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एकर में नहीं अब गुंठे में खेती

परियोजनाओं के लिए भूमि अधिग्रहण और परिवार में विभाजन के कारण हालात

* काम की तलाश में किसान शहरों की ओर

अमरावती/ दि. 14-कुछ दशक पहले अनेक परिवारों के पास सैकडों एकड खेतीबाडी रहती. सदन किसान के रूप में उनकी गांव में पहचान रहती. किंतु विकास हेतु जमीन अधिग्रहण तथा परिवार बढने और उसमेें हिस्सा बांटने के कारण सभी परिवार की खेती अब एकर में नहीं तो गुंठे में शेष रह गई है. यही वास्तविकता है.
जिले की प्रत्येक तहसील में परियोजनाएं चल रही है. इसके अलावा सडके बनाई जा रही है. तद हेतु जमीन अधिग्रहण किया गया है. साफ है कि इससे खेती कम हुई है. किसानों को कुछ मात्रा में मुआवजा मिला है. उन्होंने अन्य स्थानों पर खेती खरीदने के उदाहरण है.
* हजारों एकड मेें सडकें
जिले की प्रत्येक तहसीलोें में सडके बनी हैं. जिसके लिए जमीन ली गई है, ऐसे ही औद्योगिक तथा अन्य प्रकल्प के लिए खेती की जमीन ली गई है. हाल ही मेें समृध्दि हाईवें के लिए नांदगांव खंडेश्वर, धामणगांव रेलवे और चांदुर रेलवे तहसीलोें मेें जमीन अधिगृहित की गई. साफ है कि खेतीबाडी के लिए भूमि कम हुई है.
* घर-घर में हिस्से
परिवार का विस्तार होने से पिता के नाम की खेती 3-4 संतानों और कालांतर में उनके भी बच्चों के नाम हुई. ऐसे ही परिवार बढने के बाद नौकरी, बीमारी, बच्चों की शिक्षा, विवाह आदि कारणों हेतु खेती की बिक्री भी बढी है. ऐसे ही प्रत्येक तहसील में प्रकल्पों के लिए भूसंपादन किया गया है.

* क्या कहते विशेषज्ञ
विशेषज्ञ प्रवीण राउत ने कहा कि जनसंख्या और रोजगार के लिए जमीन की बिक्री हुई है. ऐसे ही परिवार विभाजन बढने से भाई बंधु में हिस्से बांटे गए. अनेक प्रकल्पों हेतु जमीन का भूसंपादन किया गया. सामाजिक कार्यकर्ता एस. वाय. पाटिल का कहना है कि एक व दो एकड के खातेधारक बढे हैं. बढती जनसंख्या और अन्य अनेक कारण है.

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