अमरावती

अब शालाओं में भी सिखाया जाता है शतरंज

आज विश्व बुध्दिबल दिवस पर विशेष

  • कभी अमरावती में हुई थी राष्ट्रीय शतरंज स्पर्धा

अमरावती/प्रतिनिधि दि.20 – किसी जमाने में शतरंज को नवाबी खेल और समय व्यतीत करने का जरिया माना जाता था और बेहद चुनिंदा लोग ही इस खेल को खेला करते थे. किंतु मुलत: आंध्रप्रदेश निवासी और कालांतर में अमरावती आकर बस गये नेत्रतज्ञ डॉ. प्रकाश राखेवार ने अमरावती शहर में इस खेल का प्रसार करना शुरू किया. साथ ही बच्चों को इसका प्रशिक्षण देना शुरू करने के साथ ही उनमें इस खेल के प्रति आत्मीयता निर्माण करने का काम भी किया. यहीं वजह है कि, धीरे-धीरे अमरावती में शतरंज खेलनेवालों की संख्या बढने लगी. साथ ही डॉ. प्रकाश राखेवार ने उस समय जिन बच्चों को अपनी सरपरस्ती में शतरंज खेलना सिखाया था, आज वे ग्रैण्ड मास्टर कैंडिडेट मास्टर के तौर पर काम करते हुए नई पीढी को शतरंज सिखा रहे है. जिसके चलते अब शहर की कई शालाओं में विद्यार्थियों को बाकायदा शतरंज पढाया व सिखाया जाता है.
बता दें कि, वर्ष 1990 के दशक दौरान अमरावती में शतरंज की राष्ट्रीय स्पर्धा ली गई थी. उस समय आंध्रप्रदेश निवासी डॉ. प्रकाश राखेवार स्थानीय समर्थ ऑप्टीकल में बतौर नेत्र विशेषज्ञ कार्यरत थे और वे स्वयं एक बेहतरीन शतरंज खिलाडी और प्रशिक्षक थे. जिन्होंने इस खेल का महत्व समझाते हुए कई बच्चों को इस खेल का प्रशिक्षण दिया और उन्हेें खेल के तकनीकी पक्ष के संदर्भ में आवश्यक मार्गदर्शन भी किया. धीरे-धीरे डॉ. प्रकाश राखेवार से शतरंज सीखनेवालों की संख्या बढने लगी और आज उनके कई शार्गीद अमरावती शहर सहित जिले में शतरंज के प्रशिक्षक के तौर पर नई पीढी को शतरंज के गुर सिखा रहे है. ऐसे में कहा जा सकता है कि डॉ. प्रकाश राखेवार ने केवल शतरंज खेल के नये खिलाडी ही तैयार नहीं किये, बल्कि शतरंज के प्रशिक्षकों की टीम तैयार कर दी, जो अगली पीढी को बतौर खिलाडी व बतौर प्रशिक्षक तैयार कर रही है.
बता दें कि, 20 जुलाई 1924 को अंतरराष्ट्रीय शतरंज महासंघ की स्थापना हुई थी, तब से प्रतिवर्ष 20 जुलाई को अंतरराष्ट्रीय शतरंज दिवस के तौर पर मनाया जाता है. डॉ. प्रकाश राखेवार द्वारा जलाई गई अलख के चलते अब अमरावती शहर में कई अभिभावक इस खेल की ओर आकर्षित हुए है और उन्होंने अपने बच्चों को इस खेल में शामिल होने हेतु प्रवृत्त किया है. साथ ही इन दिनों जिला क्रीडा संकुल के इनडोअर हॉल सहित शहर की कई शालाओं में शतरंज की क्लासेस ली जाती है.

  • शालाओं में शतरंज अनिवार्य हो

जिला क्रीडा अधिकारी गणेश जाधव के मुताबिक शतरंज खेलने से एकाग्रता और आत्मविश्वास बढने में मदद होती है. साथ ही वे स्वयंनिर्णय लेने में भी सक्षम होते है. ऐसे में इस खेल के फायदे को देखते हुए सभी शालाओं में शतरंज के खेल को अनिवार्य किया जाना चाहिए, ताकि विद्यार्थियों के बौध्दिक विकास को गति मिले.

  • 6 शालाओं में शतरंज क्लासेस

ग्रैण्ड मास्टर स्वप्नील धोपाडे के मुताबिक अमरावती शहर के स्कुल ऑफ स्कॉलर्स, ज्ञानमाता हाईस्कूल, विश्वभारती पब्लिक स्कूल, इंडो पब्लिक स्कूल, एडीफाय, तोमोय व नारायणदास लढ्ढा स्कूल में शतरंज की कक्षाएं चलायी जाती है. इन सभी शालाओं के विद्यार्थी शतरंज स्पर्धाओं में हिस्सा लेते है और बेहतरीन प्रदर्शन भी करते है.

  •  राखेवार सर की है पुण्याई

डॉ. प्रकाश राखेवार से प्रशिक्षण प्राप्त और कई शतरंज स्पर्धाओं में शानदार उपलब्धि हासिल कर चुके कैंडिडेट मास्टर पवन दोडेजा के मुताबिक कुछ समय के लिए अमरावती आकर रहे डॉ. प्रकाश राखेवार सर ने बेहद अल्प समय में यहां पर शतरंज के खेल को एक आंदोलन की तरह स्थापित और गतिमान कर दिया. उन्होंने हम जैसे कई लोगों को इस खेल का प्रशिक्षण दिया और इस खेल के प्रति आत्मियता निर्माण की. जिसकी बदौलत आज हम सभी इस खेल के क्षेत्र में थोडा-बहुत मुकाम हासिल कर पाये है. यह सब एक तरह से राखेवार सर की पुण्याई है.

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