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‘उस’ मामले से बैंक के किसी भी संचालक का कोई लेना-देना नहीं

जिला बैंक के पूर्व अध्यक्ष बबलू देशमुख का कथन

* कर्मचारियों पर लगाया संचालक मंडल को अंधेरे में रखने का आरोप

* बोले : हमने ही मामले की जांच शुरू करवाई और हम पर ही आरोप लग रहे

* पूरे मामले को बताया विरोधियों की राजनीतिक साजीश

अमरावती/दि.17- इस वक्त जिला मध्यवर्ती सहकारी बैंक में 700 करोड रूपये का घोटाला होने का आरोप कुछ लोगों द्वारा लगाया जा रहा है. साथ ही जिसमें बैंक के संचालक मंडल पर कमिशन खाने या कमिशन बांटने के भी आरोप लगाये जा रहे है. जिनका हकीकत से कोई वास्ता नहीं है. क्योंकि बैंक के संचालक मंडल ने विभिन्न वित्तीय संस्थाओं में 700 करोड रूपये का निवेश करते हुए 278 करोड रूपये का लाभ अर्जीत किया. वहीं जिस कमिशन की रकम को लेकर हंगामा मचा हुआ है, उस पूरे मामले से बैंक के संचालक मंडल का कोई लेना-देना नहीं है, बल्कि कुछ कर्मचारियों द्वारा बैंक के संचालकों को अंधेरे में रखकर कमिशन दिये जाने की बात ध्यान में आते ही खुद हमने इस मामले में जांच शुरू करवायी थी और दोषी कर्मचारियों को पद से निलंबित भी किया था. ऐसे में हमारे बैंक के निवर्तमान संचालक मंडल पर आरोप लगाना पूरी तरह से बेबुनियाद है. इस आशय का प्रतिपादन जिला मध्यवर्ती सहकारी बैंक के पूर्व अध्यक्ष बबलू देशमुख द्वारा किया गया.
दैनिक अमरावती मंडल के साथ विशेष तौर पर बातचीत करते हुए बैंक के पूर्व अध्यक्ष बबलू देशमुख ने कहा कि, किसी समय 600 करोड रूपयों की कुल जमा राशि रहनेवाली जिला बैंक दिवालिया होने की कगार पर पहुंच गई थी, क्योंकि बांटे गये कर्ज की वसूली नहीं हो पा रही थी. ऐसे वक्त हमने बैंक का जिम्मा संभालते हुए बैंक को 2400 करोड रूपयों की जमा राशि तक पहुंचाया और आज बैंक बेहद मजबूत स्थिति में है. यह बात विरोधियों को हजम नहीं हो रही और वे बैंक के संचालक मंडल को बदनाम करने हेतु कोई न कोई बहाना खोज रहे है. जिसके तहत संचालक मंडल द्वारा बैंक को फायदे में लाने के लिए किये गये 700 करोड रूपयों के निवेश और इसकी ऐवज में दी गई दलाली के मामले को हवा दी जा रही है, जबकि बैंक द्वारा किये गये 700 करोड रूपयों के निवेश से बैंक ने 278 करोड रूपये का लाभ अर्जित किया. वहीं 3.39 करोड रूपयों की जो दलाली ब्रोकरों को दी गई, उससे बैंंक के संचालक मंडल का कोई लेना-देना नहीं है. क्योंकि संचालक मंडल ने इसे लेकर कोई प्रस्ताव पारित नहीं किया था. बल्कि बैंक के कुछ कर्मचारियों ने ब्रोकर्स के साथ मिलीभगत करते हुए इस कमिशनखोरी को अंजाम दिया था. लेकिन यह मामला ध्यान में आते ही खुद बैंक के संचालक मंडल ने इसकी जांच करवायी और यह रकम वसूलपात्र रहने के चलते रकम वसूली की कार्रवाई भी संचालक मंडल द्वारा शुरू की गई थी. किंतु इसी बीच अगले चुनाव के लिए सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर सहकार आयुक्त द्वारा संचालक मंडल को बर्खास्त कर दिया गया और बैंक में प्रशासक नियुक्त किया गया. जिसके बाद से हमारे विरोधी रहनेवाले लोगों ने अपने फायदे के लिए इस मामले को राजनीतिक रंग देना शुरू किया और बैंक के संचालक मंडल को लेकर बेसिरपैर के आरोप लगाने शुरू किये. जिनका हकीकत से कोई वास्ता नहीं है.

