अमरावती /दि.16– इन दिनों सभी तरह के कार्यक्रमों से प्राकृतिक पत्तों से बनी पत्रावली के स्थान पर आधूनिक प्लेट, थर्माकॉल पत्रावली, पेपर पत्रावली का चलन बढ गया है. पत्तो से बनी पत्रावली अब नामशेष होते जा रही है. लेकिन पहले किसी भी समारोह में पलस पत्ते व मोह वृक्ष के पत्तों से निर्मित पत्रावली का इस्तेमाल किया जाता था. केले के पत्तों का भी पत्रावली के रुप में चलन था.
इन दिनों प्लास्टिक, थर्माकॉल, पेपर से निर्मित पत्रावली का इस्तेमाल बढने से इस पर प्रतिबंध लगाने मार्च 2018 से राज्य में प्लॉस्टिक बंदी लागू की. जिसके बाद पारंपारिक पत्रावली व्यवसाय को नव संजिवनी मिलने की आशाएं जागी थी. लेकिन वैसा नहीं हो पाया. आज भी विभिन्न कार्यक्रम, विवाह समारोह में थर्माकॉल व प्लॉस्टिक से निर्मित पत्रावलियों का ही इस्तेमाल सर्वांधिक किया जा रहा है. आकर्षक व विभिन्न आकार-प्रकार की पत्रावलियां बाजार में उपलब्ध रहने से लोग भी पारंपारिक पत्रावली को भुलाकर पर्यावरण के लिए हानीकारक साबित थर्माकॉल, प्लॉस्टिक पत्रावलियां इस्तेमाल कर रहे है. इससे पारंपारिक पत्रावलियों का व्यवसाय करने वाले अन्य व्यवसाय की ओर रुख करने लगे है.