असल महाराष्ट्रीय संस्कृति का जतन कर रहे ‘नंदा’ साडीज
भारानी परिवार का लेडिज गारमेंट में जोरदार योगदान
* व्यापार जगत का बदला रंगरुप
* सूरत के बाद ‘अमरावती’ बना होलसेल कपडा व्यापार का सबसे बडा मार्केट
अमरावती/दि.31– कपडे के व्यापार में अमरावती ने दशकों से राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर नाम कमा रखा है. उसमें अमरावती के भरानी परिवार संचालित नंदा साडी का बडा योगदान कह सकते हैं. यह अतिशयोक्ती लग सकती है किंतु यहां के कपडा मार्केट की काया पलट कर सूरत के बाद अमरावती की इस क्षेत्र में पहचान बनी हैं तो उसमें सचमुच नंदा साडीज का योगदान हैं. वैसे तो कपडे बेजान होते हैं. वह अगर शॉप में लटके है. तो उन्हें कोई महत्व नहीं होता, लेकिन जब उन्हीं कपड़ों को कोई पहनता है, तो न केवल उन कपडों का महत्व बढ जाता है. बल्कि उन कपडों में भी जान आती है और वे भी आपकी सुंदरता निखारने में मदद करते हैं. वर्ष 1952 में परिवार के दो सदस्यों ने आजीविका के लिए साडियां बेचने का व्यवसाय शुरु किया था. उन्हें क्या पता था कि यहीं व्यवसाय गारमेंट व्यवसाय को नये आयाम तक पहुंचायेगा. व्यापार जगत का रंगरुप बदल देगा. ‘नंदा’ के संचालक भारानी परिवार ने यह बखूबी निभाया है. उन्होंने ‘नंदा’ की मदद से महाराष्ट्रीयन पहनावा, जरी काठ, प्युअर सिल्क धर्मावरम और नववारी’ को नये अंदाज में लोगों तक पहुंचाया, बल्कि अमरावती जैसे विदर्भ के छोटे शहर को पूरे महाराष्ट्र में ही नहीं देश में होलसेल कपड़ा व्यापार हब के रुप में पहचान दिलाई है.
विभाजन के बाद आए अमरावती
भारत-पाक विभाजन के दौरान भारानी परिवार को अपना सबकुछ छोड़कर भारत आना पड़ा. यहां न तो उपजीविका का साधन था और ना ही बसेरा. जैसे-तैसे भारानी परिवार के दो मुखिया ने संयुक्त परिवार की जिम्मेदारी अपने कांधों पर लेकर काम खोजना शुरु किया. इस बीच वे अपने किसी रिश्तेदार व जान-पहचान वालों की मदद से अमरावती आये. यहां न केवल रोजीरोटी हो या बसेरा दोनों का गुजर बसर होने से भारानी परिवार के उन मुखिया ने अमरावती में रहने का निर्णय लिया और संपूर्ण परिवार अमरावतीवासी बन गया.
भाइयों की जोडी ने किया कमाल
भारानी परिवार के मुखिया गोपीचंद भारानी व नंदलाल भारानी उस समय परकोट से बाहर इतवारा बाजार के किराणा दुकान में काम करते थे. उससे परिवार को गुजर बसर तो नहीं होता लेकिन चला लेते थे. उस समय नंदलाल भारानी ने किराना दुकान में काम करने के साथ अपने जान पहचान वालों से कभी उधारी तो कभी नकद में साडियां खरीदकर जब समय मिलता उसे साइकिल पर सवार होकर बेचने निकल पड़ते थे. इस काम में उनके भाई गोपीचंद भारानी भी साथ देते. कई बार तो वे शहर के बाहर आसपास के गांव जैसे वरुड, मोर्शी, मध्यप्रदेश के बैतूल शहर के बाजार में साडियां लदी अपनी साइकिल को दुकान बनाकर उसे बेचा करते थे.
1963 में बना ‘नंदा साडी सेंटर’ का पोस्टर
गोपीचंद व नंदलाल भारानी ने उपजीविका के लिए ही सही स्वतंत्रता के बाद साडी बेचने का व्यवसाय शुरु कर एक ब्रान्ड को पहले ही जन्म दे दिया था. साइकिल पर सवार इस दुकान को उन दोनों मुखिया ने ‘नंदा साडी सेंटर’ का नाम दिया. जो समय के साथ सबकी जुबान पर कुछ इस प्रकार बस गया कि आज हर किसी की जुबान से केवल ‘नंदा साडी सेंटर’ का ही नाम निकलता है.
