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विमानतल का नामकरण बना सरकार के लिए ‘गले की हड्डी’

नामकरण को लेकर एक के बाद एक लगातार दो बार फैला संभ्रम

* पहले अलायंस एअर और अब इवेंट कंपनी पर फोडा गया गलती का ठीकरा
* खुशी के मौके पर बनी विवाद वाली स्थिति, अमरावतीवासियों में दिखी निराशा
* दोनों महापुरुषों के लाखों समर्थकों की भावनाएं आहत, अब तक संभ्रम दूर नहीं
अमरावती/दि.17 – करीब तीन दशकों के लंबे इंतजार के बाद आखिरकार कल 16 अप्रैल को बेलोरा स्थित अमरावती विमानतल का विधिवत उद्घाटन होने के साथ ही अमरावती से मुंबई के बीच हवाई सेवा का शुभारंभ भी हुआ, यह एक तरह से अमरावतीवासियों के लिए किसी सपने के पूर्ण हो जाने वाला ऐतिहासिक पल रहा. परंतु अमरावती विमानतल का विधिवत उद्घाटन होने से पहले ही विमानतल के नामकरण को लेकर विवाद वाली ऐसी स्थिति बनी, जिसने ‘हलुए में कंकड’ वाली स्थिति पैदा कर दी. जिससे अमरावतीवासियों में काफी हद तक रोष व संताप के साथ ही निराशा वाला माहौल देखा गया. साथ ही अब अमरावती विमानतल के नामकरण का मामला राज्य सरकार सहित एमएडीसी के लिए ‘गले की हड्डी’ वाला मसला बन गया है. जिसे लेकर सरकार सहित एमएडीसी के पास कोई समाधानकारक जवाब नहीं है. ऐसे में अब नामकरण को लेकर हुई गलती का ठीकरा किसी ओर पर फोडने का दौर चल रहा है.
बता दें कि, सन 1992 में पहली बार अमरावती में विमानतल बनाए जाने की संकल्पना सामने आई थी और उस समय बडनेरा के निकट अकोला रोड पर बेलोरा गांव के पास जमीन अधिग्रहित करते हुए एक छोटासा विमानतल साकार किया गया था. जहां पर बनाए गए रनवे पर अगले कई वर्षों तक नेता व मंत्रियों के विशेष विमान ही उतरते रहे और वहां से उडान भरते रहे. इसके बाद अमरावती विमानतल का विकास व विस्तार होने में करीब 25 वर्षों का समय लग गया. इस दौरान कभी भी अमरावती विमानतल के नाम को लेकर कोई मांग बडे पूरजोर तरीके से नहीं उठी. अलबत्ता बीच-बीच में कभी-कभार, इक्का-दुक्का बार अमरावती विमानतल को देश के प्रथम कृषिमंत्री व शिक्षा महर्षी डॉ. पंजाबराव देशमुख तथा कर्मयोगी संत गाडगेबाबा का नाम दिए जाने के सुझाव जरुर सामने आए और राज्य सहित देश में कांग्रेस की सरकार रहते समय अमरावती विमानतल को एकतरह से अप्रत्यक्ष तौर पर डॉ. पंजाबराव देशमुख का नाम दे भी दिया गया था. यही वजह रही कि, गुगल सर्च इंजीन पर अमरावती विमानतल के नाम के साथ डॉ. पंजाबराव देशमुख का नाम भी दर्शाया हुआ है. परंतु राज्य सहित देश में सत्ता परिवर्तन होने के साथ ही भाजपा और संघ से जुडे लोगों की सोच के तहत विगत माह अमरावती विमानतल को लेकर हुई बैठक के दौरान अचानक ही अमरावती विमानतल को संत गुलाबराव महाराज का नाम दिए जाने की बात सामने आई. जबकि इन 25 वर्षों के दौरान संत गुलाबराव महाराज और अमरावती विमानतल का दूर-दूर तक कोई वास्ता तक नहीं था. ऐसे में अचानक ही संत गुलाबराव महाराज का नाम सामने आने के चलते कई लोगों ने आश्चर्य भी व्यक्त किया.
