नानीबाई का मायरो का आयोजन रहेगा अभूतपूर्व
आयोजन की तैयारियां चल रही युध्दस्तर पर
* जुडवा नगरी में आयोजन को लेकर दिख रहा जबर्दस्त उत्साह
परतवाड़ा/दि.13– स्थानीय प्रतिष्ठित अग्रवाल परिवार की वरिष्ठ सदस्या श्रीमती शकुंतलादेवी चिरौंजीलाल अग्रवाल के 75 वे जन्मदिवस के उपलक्ष्य में सुनिता अग्रवाल चैरिटेबल ट्रस्ट व राधेश्याम बहुउद्देशीय संस्था द्वारा आगामी 18 से 20 अप्रैल 2022 तक परतवाडा-चिखलदरा रोड स्थित नंदनवन पैलेस में नानीबाई को मायरो का आयोजन किया जा रहा है. जिसमें ख्यातनाम प्रवचक व कथाकार जया किशोरी जी द्वारा संगीतमय भजनों की प्रस्तुती दी जायेगी. विशेष उल्लेखनीय है कि, देश-विदेश में कथा व प्रवचन की प्रस्तुति दे चुकी जयाकिशोरी जी का आगामी वर्ष 18 अप्रैल को पहली बार अमरावती जिले में आगमन होने जा रहा है. ऐसे में इस आयोजन को ऐतिहासिक रूप से सफल बनाने हेतु इस समय जुडवा शहर में तमाम तैयारियां अपने अंतिम चरण में है. साथ ही तैयारियों को युध्दस्तर पर अंतिम रूप देते हुए अब इस आयोजन के शुरू होने का बेसब्री से इंतजार किया जा रहा है.
समीपस्थ चिखलदरा मार्ग पर नंदनवन पॅलेस के सामने बनाये जा रहे विशाल मंड़प में विश्वविख्यात धर्म प्रचारक, भजन गायक, आध्यात्म प्रवक्ता जया किशोरी द्वारा अपनी सुमधूर वाणी में 18 से 20 अप्रैल तक रोजाना दोपहर 3 से शाम 7 बजे के दौरान नानीबाई का मायरा की संगीतमय प्रस्तुति दी जायेगी. संगीतमय वातावरण में आयोजीत होने जा रहे इस आध्यात्मिक कार्यक्रम के दौरान भाविक श्रध्दालुओं को किसी भी तरह की कोई तकलीफ या दिक्कत न हो, इस बात के मद्देनजर सुनिता अग्रवाल चेरिटेबल ट्रस्ट और राधेश्याम बहुउद्देशीय संस्था द्वारा आयोजन स्थल पर आने वाले भक्तों के लिए कथा श्रवण करने अच्छी व्यवस्था की गई है. जिसके तहत यहां पर बनाये गये भव्य पंड़ाल के भीतर ठंडी हवा और ठंडे पानी की व्यवस्था की गई है. साथ ही कथा प्रवचन में आने वाले भक्तों के वाहनों के लिए पार्किंग व्यवस्था की गई है.
बता दें कि, इस ऐतिहासिक आयोजन के लिए विगत कई माह से ही तैयारियां शुरू कर दी गई थी, जो अब अपने अंतिम चरण में है. वहीं नंदनवन पैलेस स्थित आयोजनस्थल को दुल्हन की तरह सजाया जा रहा है और अब परतवाडा व अचलपुरवासियों द्वारा बडी बेसब्री के साथ जयाकिशोरी जी के आगमन और इस आयोजन के शुरू होने की प्रतीक्षा की जा रही है.
* प्रेरणादायी कथा का आयोजन सभी के लिए
प्रेरणादायी, धार्मिक कथा नानी बाई रो मायरो का आयोजन परतवाड़ा शहर में पहली बार इतने भव्य पैमाने पर किया जा रहा है और यह आयोजन सभी के लिए निःशुल्क रहेगा. साथ ही इस आयोजन में पहले आओ-पहले पाओ के सिध्दांत पर प्रवेश दिया जायेगा और किसी भी तरह की पास या वीआयपी पास जैसी कोई व्यवस्था नहीं रहेगी. सभी समाजबंधुओं व शहरवासियों के लिए आयोजीत इस कथा को सुनने के लिए हर किसी ने पहुंचना चाहिए. कथा प्रवक्ता जया किशोरी कथा का शुभारंभ करेगी और नानी बाई रो मायरो अटूट श्रद्धा पर आधारित प्रेरणादायी कथा का श्रवण सभी भक्तों को करायेंगी. कथा के माध्यम से भगवान श्रीकृष्ण का गुणगान किया जाता है. भगवान को यदि सच्चे मन से याद किया जाए, तो वे अपने भक्तों की रक्षा करने स्वयं आते हैं. जया किशोरीजी कथा का झांकियों के साथ विस्तार से वर्णन करेगी यह अभूतपूर्व अनुभव सभी के लिए अविस्मरणीय होगा.
– अनिल चिरौंजीलाल अग्रवाल.
