ना कष्ट को मान, ना उपज को दाम
किसानों के संघर्ष पर आर्थिक निराशा पड रही भारी

* सोयाबीन, कपास व हरभरा बिक रहा मिट्टी में
अमरावती /दि.17– खरीफ सीजन की प्रमुख फसल रहने वाली सोयाबीन व कपास सहित रबी फसल रहने वाले हरभरा को खुले बाजार में गारंटी मूल्य तक नहीं मिल रहा है. जिसकी वजह से किसानों के हिस्से में लागत मूल्य भी नहीं आ रहा है. जिससे किसानों का वित्तीय चक्र पूरी तरह से बिगडा हुआ है. ऐसे में उनके संघर्ष पर उनकी निराशा भारी पड रही है.
बता दें कि, सीसीआई व नाफेड के सरकारी खरीदी केंद्र पर तमाम तरह के नियमों व शर्तों की भरमार है. साथ ही सरकारी खरीदी केंद्र काफी विलंब से भी शुरु हुए है. जिसके चलते आर्थिक तंगी रहने की वजह से कई किसानों ने अपनी उपज को खुले बाजारों में औन-पौने दाम पर बेच डाला है. यानि न तो किसानों की मेहनत का सम्मान हो रहा है और न ही उनके द्वारा उगाई जाने वाली उपज को योग्य दाम ही मिल रहे है.
उल्लेखनीय है कि, इस वर्ष सभी तहसीलों में औसत से अधिक बारिश हुई तथा कई क्षेत्रों अतिवृष्टि वाले हालात रहे. जिसकी वजह से खेतों में खडी फसलों का बडी पैमाने पर नुकसान हुआ. ऐसे में औसत उत्पादन कम रहने के चलते मांग बढकर दरवृद्धि होने की प्रतीक्षा किसानों द्वारा की जा रही थी. परंतु उत्पादन कम रहने के बावजूद भी कपास, सोयाबीन व हरभरा के दामों में कोई तेजी नहीं है. उल्टे उपज को न्यूनतम गारंटी मूल्य भी नहीं मिल रहा. जिससे किसानों का पूरा बजट एवं वित्तीय चक्र गडबडा गया है. ऐसे में सिर पर बैंक सहित निजी साहूकारों का कर्ज बढ जाने के चलते किसानों द्वारा आत्महत्या जैसा आत्मघाती कदम भी उठाया जाता है. यहीं वजह है कि, अमरावती जिला धीरे-धीरे किसान आत्महत्याओं के मामले को लेकर कुख्यात हो चला है.
* केवल तुअर को मिल रहा एमएसपी
बता दें कि, तुअर के लिए 7750 रुपए प्रति क्विंटल का न्यूनतम गारंटी मूल्य है और तुअर को 12 हजार रुपए प्रति क्विंटल तक दाम मिले है. साथ ही इस समय तुअर के दाम 9600 रुपए से 10 हजार रुपए प्रति क्विंटल तक चल रहे है. इससे उलट 4892 रुपए का गारंटी मूल्य रहने वाले सोयाबीन को 3900 रुपए तथा 7521 रुपए का गारंटी मूल्य रहने वाले लंबे धागे के कपास को 7100 रुपए के ही दाम मिल रहे है. जिसकी वजह से किसान काफी दिक्कतों में फंसे दिखाई दे रहे है.
* सरकारी खरीदी केंद्रों पर नियम व शर्त अधिक
नाफेड में 12 फीसद आर्द्रता व एफएक्यू प्रतवारी की शर्त है. केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने 15 फीसद तक शर्त में शिथिलता दी है. लेकिन इस ेलेकर राज्य सरकार ने नाफेड को कोई पत्र नहीं दिया है. ऐसे में 3 प्रतिशत आर्द्रता का नुकसान कौन सहन करेगा. इस सवाल से किसान जूझ रहे है. साथ ही सीसीआई के केंद्र भी डेढ माह के विलंब से शुरु किये गये और इन केंद्रों पर भी 8 फीसद से अधिक आर्द्रता रहने पर कपास को बेहद कम दाम मिलते है.
* खेती किसानी में लागत खर्च बढ रहे है. वहीं दूसरी ओर कृषि उपज के दाम घट रहे है. जिसके चलते मजदूरी की दरे भी नहीं बढ पा रही, जबकि मुफ्त सिलेंडर व लाडली बहन जैसी योजनाओं के जरिए ग्रामीण क्षेत्र के नागरिकों को नई व्यवस्था का गुलाम बनाया जा रहा है.
– विजय जावंधिया,
किसान नेता.