अमरावती

मविआ में नहीं सबकुछ ‘ऑल वेल’

मंडी चुनाव में कई घटक दलों ने पकडे अलग-अलग रास्ते

अमरावती/दि.3 – हाल ही में जिले की 12 फसल मंडियों के चुनाव हुए जिसे लेकर माना जा रहा था कि, भाजपा समर्थित पैनलों को फसल मंडियों की सत्ता से दूर रखने के लिए महाविकास आघाडी के घटक दलों द्बारा एकजूट होकर अपने पैनल मैदान में उतारे जाएंगे. लेकिन कई स्थानों पर इससे उलट स्थिति दिखाई दी और आघाडी के घटक दलों के नेताओं ने अपना अलग रास्ता पकडने के साथ ही एक-दो स्थानों पर तो भाजपा समर्थित पैनलों के साथ भी हाथ मिलाया. ऐसे में यह संदेश निकलकर सामने आ रहा है कि, महाविकास आघाडी में सबकुछ ‘ऑल वेल’ नहीं है, बल्कि अंदर ही अंदर कुछ अलग ‘खिचडी’ पक रही है.
बता दें कि, 8 दिन पहले राज्य के नेता प्रतिपक्ष व राकांपा के वरिष्ठ नेता अजित पवार के राकांपा छोडकर भाजपा में जाने को लेकर काफी जोरदार अटकलें चल रही थी. जिसके चलते महाविकास आघाडी में काफी हद तक संभ्रम वाला माहौल बन गया था. साथ ही अजित पवार की ससूराल में तो उन्हें भावी मुख्यमंत्री बताते हुए बैनर-पोस्टर भी लगा दिए गए थे. इसी दौरान नागपुर में देवेंद्र फडणवीस को भावी मुख्यमंत्री बताने वाले बैनर-पोस्टर झलकने शुरु हो गए थे. ऐसे में महाआघाडी व महायुती के टूटने की संभावनाएं जताई जाने लगी थी. लेकिन इसके बाद अजित पवार ने अपनी अंतिम सास तक राकांपा में ही रहने तथा देवेंद्र फडणवीस ने अगला विधानसभा चुनाव मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में ही लडने का ऐलान किया. जिससे तमाम अटकलों पर विराम तो लग गया, लेकिन फिर भी सत्तापक्ष व विपक्ष के नेताओं व पदाधिकारियों ने भविष्य की राजनीति को लेकर काफी हद तक संभ्रम व संशय की स्थिति है. जिसके तहत यह माना जा रहा है कि, सीएम एकनाथ शिंदे सहित 16 विधायकों की अपात्रता का मामला सर्वोच्च न्यायालय में प्रलंबित है. जिसका फैसला शिंदे गुट के खिलाफ भी आ सकता है. संभवत: इसी वजह के चलते भाजपा ने अजित पवार को अपने पाले में करने की रणनीति तय की है. साथ ही शायद इसी वजह के चलते विगत कुछ दिनों से राकांपा द्बारा भाजपा को लेकर अपनी भूमिका को कुछ नर्म किया गया है.
उधर दूसरी ओर मंडी चुनाव में महाविकास आघाडी के कई स्थानीय पदाधिकारियों ने आघाडी समर्थित पैनल से बाहर निकलकर अपनी अलग राह पकडी और पुलिस थानों पर तो भाजपा समर्थित पैनल का भी साथ दिया. अमरावती में ठाकरे गुट वाली शिवसेना ने आघाडी समर्थित पैनल से अलग निकलते हुए बलिराजा नामक स्वतंत्र पैनल गठित किया और 10 संचालक पद हेतु अपने प्रत्याशी मैदान में उतारे. हालांकि बलिराजा पैनल को एक भी सीट पर सफलता नहीं मिली. वहीं शिवसेना में स्थानीयस्तर पर सक्रिय रहने वाले पूर्व विधायक स्व. संजय बंड के समर्थक गुट ने महाविकास आघाडी के साथ रहते हुए अपने 3 संचालक चुनकर लाए. इसके अलावा चांदूर बाजार और वरुड में कांग्रेस व भाजपा ने साथ मिलकर अपना पैनल उतारा था. इसके अलावा धारणी में भी मविआ समर्थित पैनल में भाजपा को शामिल किया गया था. यह अपने आप में विशेष उल्लेखनीय है. जिसे लेकर तर्क दिया जाता है कि, बाजार समिति के चुनाव में स्थानीय नेताओं के साथ-साथ सहकार नेताओं द्बारा अपनी-अपनी सुविधा के लिहाज से गटबंधन करने के बारे में निर्णय लिए जाते है. परंतु मंडी चुनाव को लेकर हुए गटबंधनों और इस चुनाव के नतीजों के चलते अब महानगरपालिका, जिला परिषद, नगर परिषद व नगर पंचायत के चुनावों को लेकर राजनीतिक चर्चाएं शुरु हो गई है.

* क्या कहते है जिले के नेता

आघाडी में किसी भी तरह की कोई बिगाडी नहीं है. यह बात हाल ही में हुए फसल मंडी चुनाव से पूरी तरह साफ हो गई है. स्थानीय स्वायत्त संस्थाओं के आगामी चुनाव भी महाविकास आघाडी के घटक दल साथ मिलकर लडेंगे और निश्चित तौर पर जीत हासिल करेेंगे.
– बबलू देशमुख,
जिलाध्यक्ष, कांग्रेस

महाविकास आघाडी में कोई फुट नहीं है. उद्धव ठाकरे ही महाविकास आघाडी के नेता है, यह बात भी पूरी तरह से स्पष्ट है. बडा परिवार रहने के चलते कभी कभार थोडा बहुत मतभेद होता है. लेकिन इसका कोई विशेष परिणाम आघाडी पर नहीं होने वाला.
– सुनील खराटे,
जिला प्रमुख, शिवसेना उबाठा

महाविकास आघाडी के लिए कोई खतरा नहीं है. यह बात बाजार समिति के चुनाव से स्पष्ट हो गई है. यद्यपि राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी में कुछ बदलाव दिखाई देंगे, लेकिन इसका महाविकास आघाडी पर कोई परिणाम नहीं पडेगा.
– सुनील वर्‍हाडे,
जिलाध्यक्ष, राकांपा

विगत एक सप्ताह से अजित पवार और अब शरद पवार को लेकर अलग-अलग चर्चाएं चल रही है. आने वाले वक्त में महाविकास आघाडी पूरी तरह से बिखर जाएगी. यह अभी से ही स्पष्ट तौर पर दिखाई दे रहा है.
– अरुण पडोले,
जिला प्रमुख, शिवसेना

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