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बाधित मवेशियों के संपर्क में आनेवाले व्यक्ति को भी खतरा
चांदुरबाजार/दि.२९ – कोरोना के साथ साथ अब सीसीएचएफ इस नैनो वायरस का खतरा भी राज्य के मवेशियों पर बढ़ता जा रहा है. राज्य की पशु संवर्धन विभाग के राज्य के पशु संवर्धन विभाग के प्रादेशिक सहायक आयुक्त ने राज्य के सभी पशु संवर्धन विभागीय आयुक्त को भेजे गये पत्र से व्यक्त की है. उन्होंने सावधानी और उपाय योजनाएं बरतने की सूचनाए दी है.
यहां बता दे कि गुजरात के बोथाड व कच्छ इन जिलों के सीसीएचए इस बीमारी का प्रकोप मवेशियोंं में पाया जा रहा है. यह बीमारी जुनोटिक स्वरूप की है.मवेशियों के संपर्क में आने पर लोगों में भी इसका संक्रमण होता है. इस बीमारी का प्रकोप इससे पहले कोंगोें, दक्षिण अफ्रीका, चीन, हंगेरी व इरान इन देशों में होने का इतिहास है. यह रोग नैनो वायरस से फैलता है. यह जीवाणु हायलोमाया प्रजाति के एक जीवाणु से एक मवेशी से दूसरे मवेशी व बाधित मवेशियों के संपर्क में आनेवाले व्यक्तियों तक फैलता है. बाधित मवेशी, पक्षी इस जीवाणु के वाहक के रूप में कार्य करते है. महाराष्ट्र गुजरात राज्य आसपास में सटे होने से इस बीमारी का प्रकोप राज्य में फैलने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता.
राज्य में इस बीमारी का प्रकोप व प्रसार रोकने के लिए राज्य के पशु संवर्धन विभाग ने राज्य के सभी विभागीय पशु संवर्धन आयुक्त को सावधानी के उपाय व उपचार के बारे में सूचित किया है.राज्य से सटे अन्य राज्यों से विशेषत: गुजरात से आनेवाले मवेशियों की जांच करने के निर्देश दिए गये है. बाधित जानवरों के संपर्क में आनेवाले व्यक्तियों में बुखार आना, बदन दर्द, शरीर पर चट्टे आना, घुटनों का दर्द , उल्टी होना जैसे लक्षण दिखाई देने पर नजदीक के स्वास्थ्य विभाग को जानकारी देकर उपचार करना जरूरी है. अंतर्राज्य सीमा पर राज्य से आनेवाले पशुधन की जांच कर मवेशियों के शरीर पर चिपकने वाले गोचिड रहने पर प्रतिबंधित दवा का छिडकाव किया जाए. गुजरात से अपने राज्य में गिरगाई, मेहसाना व जाफराबादी, भैंस के अलावा भेड बकरियों व अन्य मवेशी बडे पैमाने पर लाए जाते है. सीसी एचएफ यह बीमारी गुजरात राज्य के कच्छ, बोथाड जिले में जब तक नियंत्रण में नहीं आता तब तक इन जिलों के मवेशियों का खरीदी करना चराई के लिए राज्य में लाने से प्रतिबंध लगाया गया है. इसके अलावा मवेशियों के बाजार पर विशेष ध्यान देने की बात कही गई है. बीमार मवेशियों पर उपचार करते समय हैंडग्लब्ज, मास्क, चश्मा व पीपीई कीट का उपयोग पशु चिकित्सक करेंगे.