* अमरावती, अचलपुर व धामणगांव की तिकडी का कमाल

इस समय इस पूरे मामले को लेकर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए बैंक के पूर्व अध्यक्ष व जिला परिषद अध्यक्ष बबलू देशमुख ने कहा कि, अमरावती, अचलपुर व धामणगांव रेल्वे से वास्ता रखनेवाले तीन लोगों की तिकडी ने इस पूरे मामले को राजनीतिक रंग दे रखा है. देशमुख का इशारा सीधे तौर पर अमरावती के संजय खोडके, अचलपुर के बच्चु कडू और धामणगांव रेल्वे के प्रताप अडसड की ओर था. बाद में उन्होंने स्पष्ट रूप से इन तीनों के नाम भी लिये और कहा कि, राकांपा प्रदेश उपाध्यक्ष संजय खोडके, राज्यमंत्री बच्चु कडू और भाजपा विधायक प्रताप अडसड ने बैंक के आगामी चुनाव में प्रतिस्पर्धी पैनल उतारने की तैयारी करनी शुरू कर दी है. जिसके तहत वे निवर्तमान संचालक मंडल पर बेसिरपैर के आरोप लगा रहे है.

* ‘उनका’ स्वभाव सबको पता है
इस समय जब पूर्व अध्यक्ष बबलू देशमुख से पूछा गया कि, आप कांग्रेस के जिलाध्यक्ष है, सुलभा खोडके कांग्रेस की विधायक है और खुद संजय खोडके पांच साल तक कांग्रेस में रहे, तो वे आप पर बिना वजह आरोप क्यों लगायेंगे, इस पर जवाब देते हुए बबलू देशमुख ने कहा कि, ‘उनका’ (खोडके का) स्वभाव सबको पता है. खोडके द्वारा ऐन चुनाव से पहले कांग्रेस छोडकर राकांपा में चले जाने के बावजूद खुद मैने सुलभा खोडके को कांग्रेस की टिकट दिलवायी और अपने हाथों से सुलभा खोडके का एबी फॉर्म जारी किया था. साथ ही उन्हें अमरावती विधानसभा क्षेत्र से विजयी बनाने के लिए पूरी ताकत झोंकी थी. किंतु शायद खोडके की नजर में इन तमाम बातों की कोई किमत नहीं है. आज वे राकांपा के प्रदेश उपाध्यक्ष जैसे बडे पद पर है और राज्य के उपमुख्यमंत्री पद पर आसीन अजीत पवार के साथ उनके बेहद घनिष्ठ संबंध है. ऐसे में सत्ता का हरसंभव तरीके से उपयोग करते हुए हमें घेरने का प्रयास किया जा रहा है, ताकि बैंक पर कब्जा जमाया जा सके.

* ‘वो’ तो चाहते है कि हम जेल जाये, पर ऐसा होगा नहीं
बैंक के पूर्व अध्यक्ष बबलू देशमुख के मुताबिक संजय खोडके, बच्चु कडू और प्रताप अडसड की यह दिली ख्वाईश है कि वे (देशमुख) तथा बैंक के सभी तत्कालीन संचालक जेल जाये, लेकिन ऐसा होगा नहीं, क्योंकि हकीकत में इस पूरे मामले में बैंक का कोई भी संचालक लिप्त नहीं है. यह अब तक हुई जांच में भी साबित हो चुका है और पुलिस द्वारा भी प्रशासकी की शिकायत के बाद बैंक के कुछ कर्मचारियों व ब्रोकरों के खिलाफ ही मामला दर्ज किया गया है. यह बात भी पूरी तरह से साफ हो गई है कि, तत्कालीन संचालक मंडल ने ही इस मामले की जांच हेतु सबसे पहले पहल की थी और दोषी कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई करते हुए कमिशन लेनेवाले ब्रोकरों और कमिशन देनेवाली कंपनियों के नाम नोटीस जारी करते हुए कमिशन के तौर पर दी गई रकम जिला बैंक के खाते में जमा करने हेतु कहा था. देशमुख के मुताबिक यदि निवर्तमान संचालक मंडल को थोडा और समय मिल जाता, तो निश्चित तौर पर 3 करोड 39 लाख 23 हजार रूपये की यह रकम वसूल भी हो जाती. किंतु इसी बीच बैंक के संचालक मंडल को बर्खास्त करते हुए बैंक में प्रशासक नियुक्त कर दिया गया और प्रशासक ने राजनीतिक दबाव में आते हुए इस मसले को लेकर अपराधिक मामला दर्ज करवाया. इससे बैंक को कुछ भी हासिल नहीं होना है.