1963 में रायली प्लॉट पहुंचा प्रतिष्ठान
छोटी की साइकिल पर स्थापित ‘नंदा साडी सेंटर’ धीरे-धीरे ग्राहकों को अपनी ओर आकर्षित करने लगा था. साल 1963 में इस स्थाई रुप प्राप्त हुआ. उस समय परकोट के बाहर रायली प्लॉट में जहां कम ही लोग रहते थे. उस दौर में भारानी परिवार ने पहले प्रतिष्ठान ‘प्रकाश साडी भंडार’ की स्थापना की. जहां होलसेल साडियों का बेहतरीन कलेक्शन उपलब्ध करवाया जाता है.
चार वर्ष बाद ‘नंदा साडी सेंटर’ की स्थापना
शहर विस्तार के साथ व्यापारी क्षेत्र का विस्तार हो रहा था. पहले से ही शहर के बाहर स्थापित जयस्तंभ चौक, चित्रा चौक, इतवारा बाजार परिसर में एक के बाद एक दुकाने बढ़ने लगी. उसी दौर में भारानी परिवार ने ‘प्रकाश साडी भंडार’ के बाद ‘नंदा साडी सेंटर’ की 1967-68 में स्थापना की और तब से लेकर आज तक महिलाओं के सौंदर्य को निखारने, उन्हें आकर्षक व डिजाईनर कपड़ों द्वारा सजने सवरने का मौका दिया जा रहा है.
‘उस’ दौर में नववारी की सर्वाधिक डिमांड
60, 70 यहां तक के 80 के दशक तक महाराष्ट्र में ट्रेडिशन ड्रेस को काफी महत्व रहा. जहां फिल्मों में पारंपारिक पोशाख को बढावा देने के साथ ही उसके प्रचार प्रसार में कई नामी गिरामी हस्तियां सहभाग लेती थी. ‘उस’ दौर में भाराणी परिवार के ‘नंदा साडी सेंटर’ ने महाराष्ट्र के प्रचलित पहनावे ‘नववारी’ को नयी पहचान दिलाई थी. जिसके कारण ‘नंदा साडी सेंटर’ की साडियां केवल अमरावती या विदर्भ में नहीं बल्कि पुरे महाराष्ट्र में पहनी जाने लगी. जिसके बाद यहां समय के साथ साडियों की डिजाईन, कलेक्शन में बदलाव किया जाने लगा. लेकिन ग्राहकों की विश्वासहर्ता को कभी कम नहीं होने दिया.
2001 में पारंपारिक व्यवसाय में रखा कदम
जब परिवार के मुखियां आजीविका के लिए साडियों के व्यवसाय में अपनी जी जान लगा रहे थे. उस समय परिवार के बच्चे मनोज व नरेंद्र भारानी पिता के पारंपारिक व्यवसाय की गतिविधियों के साथ अपनी पढाई भी पुरी कर रहे थे. नरेंद्र भाराणी ने कॉमर्स से अपनी पढाई पुरी की. साल 2001 में परिवार की जिम्मेदारी संभालने के बाद उन्होंने आगे की पढाई छोडकर पिता के व्यापार में हाथ बटाने का फैसला लिया.
साडियों के साथ वाहन व्यवसाय में दिखाई रूचि
भारानी परिवार के युवाओं ने पारंपारिक व्यवसाय को बढावा देने के साथ नये-नये व्यवसाय में भी किस्मत आजमाने की कोशिश की. जिसके फल स्वरुप साल 2006 में नंदा मोटर्स की स्थापना की गई. इस समय ‘नंदा साडी सेंटर’ का विस्तार नहीं हुआ था. इस कारण भारानी परिवार के युवा ही इस प्रतिष्ठान की जिम्मेदारी संभाल रहे है. आज भले ही भारानी परिवार के सदस्य यहां कम ध्यान देते हो, लेकिन नंदा मोटर्स का स्टाफ इतना ट्रेन्ड हो चुका है कि वे कंपनी के फायदे और मुनाफे का ध्यान रखकर ग्राहकों को बेहतरीन सेवा देने की कोशिश करते है.
