सांस्कृतिक, सामाजिक व क्रीडा संस्कृति का जतन करता नीलकंठ मंडल
आजादी पूर्व काल से चली आ रही सार्वजनिक गणेशोत्सव की परंपरा
एक से बढकर एक धार्मिक स्थानों की झांकियोें को किया जाता है साकार
अमरावती-/दि.25 स्वाधीनता पूर्व काल के समय अमरावती शहर में एक से बढकर एक नाटकों के मंचन की परंपरा को नीलकंठ व्यायाम मंडल द्वारा मनाये जाते सार्वजनिक गणेशोत्सव के जरिये साकार किया गया. वर्ष 1943 में ‘नीलकंठ’ नाम धारण करने से पहले सन 1920 से 1922 के दौरान लोकमान्य तिलक के आव्हान को प्रतिसाद देते हुए दादासाहब देशपांडे, डी. कमलाकर, नारायणराव गंगात्रे, नारायणराव केवले, माधवराव केवले, रामभाउ कोनलाडे, बालकृष्णपंत दलाल, माथीराव बिजवे, अण्णासाहब केमदेव, बापूसाहब काले, बापूसाहब गावफले, राजाभाउ बारलिंगे, चव्हाण बाबू व रामभाउ गुल्हाने सहित परिसरवासियों ने मिलकर जयहिंद क्लब की स्थापना की थी और इस क्लब के द्वारा नारायणराव केवले के वाडे में गणेशोत्सव मनाया जाता था. उस दौरान संगठनात्मक कामोें के लिए प्रेरणा प्राप्त हो, इस उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए गाजे-बाजे के साथ शोभायात्रा व जुलुस निकालने की परंपरा शुरू की गई. साथ ही रचनात्मक कामोें के साथ-साथ नये उपक्रमों व कल्पनाओं को साकार करने का तंत्र नीलकंठ मंडल द्वारा स्वीकार किया गया. जिसके तहत दस दिवसीय गणेशोत्सव के दौरान रक्तदान शिबिर, स्वास्थ्य शिबिर, गरीब व जरूरतमंद विद्यार्थियों को शालेय गणवेश व कॉपी-किताब का वितरण, अनिष्ठ रूढियों के खिलाफ जनजागृति, वृक्षारोपण, साक्षरता अभियान, व्यसनमुक्ति अभियान व परिवार नियोजन जैसे उपक्रम इस गणेशोत्सव मंडल द्वारा चलाये जाते है.
शताब्दी वर्ष में पदार्पण
यद्यपि नीलकंठ मंडल की स्थापना वर्ष 1943 में हुई थी. इस लिहाज से इस बार इस गणेशोत्सव मंडल का 79 वां स्थापना वर्ष है. किंतु हकीकत में पहले नीलकंठ मंडल का नाम जयहिंद क्लब हुआ करता था. जिसकी स्थापना वर्ष 1922 में हुई थी. इस लिहाज से यह इस मंडल का शतकपूर्ति वर्ष है. ऐसे में इस बार नीलकंठ मंडल द्वारा बडी धूमधाम के साथ गणेशोत्सव मनाने की तैयारी की जा रही है.
ऐसे बदला मंडल का नाम
स्वाधीनतापूर्व काल में काफी कडे नियम व बंदिशे रहने की वजह से पर्व एवं उत्सवों को खुलेआम सार्वजनिक तौर पर नहीं मनाया जा सकता था. ऐसे में वर्ष 1922 के दौरान स्थापित हुए जयहिंद क्लब द्वारा नारायणराव केवले के वाडे में श्री गणेश स्थापना की जाती थी. उस समय पेंटर नारायणराव गंगात्रे द्वारा इस क्लब के लिए गणेश मूर्ति साकार की जाती थी. पश्चात वर्ष 1943 में बुधवारा स्थित नीलकंठेश्वर मंदिर में गणेश स्थापना की गई और इसी वर्ष जयहिंद क्लब का नाम बदलकर श्री नीलकंठ व्यायाम मंडल किया गया. इसके बाद से इस मंडल की प्रगति का आलेख लगातार उंचा उठता गया. इस मंडल में प्रतिवर्ष सोनसले मूर्तिकार द्वारा गणेश प्रतिमा साकार की जाती है. जिसकी उंचाई भले ही हर वर्ष थोडी कम-अधिक रहती है, लेकिन मूर्ति हमेशा एक समान ही होती है.
अब तक साकार हुई है कई नामांकित झांकियां
नीलकंठ गणेशोत्सव मंडल द्वारा प्रतिवर्ष अलग-अलग धार्मिक व ऐतिहासिक स्थलों की प्रतिकृतियां साकार की जाती है. जिसके तहत अब तक अष्टविनायक, सुवर्ण मंदिर (वेल्लूर), अक्षरधाम, बिडला मंदिर (दिल्ली), हवा महल, दक्षिणेश्वर काली, कात्यायनी देवी मंदिर (दिल्ली) की प्रतिकृति साकार करने के साथ ही स्वाधीनता की समरगाथा, कोकिला व्रत व रेणुका उत्पत्ति की झांकियां भी साकार की गई है.
इस वर्ष चंद्रमहल होगा साकार
श्री नीलकंठ व्यायाम मंडल द्वारा इस वर्ष गणेशोत्सव के दौरान जयपुर स्थित चंद्रमहल की प्रतिकृति साकार की जायेगी. जयपुर के सिध्दीपैलेस संकुल के पश्चिमी हिस्से में स्थित चंद्रमहल को चंद्रनिवास के रूप में भी जाना जाता है. चंद्रमहल का निर्माण जयपुर के महाराजा जयसिंह द्वारा किया गया था. जिनके वंशज आज भी इस चंद्रमहल में रहते है.
श्री नीलकंठ व्यायाम मंडल अंतर्गत कई संस्थाओं का संचालन किया जाता है. जिसके जरिये अनेकोें जरूरतमंदों की मदद की जाती है. साथ ही गणेशोत्सव के दौरान कई सामाजिक, सांस्कृति व क्रीडा उपक्रम आयोजीत किये जाते है. मंडल द्वारा अपनी परंपराओं और मूल्यों का जतन करने के साथ ही समाज के समक्ष नये आदर्श प्रस्तुत करने का पूरा प्रयास किया जाता है.
– प्रमोद गंगात्रे
अध्यक्ष, श्री नीलकंठ व्यायाम मंडल
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* इस वर्ष ऐसी है नीलकंठ गणेशोत्सव मंडल की कार्यकारिणी
अध्यक्ष – अद्वैत साउरकर, उपाध्यक्ष – अजिंक्य गुल्हाने, सचिन खडेकर व अनिकेत ढेंगले, सचिव – मंदार नानोटी, सहसचिव – प्रीतम भोरे, कोषाध्यक्ष – निहार केवले