अमरावती

जहां से हमें आध्यात्मिक ज्ञान तथा मन की शांति मिली हो उन्हें कभी न भुलाए

संत श्री डॉ. संतोषकुमार के वचन

अमरावती- / दि. 18 स्थानीय सिंधु नगर स्थित पूज्य शिवधारा में चल रहे शिवधारा झूलेलाल चालिहा के 33 वें दिन परम पूज्य संत श्री डॉ. संतोष महाराज ने अपनी मधुर वाणी में कहा कि, जिस भी स्थान में हमारी आस्था है. जहां जाने से, कुछ सेवा करने से आशीर्वाद रूप में पद, प्रतिष्ठा, पैसा, पुत्र प्राप्त हुआ है, उसके लिए सदैव हदय में एक विशेष स्थान रहना चाहिए और जितना संभव हो पाए उसकी सेवा के लिए कुछ न कुछ करते रहना चाहिए.
उदाहरणार्थ राजा के महल की सफाई करनेवाली एक वृध्द माता पर जब राजा की नजर पडी तो एहसास हुआ कि बचपन से इसको मैने हमारे राजमहल की सेवा करते देखा है, अभी इसको कुछ देना चाहिए. तो उन्होंने उनको एक सोने से भरा हुआ थाल दिया और सोचा कि इनका शेष जीवन सुखी गुजरे और काम से छुटकारा मिले. लेकिन राजा ने देखा दूसरे दिन वह माता काम पर आयी और राजमहल की साफसफाई करने लगी, राजा के पूछने पर उसने कहा कि, जहां से कुछ प्राप्त हुआ हो, उसको नहीं भुलाया जा सकता है और यही सीख हम सबके लिए भी है.
जिस भी संत से हमें कुछ प्राप्त हुआ है, कुछ मनोकामनाएं पूर्ण हुई है, अध्यात्मिक ज्ञान मिला है. मन की शांति बढी है. उनको कभी भी भुलाना नहीं चाहिए. जितना संभव हो पाए उनके तन, परिवार, व्यवस्था के लिए कुछ करने का प्रयास करते रहना चाहिए और अपने वंशजों तक को उनकी कृपा के संदर्भ में बताकर जोडना चाहिए. क्योंकि धरती पर तो हमारे गुरूदेव ही हमारे भगवान है. उदाहरणार्थ 1008 सतगुरू स्वामी शिवभजनजी महाराज जी की माता पूज्य माता जेठीबाई जी बाल्यकाल में बाबाजी को गुरू दरबार में लेकर जाती थी. सेवा सिखाने के साथ प्रेरित भी करती रहती थी. फलरूप में बाबाजी नम्रता भर सेवाभाव को देखकर उनके गुरूदेवजी उन पर राजी हुए और उनको अपना उत्तराधिकारी पीठाधिश्वर बनाया और आज बाबाजी से लाखों लोगों को लाभ प्राप्त हो रहा है.
यह श्रेय उनकी माता, जिन्होंने अपने गुरूजी से पाया था और अपने वंशजों को गुरू देर से जोडा उसका ही परिणाम है और यही संदेश हम सब के लिए है. आगे महाराज श्री ने कहा कि जिस गुरू दीक्षा मंत्र के जप से जो भी कुछ प्राप्त हुआ है, समय गुजरने के साथ उस के संदर्भ में आस्था और विश्वास कमजोर नहीं होना चाहिए. क्योंकि एक गुरू मंत्र के जप से लोक और परलोक सिध्द होगा. उहारणार्थ नारद मुनि जी ने वेदव्यास जी महाराज को पिछले कलप में अपने पिछले जन्म की जानकारी देते हुए बताया. मुझे संतों ने ओम नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र दिया. मैंने जप किया, उसके फलस्वरूप में इस जन्म में मैं ब्रह्मा जी का मानस पुत्र नारायण भगवान का अंश अवतार बना हूॅ और उन्होंने प्रह्लाद व धु्रवु भक्त को यही मंत्र दिया. जिसके फल रूप में दोनों को 5 वर्ष की आयु में भगवन दर्शन प्राप्त हुआ था और हमें भी यही शिक्षा मिल रही है कि हर प्रकार के दुख दूर करने के लिए, सुख प्राप्ति के लिए और मोक्ष मार्ग पर आगे बढने के लिए अपने गुरू दीक्षा मंत्र का जप बढाते रहना चाहिए. सत्संग के उपरांत ठीक सुबह 11 बजे सरकार आदेश अनुसार राष्ट्रगान गाया गया.

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