शहर में चल रही राजनीतिक चर्चाओं पर गौर किया जाये, तो अधिकांश मौजूदा पार्षदों व राजनेताओं का मानना है कि, यह प्रभाग रचना बडे सोचे-समझे ढंग के साथ बनायी गई है. जिसके तहत कई पुराने पार्षदों व वरिष्ठ नेताओं को चुनाव सहित शहर की राजनीति से दरकिनार करने का कुछ हद तक प्रयास किया गया है. प्रभागों के परिसिमन के नाम पर वॉर्डों का कुछ इस तरह से बंटवारा किया गया है, ताकि कुछ मौजूदा पार्षदों और लंबे समय से मनपा की राजनीति में सक्रिय नेताओं की पकड को थोडा ढिला किया जा सके. शहर में चल रही राजनीतिक चर्चाओं ने बाकायदा इसके लिए उदाहरण भी दिये जा रहे है कि, जिस बुधवारा प्रभाग से पूर्व महापौर व पार्षद विलास इंगोले मनपा का हर चुनाव भारी लीड से जीतते आये है. उस बुधवारा प्रभाग में इस बार बाहर के 10 हजार वोटर जोड दिये गये. इसी तरह शहर की राजनीति और युवाओें पर अपनी मजबूत पकड रखनेवाले पार्षद दिनेश बूब के सामने भी चुनाव लडने को लेकर यह संभ्रम पैदा हो गया है कि, आखिर वे किस प्रभाग से चुनाव लडे. क्योेंकि जिस प्रभाग में उन्होंने पूरी ताकत के साथ काम किया था, वह प्रभाग अब दो अलग-अलग हिस्सों में बंट गया है. कुछ यही हाल बसपा गुट नेता व पार्षद चेतन पवार का भी है. जिनका पुराना प्रभाग अब किरण नगर व फ्रेजरपुरा ऐसे दो हिस्सों में बंट गया है और अब चेतन पवार भी इस सोच में पडे है कि, वे इन दोनों में से किस प्रभाग से चुनाव लडे. लगभग यहीं स्थिति मनपा के नेता प्रतिपक्ष तथा कांग्रेस शहराध्यक्ष बबलू शेखावत के भी सामने है. क्योंकि उनके पुराने प्रभाग का काफी हिस्सा जोग स्टेडियम व फ्रेजरपुरा इन दो प्रभागों में शामिल कर दिया गया है. साथ ही साथ कुछ हिस्सा वडाली प्रभाग में भी समाविष्ट है. ऐसे में बबलू शेखावत भी अपने लिए सुरक्षित सीट व प्रभाग को लेकर विचार में फंसे हुए है. कुछ यही हाल मनपा के सभागृह नेता व भाजपा पार्षद तुषार भारतीय का भी है. जिनके पुराने साईनगर प्रभाग का म्हाडा कालोनी जैसा हिस्सा गडगडेश्वर प्रभाग में शामिल कर दिया गया है. वही अकोली रोड परिसर का कुछ हिस्सा पूर्व बडनेरा (जुनी बस्ती) प्रभाग के साथ जोडा गया है. साथ ही सातूर्णा परिसर का भी कुछ हिस्सा दो अलग-अलग प्रभागों में विभाजीत है. ऐसे में उनके परंपरागत वोटर काफी हद तक इधर से उधर हो गये है.
इन सबके साथ ही विशेष उल्लेखनीय यह भी है कि, शहर की राजनीति का मुख्य केेंद्र रहनेवाले श्रीकृष्णपेठ प्रभाग का इस बार के मनपा चुनाव में पूरी तरह से अस्तित्व ही खत्म कर दिया गया है. इस बार श्रीकृष्ण पेठ नाम का कोई प्रभाग ही नहीं है. बल्कि श्रीकृष्ण पेठ परिसर को रामपुरी कैम्प प्रभाग के साथ जोड दिया गया है. वहीं पुराने श्रीकृष्ण पेठ प्रभाग के बडे हिस्से को जोग स्टेडियम प्रभाग के साथ जोडा गया है. इसी तरह इससे पहले अस्तित्व में रहनेवाले पीडीएमसी प्रभाग को भी खत्म कर दिया गया है और इस प्रभाग का तीन हिस्सों में विभाजन करते हुए उन्हें संत गाडगेबाबा, तपोवन व जोग स्टेडियम प्रभाग के साथ अटैच किया गया है.