बता दें कि, विगत 6 मार्च को अमरावती विमानतल के उद्घाटन व अमरावती से हवाई सेवा के शुभारंभ के संदर्भ में बुलाई गई बैठक में अमरावती विमानतल को संत गुलाबराव महाराज का नाम दिए जाने के निर्णय को खुद मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के अध्यक्षता के तहत मंजूरी प्रदान की गई थी. परंतु उस बात को लेकर अब तक कोई अधिकृत घोषणा नहीं की गई है. हालाकि उस बैठक और उसमें लिए गए निर्णय को लेकर दैनिक अमरावती मंडल द्वारा समाचार प्रकाशित कर दिए जाने के चलते उसकी जानकारी सर्वविदित हो गई थी. ऐसे में उम्मीद थी कि, अमरावती विमानतल के नामकरण को लेकर विमानतल का उद्घाटन होने से पहले कोई घोषणा हो जाएगी. परंतु ऐसी कोई घोषणा तो नहीं हुई, लेकिन नामकरण का मामला जरुर विवादों में फंस गया और अब यह मसला राज्य सरकार सहित एमएडीसी के लिए काफी हद तक ‘गले की हड्डी’ बन चुका है.
याद दिला दें कि, अमरावती विमानतल को मुंबई हेतु हवाई उडाने शुरु करनेवाली अलायंस एअर कंपनी द्वारा विगत 10 अप्रैल को इस संदर्भ में जिले के सांसद बलवंत वानखडे को भेजे गए निमंत्रण पत्र में अमरावती विमानतल का उल्लेख डॉ. पंजाबराव देशमुख अमरावती विमानतल के तौर पर किया गया था. जिससे सांसद वानखडे सहित कांग्रेस पार्टी के पदाधिकारियों व समर्थकों के साथ ही आम नागरिकों ने यह संदेश निकाला था कि, संभवत: अमरावती विमानतल को शिक्षा महर्षी डॉ. पंजाबराव देशमुख का नाम दे दिया गया है. जिसे लेकर सोशल मीडिया पर धडाधड पोस्ट भी शेयर की जाने लगी. लेकिन इसके अगले ही दिन राज्य सरकार सहित एमएडीसी द्वारा स्पष्टीकरण जारी करते हुए इसे अलायंस एअर की गलती बताया गया और खुद अलायंस एअर ने अपनी गलती स्वीकार करते हुए नया पत्र जारी कर कहा कि, गुगल सर्च की वजह से उसके अधिकारियों से यह गलती हो गई और अमरावती विमानतल का नाम फिलहाल अमरावती विमानतल ही है. यह मामला अभी ठंडा भी नहीं पडा था कि, गत रोज अमरावती विमानतल के उद्घाटन अवसर पर एमएडीसी की ओर से आयोजित कार्यक्रम के दौरान मुख्यमंत्री, दोनों उपमुख्यमंत्री, दो केंद्रीय मंत्रियों तथा दर्जनों मंत्रियों सहित क्षेत्र के सांसदो व विधायकों की मौजूदगी में दिखाई गई अमरावती विमानतल से संबंधित डाक्युमेंटरी में विमानतल का नाम स्पष्ट रुप से प्रज्ञाचक्षू संत गुलाबराव महाराज अमरावती विमानतल दर्शाया गया. जिससे कार्यक्रम में उपस्थित गणमान्यों सहित मीडिया कर्मी में यह स्पष्ट संकेत गया कि, अमरावती विमानतल को संत गुलाबराव महाराज का नाम दे दिया गया है. लेकिन इसे लेकर पूरे कार्यक्रम के दौरान कोई अधिकारिक घोषणा नहीं हुई. उलटे कार्यक्रम खत्म होते-होते एमएडीसी द्वारा स्पष्टीकरण जारी करते हुए बताया गया कि, यह गलती कार्यक्रम जिम्मा संभालनेवाली इवेंट मैनेजमेंट कंपनी से हुई है और अब भी अमरावती विमानतल को किसी का नाम नहीं दिया गया है. जिससे अब और भी अधिक संभ्रम बन गया है, तथा सवाल पूछा जा रहा है कि, आखिर अमरावती विमानतल का नामकरण कब होगा.
