अमरावती

नाम और उपनाम से भी विवाह में होती दिक्कत

अंततः उसने वाघ से विवाह कर ही लिया

परतवाड़ा/अचलपुर/दी ८-एक व्यक्ति ने किसी सरकारी दफ्तर में फोन लगाया.अपना परिचय देते हुए फ़ोन पर व्यक्ति ने कहा, मी वाघ बोलते,आपण कोण?सरकारी दफ्तर से फ़ोन पर जवाब मिला,मी वाघमारे…!!!बरसो  पहले परतवाड़ा में हमारे एक परम मित्र के साथ घटित हुआ ये वाकया है.नाम और उपनाम के चलते कभी-कभी हास्यास्पद स्थिति भी बन जाती है.अमर अकबर एंथोनी के माफिक कही कही मालू धांडे जवंजाल की फ़िल्म भी सुपर हिट हो जाती है तो कई मर्तबा सिर्फ नाम और उपनाम के कारण मामला बनते-बनते बिगड़ जाता है.किसी कॉलेज के चपरासी का नाम ही यदि प्राणनाथ स्वामी हो तो उसे महिला प्राध्यापक किस तरह संबोधित करेंगी यह भी एक खोज का विषय हो सकता है.
  परतवाड़ा फिनले मिल कॉलोनी के लोगो को विवाह के संदर्भ में ऐसा ही एक अनुभव लेने को मिला.लोगो ने काफी चटखारे लेकर इसका आनंद भी उठाया. मिल परिसर की एक कॉलोनी में रहते श्रीमान लांडगे नामक गृहस्थ की सुकन्या को देखने के लिए मेहमान पधारे थे.पहलीं ही नजर में लड़के ने लड़की को पसंद कर लिया.युवक के परिजन भी राजी हो गए.आगे की बात शुरू करने से पूर्व लड़का क्या करता है,उम्र कितनी,कितनी कमाई हो जाती आदि जानकारी ली गई.युवक सरकारी नौकरी में था.यह जानकर युवती के परिजन भी खुश थे. युवक का पूरा नाम पूछा गया और जैसे ही युवक ने अपना फुल नेम बताया …युवती ने उक्त रिश्ते को अपनाने से साफ इंकार कर दिया.उपस्थित सभी हक्केबक्के रह गए. परिजनों ने सुकन्या को समझाने की भरपूर कोशिश की,किंतु नारी के हठ के आगे सब प्रयत्न बेकार रहे.युवती नो यानी नो पर डटी रही.कारण था युवक का उपनाम (अड़नाम ).कल्पना कीजिये, कैसा फील होंगा..लांडगे-कोल्हे…!युवती ने खुद ही पधारे मेहमानों से यह प्रश्न किया.अथितियों को मन मसोसकर लौट जाना पड़ा.कुछ दिन बाद दुबारा कुछ मान्यवर युवती को देखने आए.नाम और उपनाम की समस्या ने यहां भी पीछा नहीं छोड़ा.संकट बरकरार था.इस मर्तबा पधारे युवक का उपनाम वाघ निकला. युवती मानने को तैयार नही थी.मांबाप ने बेटी को समझाया, बेटा-इस तरह तो कई अच्छे लड़के हाथ से निकल जाएंगे.वो मान गई और तब कही जाकर वाघ के पुत्र से लांडगे की सुकन्या का शुभमंगल सावधान सम्पन्न हुआ.

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