* इस बार राकांपा है ‘कमबैक’ करने को तैयार
बता दें कि, अमरावती मनपा के पिछले आम चुनाव के समय शहर की सारी राजनीति तितर-बितर थी तथा कौन किस पार्टी में है, किसके सिर पर किसकी पगडी है और कौन किसका जूता पहनकर घुम रहा है, यह पता ही नहीं चल रहा था. किंतु अब एक बार फिर सभी लोग अपने-अपने पुराने ठिकाने और पहचान में लौट आये है. उस चुनाव से पहले अमरावती मनपा में राकांपा का ही बोलबाला था, किंतु चुनाव के समय अमरावती शहर में राकांपा काफी हद तक नेतृत्वहीन थी, ऐसे में राकांपा ने मनपा जैसे महत्वपूर्ण चुनाव में हिस्सा ही नहीं लिया था और पूरे पांच साल तक अमरावती मनपा में राकांपा का कोई प्रतिनिधित्व नहीं था. लेकिन अब राकांपा में हालात काफी हद तक बदल और सुधर गये है. ऐसे में राकांपा इस समय अपने मजबूत गढों को और अधिक मजबूत कर रही है तथा नये-पुराने ‘शिलेदारों’ को एकजूट किया जा रहा है. जिससे साफ है कि, इस चुनाव में राकांपा पूरे दम-खम के साथ चुनाव लडेगी. यदि यह चुनाव राकांपा द्वारा अपने अकेले के दम पर लडा जाता है, तो पार्टी के 13 से 15 पार्षद निर्वाचित होने की आज ही निश्चित संभावना है. साथ ही यदि पुणे मनपा की तरह अमरावती में भी राकांपा और शिवसेना का गठजोड होता है, तो यह गठबंधन बडे आराम से 32 से 35 सीटें निकाल लेगा.
* कांग्रेस के लिए राह इतनी भी आसान नहीं
प्रभाग रचना की संशोधित सूची के घोषित होते ही शहर कांग्रेस के नेताओं ने इसे लेकर खुशी जताई. साथ ही इस प्रभाग रचना को अपने लिए फायदेमंद बताने के साथ ही मनपा के आगामी चुनाव में अपनी स्पष्ट जीत का दावा भी किया. किंतु यदि प्रभागों की रचना व परिसिमन के साथ ही वोटोें के बंटवारे व जमा-जोड के साथ-साथ इससे पहले हुए चुनावों के इतिहास का बारीकी से अध्ययन किया जाये, तो इस समय मौजूदा प्रभाग रचना के साथ कांग्रेस कुल 97 में से 25 से 30 सीटों पर ही अपने अकेले के दम पर जीतती दिखाई दे रही है. ऐसे में मनपा की सत्ता हासिल करने के लिए कांग्रेस को अपने समविचारी दलों के साथ या तो चुनाव से पहले या फिर चुनाव के बाद निश्चित तौर पर गठबंधन करना ही होगा. अन्यथा कांग्रेस के लिए रास्ता इतना भी आसान नहीं है.
* भाजपा को उठाना पड सकता है कुछ नुकसान
पिछले पांच वर्ष से मनपा की सत्ता में रहनेवाली भारतीय जनता पार्टी के पास इस समय टिकट के दावेदारों की संख्या सबसे अधिक है. जिसमें भाजपा के 39 मौजूदा पार्षद भी टिकट पाने हेतु अन्य 200 लोगों के साथ कतार में है. वजह साफ है कि, भाजपा के पास मतदाताओं के बीच जाकर वोट मांगते समय बताने के लिए विगत पांच वर्ष के दौरान अपने द्वारा किये गये कामोें की फेहरिस्त है. किंतु प्रभाग रचना और वोटों के बंटवारे की मार से भाजपा भी बचती नजर नहीं आ रही. पिछले चुनाव में भाजपा के पास चुनावी वैतरणी को पार करने के लिए मोदी लहर थी, किंतु इस बार मोदी लहर का वैसा असर भी नहीं है. साथ ही साथ विगत पांच वर्ष की सत्ता के दौरान कुछ ऐसे वाकयात भी हुए है, जो मतदाताओं को काफी नागवार गुजरे है और उन मुद्दों को इस बार के चुनाव में विपक्ष द्वारा जमकर भुनाया जा सकता है. बता दें कि, पिछले चुनाव में भाजपा ने 45 सीटें हासिल करते हुए 87 सदस्यीय सदन में स्पष्ट बहुमत हासिल किया था. किंतु इस बार 98 सदस्य सदन में भाजपा इस समय बमुश्किल 25 सीटों पर जीतती नजर आ रही है. भाजपा के साथ सबसे बडी मुश्किल यह भी है कि, वह मनपा की सभी सीटों पर प्रत्याशी नहीं खडे कर सकती और मुस्लिम बहूल व मुस्लिम प्रभाववाली सीटों को हर बार भाजपा द्वारा छोड दिया जाता है. इस समय 97 सदस्यीय मनपा में ऐसी सीटों की संख्या करीब 20 है, यानी भाजपा ज्यादा से ज्यादा 77 से 80 सीटों पर ही प्रत्याशी खडे किये जायेंगे.