नरसी भगत का जीवन देता है ईश्वर की भक्ति का आनंद
परतवाड़ा शहर में आयोजित होने जा रहे नानी बाई रो मायरो की शुरूआत नरसी भगत के जीवन से हुई. नरसी भगत व नानीबाई का जीवन पूर्णतः भगवान के प्रति समर्पित रहा और उनका जीवन हमें ईश्वर की भक्ति की अनुभूती करता है. कथा प्रवक्ता जयाकिशोरी जी के आवाज में पहली बार आयोजित होने जा रहे इस आयोजन के माध्यम से नानीबाई की कथा का आनंद हम ले पायेंगे. कथा में जया किशोरी जी नरसी भगत के जन्म से लेकर आगे की कथा बतायेगी. इस ऐतिहिसिक क्षण के हम साक्षीदार बनने जा रहे है. अभूतपूर्व आयोजन की तैयारियां भी अभूतपूर्व तरीके से की जा रही है. कथा नानीबाई के मायरो में उनके पिता नरसीजी जन्म से ही गूंगे-बहरे होने की बात से लेकर उनके दादी के पास रहने की रोचक कथा शामिल है. उनके एक भाई-भाभी भी थे, भाभी का स्वभाव कड़क था, एक संत की कृपा से नरसी की आवाज वापिस आ गई तथा उनका बहरापन भी ठीक हो गया. नरसी के माता-पिता गांव की एक महामारी का शिकार हो गए नरसी का विवाह हुआ, लेकिन छोटी उम्र उनकी पत्नी भगवान को प्यारी हो गई. नरसी जी का दूसरा विवाह कराया गया, समय बीतने पर नरसी की लड़की नानीबाई का जन्म और वहां से नानीबाई का मायरो तक का सफर जया किशोरी जी अपनी कथा में बया करेगी. नानीबाई और नरसी भगत के जीवन से हमें ईश्वर भक्ति की प्रेरणा मिलती है.
– रवि अग्रवाल.
* बेटी की शादी में भात भरने की रिवाज को पूर्ण किया ईश्वर ने
नानीबाई का मायरा यह कथा ईश्वर के प्रति भक्ति का उम्दा उदाहरण है. इस जीवंत कथा का एक-एक पहलू जयाकिशोरीजी अपनी आवाज में परतवाड़ा के भक्तों के लिए प्रस्तुत करेगी. नानीबाई का मायरा इस कथा में नानीबाई का विवाह अंजार नगर में हुआ और उसके बाद उनके पिता नरसी भगत को उनकी भाभी ने उन्हें घर से निकाल दिया. नरसी भगत श्रीकृष्ण के अटूट भक्त थे. वे उन्हीं की भक्ति में लग गए. भगवान शंकर की कृपा से उन्होंने ठाकुर जी के दर्शन किए. उसके बाद तो नरसी ने सांसारिक मोह त्याग दिया और संत बन गए. उधर नानीबाई ने पुत्री को जन्म दिया और पुत्री विवाह लायक हो गई किंतु नरसी को कोई खबर नहीं थी. लड़की के विवाह पर ननिहाल की तरफ से भात भरने की रस्म के चलते नरसी को सूचित किया गया. नरसी के पास देने को कुछ नहीं था. उसने भाई-बंधु से मदद की गुहार लगाई किंतु मदद तो दूर, कोई भी चलने तक को तैयार नहीं हुआ. अंत में टूटी-फूटी बैलगाड़ी लेकर नरसी खुद ही लड़की के ससुराल के लिए निकल पड़े. परंतु इधर भगवान श्रीकृष्ण स्वयं नानीबाई के मायके पहुंचे और अपनी लीला का दर्शन कराया. ऐसी रोचक और भक्तिभाव पूर्ण कथा है नानी बाई का मायरा, जिसका आनंद सभी शहरवासी लेंगे.
– भावेश अग्रवाल.
* भक्ति नरसी की भगवान कृष्ण भक्ति पर आधारित कथा नानी बाई का मायरा
नानीबाई का मायरा भक्त नरसी भगत की भगवान कृष्ण की भक्ति पर आधारित कथा है, जिसमें मायरो अर्थात भात, जो मामा या नाना द्वारा कन्या को उसकी शादी में दिया जाता है, वह भात स्वयं श्रीकृष्ण लाते हैं. नरसी भगत की पुत्री थी नानीबाई और नानीबाई की पुत्री थी सुलोचना बाई. जब नरसी भगत की नातीन व नानीबाई की बेटी सुलोचनाबाई का विवाह तय हुआ, तब नानीबाई के ससुराल वालों ने यह सोचा कि नरसी एक गरीब व्यक्ति है, तो वह शादी के लिये भात नहीं भर पायेगा, उनको लगा कि अगर वह साधुओं की टोली को लेकर पहुँचे, तो उनकी बहुत बदनामी हो जायेगी इसलिये उन्होंने एक बहुत लम्बी सूची भात के सामान की बनाई और उस सूची में लाखों-करोड़ों रूपयों का सामान लिख दिया गया, जिससे कि नरसी उस सूची को देखकर खुद ही न आये. नरसी जी को निमंत्रण भेजा गया. साथ ही मायरा भरने की सूची भी भेजी गई. परन्तु नरसी के पास केवल एक चीज़ थी श्रीकृष्ण की भक्ति, इसलिये वे उनपर भरोसा करते हुए अपने संतों की टोली के साथ सुलोचना बाई को आर्शिवाद देने के लिये अंजार नगर पहुँच गये, उन्हें आता देख नानीबाई के ससुराल वाले भड़क गये और उनका अपमान करने लगे, अपने इस अपमान से नरसी जी व्यथित हो गये और रोते हुए श्रीकृष्ण को याद करने लगे, नानीबाई भी अपने पिता के इस अपमान को बर्दाश्त नहीं कर पाई और आत्महत्या करने दौड़ पड़ी. परन्तु श्रीकृष्ण ने तुरंत प्रकट होकर नानीबाई को रोक दिया और उसे कहा कि कल वह स्वयं नरसी के साथ मायरा भरने के लिये आयेंगे. यह कथा जितने बार सुनो उतनी बार नई लगती है प्रेरणा दायी लगती है. इस बार यह आयोजन अभूतपूर्व पद्धती से परतवाड़ा शहर में होने जा रहा है. जिसका आनंद सभी शहरवासी ले पायेंगे.
– दुर्गासेठ अग्रवाल