ट्रेडिंग व्यवसाय में खोजा अवसर
मनोज भारानी एवम नरेंद्र भारानी को ट्रेडिंग व्यवसाय मे अधिक रुचि रही. उन्होंने इसी बात का फायदा उठाकर शहर के सिमीत व्यापारी विशेषकर कपडा, गारमेंट व्यापार को हब मे परिवर्तित करने की संकल्पना रखी. जिसका पहले तो विरोध किया गया. लेकिन आज यहीं होलसेल व्यापारी क्षेत्र यानी सिटीलैन्ड व ड्रीम्जलैन्ड देश का गारमेंट हब बन चुका है. शहर से बाहर 10 से 15 किमी दूर स्थित बोरगांव धर्माले में 45 स्वे. फीट में बने सिटीलैन्ड व करीब 85 एकड में साकार ड्रीम्जलैन्ड में भारानी परिवार की भागीदारी रही है. शहर नहीं बल्कि बाहरगांव से आने वाले ग्राहकों को यहां एक ही छत के नीचे होलसेल कपडों की खरीदारी की सुविधा मिलेगी, इस उद्देश्य से इस होलसेल कपडा हब की स्थापना की गई. सिटीलैन्ड हो या ड्रिम्जलैन्ड यहां के व्यावसायियों को अन्य जिले व प्रांत में व्यापार का अवसर प्राप्त हुआ है.
परिवार की एकता से व्यापार बढा
‘नंदा साडी सेंटर’ साल 2012-13 के बाद सिटीलैन्ड व ड्रीम्जलैन्ड में भव्यता के साथ स्थानांतरित किया गया. यहां जिसे ‘नंदा’ का नाम दिया गया. यहां ‘सीएनसी’ यानी ‘कैश एन्ड कैरी’ प्रतिष्ठान की स्थापना की है. जहां वन पीस से लेकर अपनी जरुरत अनुसार ग्राहक कैश में लेडिज वेअर की खरीदारी कर सकते है. यहां मुख्य रुप से साडियों के साथ लहंगों का कलेक्शन उपलब्ध है. जबकि ड्रीम्जलैन्ड स्थित ‘नंदा’ में सलवार सुट, गाऊन, ड्रेस मटेरियल के सेशन उपलब्ध है. इसके अलावा प्रतिष्ठान में हर प्रकार की साडियां होलसेल दाम में उपलब्ध करवाई जाती है. जिसके कारण कई ग्राहक इससे जुडे है. ‘नंदा’ का माल केवल विदर्भ ही नहीं बल्कि पुरे महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, तेलंगाणा, कर्नाटक के सीमावर्ती इलाके में जाने लगा है. जिसके मेंटनन्स के साथ नंदा के सभी प्रतिष्ठानों में फिलहाल 300 से अधिक कर्मचारी कार्यरत हैं. सभी प्रतिष्ठानों की जिम्मेदारी भारानी परिवार के मनोज भारानी, नरेंद्र भारानी, सरीता भारानी, निशा भारानी, नयन भारानी व ऋषभ भारानी संयुक्त रुप से उठा रहे हैं. जिसके कारण यह व्यवसाय और फलने फूलने लगा है.
साल 2015 में ड्रीम्ज इन्फ्रा की स्थापना
हमेशा ही कुछ हटके करने की चाह में भाराणी परिवार ने साडियां, लेडिज वेअर, गारमेंट की दुनिया से बाहर निकलकर कन्स्ट्रक्शन की दुनिया में भी अपना कदम रखा है. साल 2015 में ड्रीम्ज इन्फ्रास्ट्रक्चर के जरिये ड्रीम्जलैन्ड प्रोजेक्ट की स्थापना कर इसे ‘प्राइड ऑफ सिटी’ के रुप में पहचान दी है. इसके अलावा कुछ रेशिडेंशीयल प्रोजेक्ट का भी ड्रीम्ज इन्फ्राट्रक्चर के जरिये निर्माण किया है. जीवन में मिली सफलता में मनोज भारानी की पत्नी सरिता भारानी , बेटे नयन भारानी एवम ऋषभ भारनी, नरेंद्र भारानी की पत्नी निशा, बेटा भविष्य, बेटी हितैषी के साथ भारानी परिवार के हर सदस्य ने उनका साथ निभाया है.