अमरावती/दि. 19– भाद्रपद की शुल्क पक्ष की पूर्णिमा तिथि से श्राद्ध पक्ष का आगाज हो गया है. पितरों को सिमरन करने के लिए तथा दान धर्म और मृतकों के लिए 16 दिनों तक पिंड क्रिया, तर्पण करने के लिए धर्म स्थलों में तथा घरों में पूर्वजों को याद करने का पर्व शुरु हो गया है. इस बार पंचांगो में श्राद्ध पक्ष की आरंभ में ही तिथियों के मतभेद की वजह से पूर्णिमा तथा प्रथम श्राद्ध को लेकर असमंजस की स्थिति बनी रही. पूर्णिमा तिथि का श्राद्ध कई लोगों ने 17 सितंबर को भी किया और 18 सितंबर को पूर्णिमा और एकम तिथि के आपस में मिलने से भी दो तिथियों को एक ही दिन में पितरों को याद करना पडा. आश्विन कृष्ण पक्ष की अमावस तक 16 तिथियां में पितृपक्ष का आगमन हुआ है. कई विद्वानों के अनुसार इस बार 18 सितंबर को पूर्णिमा तिथि तथा प्रथमा तिथि का आपस में एक ही दिन में आने की वजह से पितृपक्ष की तिथियां 15 दिन ही आनेवाली है.
पंडित महेश शर्मा के अनुसार 2 अक्तूबर तक श्राद्ध पक्ष चलने वाला है. श्राद्ध पक्ष शुरू होने के बाद पितरों का पुण्य स्मरण किया जाता है. 16 तिथियां में अपने परिजनों, माता-पिता के मृतक तिथि पर पिंडदान तथा तर्पण किया जाता है. ब्राह्मणों को तथा कन्याओं को भोजन करवाया जाता है. पितरों के आत्मा की शांति के लिए 16 दिन का यह पितृपक्ष पूर्वजों के पुण्य सिमरन के लिए माना जाता है. इसमें काकबली के लिए मृतक के भोजन से कौए को एक ग्रास निकालकर अर्पित किया जाता है. कौए को यम का मित्र माना जाता है. इसलिए श्राद्ध पक्ष में मृतक के लिए ब्राह्मण व कन्या भोज से कौए के लिए एक ग्रास निकाला जाता है और बाद में छत पर जाकर कौए को आवाज देकर मृतक का भोजन अर्पित किया जाता है, लेकिन इस बार ध्वनि प्रदूषण से तथा पेडों की कटाई की वजह से कौओं की तादाद कम हो गई है. कौओं का पलायन शहरों से हो गया है. इसलिए आजकल श्राद्ध पक्ष में कौओं का इंतजार करने के बाद भी उनके दर्शन दुर्लभ हो गए है. बिना कौओं के ही मृतक का भोजन गाय व अन्य पक्षी-पक्षियों को खिलाया जा रहा है. कौए नहीं दिखाई देने से श्राद्ध पक्ष में लोगों में निराशा भी दिखाई दे रही है. क्योंकि कौए को भोजन खिलाने के बाद ही मृत्यु की आत्मा को शांति का संकेत माना जाता है.