* दिखावटी वस्तुओं की ओर लोगों का रूझान
चांदुर बाजादि.28– कथित आधुनिक दौर में कई बनावटी और सजावटी वस्तुओं का बोलबाला है. नाहक घर में ऐसी चीजें खरीदी जा रही है. जबकि पारंपरिक वस्तुओं की अनदेखी हो रही. इसी कडी में झाडू अर्थात बुहारी का भी समावेश कर सकते हैं. शहरों में झाडू की खरीदी अब केवल दिवाली पर करने का ट्रेंड चल निकला है. जिसके कारण झाडू कारीगरों पर आर्थिक दिक्कत आ गई है. उनका घर परिवार का उदर निर्वाह का प्रश्न कठिन हो जाने का चित्र चहुंओर दिख रहा है.
* लक्ष्मीपूजन में मान
झाडू की लक्ष्मी पूजन दौरान रखने की परंपरा है. यह मान पीढियों से चला आ रहा है. सिंधी पत्तों का उपयोग कर बनी हुई झाडू- बुहारी इसलिए उत्साह से एवं मुंहमांगे दाम पर खरीदी जाती है. ऐसे में केवल दिवाली पर झाडू खरीदने का प्रचलन बढ गया है. बाकी समय घर और आंगन साफ करने के लिए प्लॉस्टिक के साजोसामान का धडल्ले से उपयोग हर घर में हो रहा हैं.
* क्या कहते हैं कारीगर
झाडू कारीगर नरेश वानखडे से बात की तो उन्होंने कहा कि वे अपने पिता की परंपरा को आगे बढा रहे हैं. इस काम में बहुत अधिक आमदनी नहीं हैं. किंतु स्वयं रोजगार देनेवाला व्यवसाय है. दिवाली पर काफी डिमांड होती है. पिछले कुछ वर्षो से इस व्यवसाय में गिरावट आने की बात कहते हुए वानखडे ने बताया कि परिवार का गुजर बसर मुश्किल से हो पाता है.
* आ गये नये साधन
प्लास्टिक के साथ साथ घर आंगन की साफ सफाई के लिए इलेक्ट्रॉनिक साधन भी बडी मात्रा में आ गये हैं. वैक्यूम क्लीनर का बडे प्रमाण में उपयोग हो रहा है. इससे भी झाडू का उपयोग घरों में कम हो जाने की बात एक गृहणी ने कही. उन्होंने कहा कि नई पीढी इस प्रकार के झाडू की बजाय मशीन का उपयोग करने पर जोर देती है. उनका समय बचत का दावा है.
* देहातों में आज भी उपयोग
शहरों में भले ही झाडू का उपयोग सीमित कर दिया गया. किंतु गांव देहात में झाडू को आज भी लक्ष्मी का मान देकर उसका प्रतिदिन उपयोग किया जाता है. गृहणियां सबेरे पहला कार्य घर आंगन की झाडू लेकर सफाई का ही करती है. जिससे देहातों मेें झाडू का विक्री का पैमाना अमूमन बना हुआ है. वहीं नगरो और शहरों में दिनोंदिन कम होता उपयोग झाडू बनानेवाले कारीगरों को चिंतित करता है.