अब वन अधिकारी भी पुलिस की तरह संभालेंगे कानून व व्यवस्था
कार्यकारी दंडाधिकारी पद का दर्जा देने पर चल रहा विचार
अमरावती- /दि.3 फौजदारी प्रक्रिया संहिता यानी सीआरपीसी के अंतर्गत वन अधिकारियों को वैधानिक संरक्षण तो प्रदान किया गया. साथ अब उन्हें राजस्व एवं पुलिस अधिकारियों की तरह कार्यकारी दंडाधिकारी पद का दर्जा भी बहाल किया जा सकता है. ऐसा होने की सूरत में जरूरत पडने पर वन अधिकारियों को कानून व व्यवस्था की स्थिति को संभालने का भी स्वतंत्र अधिकार प्राप्त हो सकता है. इसे लेकर सरकार को प्रस्ताव पेश किया जा चुका है.
बता दें कि, दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 4 व 6 के अनुसार वन अधिकारियों द्वारा जांच एजेंसी के रूप में कार्य किया जाता है. इस विभाग के स्वतंत्र कानून है. साथ ही वन संरक्षण के लिहाज से कानून व व्यवस्था को लेकर वन विभाग द्वारा पुलिस एवं राजस्व विभाग की सहायता ली जाती है, लेकिन कई बार पुलिस एवं राजस्व विभाग अपने ही कामों में व्यस्त रहते है और वनविभाग को आवश्यक सहयोग प्रदान नहीं कर पाते. इसके अलावा वन सुरक्षा करते समय वन अधिकारियों द्वारा यदि बल प्रयोग या हथियारों का प्रयोग किया जाता है, तो उनके खिलाफ फौजदारी कार्रवाई भी होने का खतरा रहता है. जिसके चलते वन अधिकारियों द्वारा बल प्रयोग करने से बचा जाता है. ऐसे में वन परिक्षेत्रों में कानून व व्यवस्था की स्थिति को लेकर सवाल और समस्याएं उत्पन्न होती है. इन सभी बातों के मद्देनजर वन परिक्षेत्र अधिकारी से उपवन संरक्षक स्तर के अधिकारियों को कार्यकारी दंडाधिकारी पद का दर्जा प्रदान करने से संबंधित विस्तृत प्रस्ताव राज्य के प्रधान मुख्य वन संरक्षक सुनील लिमये ने राज्य सरकार को प्रस्तुत किया है. जिसे सरकार द्वारा स्वीकार किये जाते ही वन अधिकारियों को कार्यकारी दंडाधिकारी पद का स्तर और अधिकार प्राप्त हो जायेगा.
कोई कानूनी दिक्कत नहीं
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 4 व 5 के अनुसार वन्यजीव अपराध की जांच करने का अधिकार वन एवं पुलिस विभाग को है. इन दोनों महकमों द्वारा की जानेवाली जांच को लेकर अदालत किसी तरह का कोई भेद नहीं करती. परंतू यदि वन अधिकारियों को कार्यकारी दंडाधिकारी पद का दर्जा प्राप्त हो जाता है, तो वन संरक्षण का कार्य और अधिक प्रभावी पध्दति से हो सकेगा. क्योंकि उस सूरत में जंगल के साथ-साथ वन क्षेत्र के आसपास बसें गांवों में भी कानून व व्यवस्था की स्थिति बनाये रखने में वन अधिकारियों की ओर से सहयोग किया जा सकेगा और इसमें किसी भी तरह की कोई कानूनी दिक्कत भी नहीं होगी. क्योंकि वन परिक्षेत्र के अधीन आनेवाले इलाकों में कई गांव भी शामिल होते है. जहां पर कई बार कानून व व्यवस्था की स्थिति बनाये रखने हेतु पुलिस को भी पहुंचने में समय लगता है और ऐसे गांव अक्सर ही वन अधिकारियों की पहुंच के भीतर होते है.