* युवा स्वाभिमान, बसपा, रिपाइं, एमआईएम व लीग सहित निर्दलीय कर सकते हैं उलटफेर
जहां इस समय मनपा चुनाव में कांग्रेस, राकांपा तथा भाजपा मुख्य तौर पर रेस में दिखाई दे रहे है, वहीं कुछ सीटों पर शिवसेना भी अच्छी-खासी स्थिति में दिखाई दे रही है. वहीं दूसरी ओर जिले की सांसद नवनीत राणा व बडनेरा के विधायक रवि राणा के नेतृत्ववाली युवा स्वाभिमान पार्टी भी शहर के लगभग आधे से अधिक प्रभागों में चुनाव लडने जा रही है. इसके अलावा मुस्लिम बहूल व प्रभुत्ववाली सीटों पर एमआईएम व मुस्लिम लीग द्वारा प्रत्याशी खडे किये जायेंगे, जो प्रमुख राजनीतिक दलों को अच्छी-खासी टक्कर दे सकते है. विगत चुनाव में भी एमआईएम ने बडा उलटफेर करते हुए 10 सीटेें जीती थी. इसके अलावा दलित एवं पिछडे वोटों पर मजबूत पकड रखनेवाली बसपा और रिपाइं द्वारा भी कडी टक्कर दी जा सकती है. इन सबके साथ ही विभिन्न पार्टीयों से बगावत करनेवालों और निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लडनेवालों द्वारा भी ऐन समय पर राजनीतिक समीकरणों को बदला जा सकता है. ऐसे में आगामी चुनाव के संभावित नतीजों का अभी से आकलन किया जाये, तो साफ तौर दिखाई देता है कि, इस बार किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलने जा रहा, बल्कि चुनाव के बाद मनपा में ‘त्रिशंकु’ वाली स्थिति दिखाई देगी और संभवत: चुनाव पश्चात उस समय के हालात को ध्यान में रखते हुए अगले पांच साल के लिए ‘खिचडी’ पकाई जायेगी.
* आखिर प्रभाग रचना के पीछे दिमाग किसका
इससे पहले 30 नवंबर को प्रारूप प्रभाग रचना के संदर्भ में जो जानकारी सामने आयी थी, उसे देखते हुए कहा जा रहा था कि, यह मनपा की सत्ता में रहनेवाली भाजपा के लिए फायदेमंद प्रभाग रचना है. वहीं अब निर्वाचन आयोग द्वारा घोषित संशोधित प्रभाग रचना को कांग्रेस ने अपने लिए फायदेमंद बताया है. किंतु जैसे-जैसे इस प्रभाग रचना को लेकर अध्ययन किया जा रहा है और शहर की राजनीति के पुराने जानकारों की इसे लेकर प्रतिक्रिया सामने आ रही है, वैसे-वैसे यह भी स्पष्ट हो रहा है कि, इस प्रभाग रचना की वजह से शहर के कई कद्दावर नेताओं को एक तरह का झटका लगा है और यह प्रभाग रचना कई नेताओं को राजनीति से दरकिनार भी कर सकती है. ऐसे में माना जा रहा है कि, बडे शांत दिमाग से सोच-समझकर मनपा की यह प्रभाग रचना तैयार की गई है. किंतु यह अभी तक स्पष्ट नहीं हुआ है कि, आखिर यह प्रभाग रचना किसके दिमाग से और किसके इशारे पर बनाई गई और इस प्रभाग रचना से निश्चित तौर पर फायदा किसे होनेवाला है. बहरहाल जैसे-जैसे शहर में राजनीतिक बयार रफ्तार पकडेगी और चुनावी पत्ते खुलने शुरू होंगे, वैसे-वैसे कई सवालों के जवाब भी सामने आने शुरू हो जायेंगे, जिनका फिलहाल इंतजार किया जा सकता है.