* नियमित प्राचार्य नहीं रहने से कामों पर परिणाम
* संस्था चालक कोविड की वजह आगे कर झटक रहे हाथ
अमरावती/दि.11- संत गाडगेबाबा अमरावती विद्यापीठ से संलग्नित संभाग के कुल 397 में से 163 महाविद्यालयों में इस समय नियमित प्राचार्य नियुक्त नहीं है. जिसकी वजह से संबंधित महाविद्यालयों के शैक्षणिक कामकाज पर जबर्दस्त परिणाम हो रहा है. इन सभी महाविद्यालयों में प्रभारी प्राचार्य की नियुक्ति की गई है. किंतु प्रभारियों का कॉलेज के प्राध्यापकों व कर्मचारियों पर कोई विशेष प्रभाव नहीं होता. ऐसे में नियमित व पूर्णकालिक प्राचार्यों की नियुक्ति करना बेहद अनिवार्य है. किंतु कोविड संक्रमण की वजह को आगे करते हुए संबंधित शिक्षा संस्था संचालकों द्वारा अपनी इस जिम्मेदारी से हाथ झटका जा रहा है. ऐसे में सबसे बडा सवाल यह भी है कि, जब विगत कई वर्षों से 163 महाविद्यालयों में नियमित व पूर्णकालिक प्राचार्य की नियुक्ति नहीं है, तो इस संदर्भ में खुद विद्यापीठ द्वारा कोई कडे कदम अब तक क्यों नहीं उठाये गये है.
उल्लेखनीय है कि, प्राचार्य को महाविद्यालय व विद्यापीठ के बीच सबसे बडी और महत्वपूर्ण कडी माना जाता है. साथ ही प्राचार्य द्वारा ही महाविद्यालय के शिक्षकों व शिक्षकेत्तर कर्मचारियों तथा संबंधित शिक्षा संस्था के बीच संवाद सेतु की भुमिका भी निभाई जाती है. इसके अलावा उच्च व तंत्रशिक्षा विभाग सहित सरकार की ओर से जारी की जानेवाली उपाय योजनाओं तथा सुविधाओं व सहूलियतों को अपने यहां लागू करने का जिम्मा भी प्राचार्यों पर ही होता है. ऐसे में संभाग के 163 महाविद्यालयों में नियमित प्राचार्य नहीं रहने के चलते उपरोक्त तमाम कामों का नियोजन पूरी तरह से गडबडा गया है.
संस्था चालकों द्वारा कार्यकारी प्राचार्य भरती के लिए प्रस्ताव दिये जा रहे है. वहीं नियमित प्राचार्य पद भरती के लिए सरकार की अनुमति आवश्यक है. प्राचार्यों की नियुक्ति हेतु विद्यापीठ प्रशासन द्वारा पहले ही नोटीस जारी की जा चुकी है.
– सुलभा पाटील
उपकुलसचिव, संगाबा अमरावती विवि
* प्राचार्यों को पांच तासिकाएं पढाना अनिवार्य
बता दें कि, महाविद्यालयों में प्राचार्यों को भी प्रति सप्ताह अपने विषय की पांच तासिकाएं पढाना अनिवार्य किया गया है. किंतु अधिकांश महाविद्यालयों में प्राचार्यों द्वारा अध्यापन का कार्य ही नहीं किया जाता. ऐसे में कहा जा सकता है कि, खुद प्राचार्यों द्वारा ही नियमों का उल्लंघन किया जाता है.
* सर्वोच्च न्यायालय के आदेश से आरक्षण गया
महाविद्यालयों में इससे पहले प्राचार्य पद हेतु अनुसूचित जाति व जमाति प्रवर्ग को आरक्षण का लाभ मिला करता था. किंतु प्राचार्य पद आयसोलेटेड रहने के चलते इस पद पर कोई आरक्षण न हो, इस आशय की एक याचिका सर्वोच्च न्यायालय में दायर की गई थी. जिस पर सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया था कि, प्राचार्य पद के लिए कोई आरक्षण नहीं होगा. तब से महाविद्यालयों में शैक्षणिक पात्रता व गुणवत्ता रहनेवाले व्यक्ति को ही प्राचार्य होने का अवसर दिया जाने लगा. यहां विशेष उल्लेखनीय यह है कि, केंद्र सरकार की नई शैक्षणिक नीति के अनुसार अब प्रोफेसर पद प्राचार्य पद की तुलना में बडा है.
… तो संलग्नता क्यों नहीं करते
विद्यापीठ द्वारा बार-बार नोटीस दिये जाने और नियमित प्राचार्य की नियुक्ति करने को लेकर आदेशित किये जाने के बावजूद संस्था चालकों द्वारा प्राचार्य पद भरती क्यों नहीं की जाती तथा प्रभारियों के भरोसे ही कामकाज को क्यों चलाया जा रहा है. यह शिक्षा संस्था संचालकों द्वारा स्पष्ट किया जाना चाहिए. ऐसी मांग करने के साथ ही अब यह भी मांग की जा रही है कि, जिन महाविद्यालयों में विगत लंबे समय से नियमित प्राचार्यों की नियुक्ति नहीं की गई है, उन महाविद्यालयों की विद्यापीठ से संलग्नता रद्द कर दी जानी चाहिए.
* प्राचार्यों के जिलानिहाय रिक्त पद
अमरावती – 27
अकोला – 25
यवतमाल – 46
बुलढाणा – 47
वाशिम – 18