यहां यह भी याद दिलाया जा सकता है कि, अमरावती विमानतल का नाम हकिकत में क्या है, इसे लेकर शुरुआत से ही संभ्रम बना हुआ है. क्योंकि प्रशासनिक स्तर पर भी इस विमानतल का उल्लेख कभी बेलोरा विमानतल के तौर पर किया जाता रहा, तो कभी इसे अमरावती विमानतल भी कहा जाता रहा. अक्सर ही किसी मंत्री या नेता का दौरा रहते समय विमानतल पर विशेष विमान का आगमन होने की स्थिति में प्रशासन की ओर से जारी किए जानेवाले मिनट टू मिनट दौरे की जानकारी में इस विमानतल का उल्लेख बेलोरा विमानतल या अमरावती विमानतल के तौर पर किया जाता था. जिससे विमानतल का असल नाम क्या है, इसे लेकर शुरु से ही संभ्रम बना रहा. वहीं अब अत्याधुनिक व सुसज्जीत विमानतल का उद्घाटन होने और यहां से मुंबई हेतु हवाई उडाने शुरु होने के बावजूद विमानतल के नाम का मुद्दा विवाद एवं संभ्रम में घिरा दिखाई दे रहा है.
कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि, सरकार एवं एमएडीसी प्रबंधन की ओर से नामकरण को लेकर की जा रही इस तरह की लापरवाही को संबंधित महापुरुषों के समर्थकों की भावनाओं के साथ खिलवाड कहा जा सकता है. क्योंकि डॉ. पंजाबराव देशमुख और संत गुलाबराव महाराज के प्रति श्रद्धा रखनेवालों की संख्या वाकई लाखों में है. ये दोनों महापुरुष अमरावती जिले के महान सपूत रहे और इन दोनों में से किसी भी एक का नाम अमरावती विमानतल को मिलना अमरावती जिले के लिए गौरववाली बात ही होगी. परंतु दोनों महापुरुषों के नामों को लेकर इस तरह से संभ्रम नहीं फैलाया जाना चाहिए. क्योंकि इससे दूसरे पक्ष के अनुयायियों की भावनाओं के आहत होने का खतरा रहता है, जिससे स्थिति बिगड भी सकती है. ध्यान दिला दे कि, गत रोज जिले के सांसद बलवंत वानखडे ने स्पष्ट तौर पर चेतावनी दी है कि, यदि अमरावती विमानतल को कांग्रेस की मांग के अनुरुप डॉ. पंजाबराव देशमुख का नाम नहीं दिया गया तो कांग्रेस पार्टी द्वारा इसके खिलाफ तीव्र आंदोलन छेडा जाएगा. गनिमत है कि, अब तक ऐसी कोई चेतावनी संत गुलाबराव महाराज के प्रति श्रद्धा रखनेवाले लोगों की ओर से नहीं आई है, लेकिन यदि ऐसा होता है तो यह भी कोई आश्चर्यवाली बात नहीं होगी. संभवत: यही वजह है कि, अमरावती विमानतल के नामकरण का मुद्दा अब सरकार सहित एमएडीसी के लिए ‘गले की हड्डी’ बन गया है और दोनों की स्थिति सांप-नेवले वाली हो गई है. जिन्हें न उगलते बन रहा और न निगलते ही बन रहा है.
कहने को तो एमएडीसी ने इससे पहले गलती का ठीकरा अलायंस एअर पर फोड दिया था. वहीं दूसरी बार हुई गलती के लिए इवेंट कंपनी को जिम्मेदार बता दिया गया है. लेकिन दोनों मामलों में खुद एमएडीसी ही सवालों के कटघरे में खडी नजर आ रही है और एमएडीसी से सवाल पूछा जा सकता है कि, आखिर इवेंट कंपनी को प्रज्ञाचक्षू संत गुलाबराव महाराज का नाम किसने बताया था और इतने बडे व ऐतिहासिक कार्यक्रम में दिखाई जानेवाली डॉक्युमेंटरी फिल्म में क्या दिखाया जा रहा है, इसकी जांच एमएडीसी के किसी भी अधिकारी द्वारा पहले कैसे नहीं की गई थी. सवाल यह भी पूछा जा रहा है कि, कहीं ऐसा तो नहीं कि अमरावती विमानतल को संत गुलाबराव महाराज का नाम देने की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है. लेकिन उद्घाटन अवसर पर कोई बखेडा खडा न हो, इस बात को ध्यान में रखते हुए ऐन समय पर एमएडीसी द्वारा कोई अलग भूमिका अपनाई गई. बात असल में चाहे जो हो परंतु इसका खुलासा होना आवश्यक है अन्यथा कहीं ऐसा न हो कि, बरसों की साध के तौर पर साकार हुआ अमरावती विमानतल महज अपने नाम के चलते अमरावतीवासियों के लिए किसी तनाव या विवाद की जड बन जाए.

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