अमरावतीमहाराष्ट्र

चांदूर रेल्वे तहसील में 15 से 20 वर्षों में बेरोजगारों के लिए कोई बडा उद्योग नहीं

विधानसभा क्षेत्र में बेरोजगारों का बना मजाक

* उद्योग को तरस रहा तहसील
चांदूर रेल्वे/दि.13– धामनगांव रेल्वे विधानसभा क्षेत्र में बेरोजगारों के लिए पिछले 15 से 20 वर्षों में कोई बड़ा उद्योग नहीं रहने से यह समस्या सुशिक्षित बेरोजगारों के लिए गंभीर समस्या बनते नजर आ रही है. जनप्रतिनिधियों की ओर से विकास को लेकर बड़ी बड़ी बातें की जाती है पर विकास दिखाई नहीं दे रहा है. निर्वाचन क्षेत्र में मूलभूत सुविधाएं सड़क, बिजली, नालियां, पुल निर्माण और पानी जैसी बुनियादी सुविधाएं मुहैया कराने को लेकर जनप्रतिनिधि विकास का ढोल पीटते नजर आते है. यह सरकारी सुविधा मुहैया करना इसका मतलब विकास है क्या? ऐसा सवाल आनेवाले चुनाव में जनता जनप्रतिनिधि से जनता कर सकती है.

एक समय चांदूर रेल्वे तहसील यह ब्रिटिश का काल में विदर्भ की सबसे बड़ी तहसील के रूप में जानी जाती थी. यहां उद्योग धंधो के साथ बेरोजगारों के लिए काम उपलब्ध था. तहसील से लेकर कृषी उपज मंडी, जिनिग प्रेसिंग, आईल मिल, दाल मिल, सरकारी कार्यालय में काम के लिए 120 किलोमीटर से लोगों चादूर शहर में आते थे. लेकिन समय अनुसार सरकारी नीतियों के चलते चांदूर रेल्वे तहसील से धामणगांव,नांदगाव खंडेश्वर, तिवसा का विभाजन कर तहसील का दर्जा दिया गया साथ ही विधानसभा क्षेत्र का नाम चादूर रेल्वे से बदलकर धामणगांव रखा गया. इतना कुछ होने के बावजूद भी इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करनेवाले नेताओं की निद्रा नहीं खुली. ऐसी स्थिति में भी यह नेता अपनी निजी संस्थाओ को बुलंदियों की ओर ले जाते रहे, लेकिन पढे-लिखे बेरोजगारों की समस्याओं को दरकिनारे कर तहसील में एक भी बड़ा उद्योग न रहना यह बेहद दुख की बात है.

धामणगांव रेल स्थानक पर सभी गाड़ियां रुकती है, लेकिन चांदूर रेल्वे में गाड़ियों के लिए आंदोलन कर अपने हक की लडाई लडना पडता है. कोरोना महामारी के बाद तो यहा पैसेंजर गाड़ी के अलावा विदर्भ,महाराष्ट् एक्सप्रेस रूकती है. किंतु एक्सप्रेस गाड़ियों को बंद करने में जनप्रतिनिधियोंने महारथ हासिल कर ली है.

आज चांदूर रेल्वे तहसील और शहर में बीए, बीएएससी,महिला महाविद्यालय है, जबकि इंजीनियरिंग कॉलेज, बी.फार्म, डी.फार्म कॉलेज नहीं है. युवा पढ-लिख कर राजनीतिक पार्टी के नेताओं की गंदी राजनीति के शिकार होते नजर आते है. विपरित परिस्थितियों में राजनीतिक दल के लिए हाथों में झंडे लेकर नारे लगाते हुए खुद पर मामला दर्ज कर दिखाई देते हैं. युवाओं के भविष्य की चिंता ना किसी राजनीतिक पार्टी को है ना ही किसी नेताओं को. इसलिए आज तक विधानसभा क्षेत्र के चांदूर रेल्वे तहसील में एक भी बड़ा उद्योग नहीं रहना यह इस क्षेत्र के युवकों के लिए दुख भरी बात है.

आनेवाले विधानसभा चुनाव में बेरोजगारी पर स्थानिक युवा और मतदाताओं की ओर से जन प्रतिनिधियों को सवाल पूछे जायेगी यह बात उतनी ही सच है. सांसद रामदास तडस केंद्र सरकार से पिछले 10 वर्ष में एक भी बड़ा उद्योग प्रकल्प लाने मे सफल नहीं हुए, जबकि मोदी सरकार विकासशील सरकार है. चांदूर रेल्वे से चलने वाली ट्रेन कोरोना काल में बंद हो गई थी, वहीं शालिमार एक्सप्रेस ट्रेन अब तक सांसद शुरु कर नहीं सकते तो निर्वाचनक्षेत्र का विकास तो खुली आँखों से सपना देखने जैसी बात निर्वाचन क्षेत्र के लिए है. जनप्रतिनिधियों की ऐसी कार्यशैली से चांदूर रेल्वे तहसील की जनता की नाराजगी का सामना उन्हें आने वाले लोकसभा चुनाव में करना पड सकता है.

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