* कडू व रेड्डी हैं पूरे मामले के मास्टरमाइंड
बबलू देशमुख के मुताबिक इस पूरे मामले में बैंक के निलंबीत कर्मचारी राजेंद्र गणेशराव कडू तथा नागपुर निवासी ब्रोकर पुरूषोत्तम रेड्डी ही मास्टरमाइंड है. जिन्होंने बैंक के तत्कालीन मैनेजिंग डाईरेक्टर जयसिंग चिमनाजी राठोड सहित निलकंठ बी. जगताप, सुधीर बी. चांदूरकर, व रोहिणी सुभाष चौधरी को इसमें शामिल किया. साथ ही रिलायन्स म्युच्युअल फंड के झोनल मैनेजर अजीतपाल हरिसिंह मोंगा सहित शेअर व म्युच्युअल फंड ब्रोकर नीता राजेंद्र गांधी, शोभा मधुसूदन शर्मा, शिवकुमार गोकुलदास गट्टाणी व राजेंद्र मोतीलाल गांधी से मिलीभगत करते हुए बैंक को 3 करोड 39 लाख रूपयों का चुना लगाया. देशमुख के मुताबिक बैंक के संचालक मंडल द्वारा समय-समय पर अपने पास अतिरिक्त रहनेवाली रकम को अलग-अलग वित्तीय संस्थाओं में थोडे-थोडे समय के लिए निवेश किया जाता रहा, ताकि उस रकम से ब्याज के तौर पर लाभ अर्जीत किया जा सके, जो बैंक के सभासदों व किसानों के ही काम में आता है. ऐसे निवेश करते समय बैेंक द्वारा हमेशा ही संबंधित वित्तीय संस्थाओं से सीधा संपर्क करते हुए निवेश किया जाता है और संचालक मंडल द्वारा कभी भी किसी ब्रोकर को नियुक्त करने के प्रस्ताव को मान्यता नहीं दी गई. किंतु बैंक के कर्मचारी राजेंद्र कडू ने ब्रोकर पुरूषोत्तम रेड्डी के साथ मिलीभगत करते हुए बैंक के संचालक मंडल की आंखों में धुल झोंकने का काम किया और निवेश संबंधी दस्तावेजों में काट-छांट करते हुए ब्रोकरशिप दिये जाने की बात छिपा ली, लेकिन इसका पता चलते ही संचालक मंडल द्वारा आवश्यक कदम उठाये गये.

* बैंक को घाटा नहीं हुआ, बल्कि फायदा कम मिला
बबलू देशमुख के मुताबिक विरोधियों द्वारा इस मामले को कुछ ऐसे उछाला जा रहा है, मानो बैंक ने अपने पास से कमिशन दिया हो, जबकि ऐसा नहीं है. बल्कि बैंक ने जिन निवेश कंपनियों में अपने पैसे निवेश किये थे, उन कंपनियों द्वारा ब्रोकर को कमिशन दिया गया. वहीं बैंक को इस निवेश की ऐवज में 278 करोड रूपयों का फायदा हुआ. यदि संंबंधित कंपनियों द्वारा ब्रोकरों को कमीशन देने की बजाय वह राशि भी बैंक को दी जाती, तो हमें 281 करोड रूपये की आय होती. ऐसे में कहा जा सकता है कि, इस पूरे मामले में बैंक को कोई नुकसान नहीं हुआ है, बल्कि हमें मिलनेवाले लाभ में 3 करोड 39 लाख की कमी रही.

* शर्मा ब्रोकर के जरिये फूटा था भांडा
इस पूरे साक्षात्कार में बैंक के पूर्व अध्यक्ष बबलू देशमुख ने बताया कि, कडू और रेड्डी द्वारा चलायी जा रही कमिशनबाजी की जानकारी मिलने पर शर्मा नामक एक ब्रोकर ने भी अपनी ब्रोकरशिप के तहत बैंक से निवेश हासिल करने की कोशिश की और कडू द्वारा टालमटोल किये जाने पर बैंक के संचालक मंडल से मिलकर पूरे मामले की जानकारी दी. यहां से इस पूरे मामले का भंडाफोड हुआ था. जिसके संचालक मंडल ने तुरंत हरकत में आकर इस मामले में अपनी ओर से आवश्यक कदम उठाये थे.

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