अब विद्यापीठ की गडबडियों पर राज्य सरकार की ‘वक्रदृष्टि’
हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति की जांच समिति गठित

* विभिन्न अनियमितताओं की समिति करेगी पडताल
* कई बडे अधिकारियों पर गाज गिरने की संभावना
अमरावती/दि. 15 – विगत लंबे समय से गडबडियों एवं अनियमितताओं के चलते कई तरह के विवादों के घेरे में रहनेवाले संत गाडगेबाबा अमरावती विश्वविद्यालय पर आखिरकार राज्य सरकार के उच्च व तंत्र शिक्षा विभाग की ‘वक्रदृष्टि’ पड ही गई है. जिसके चलते उच्च व तंत्र शिक्षा विभाग ने मुंबई हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश मारोतीराव गायकवाड की अध्यक्षता के तहत 4 सदस्यीय समिति का गठन करते हुए इस समिति को विभिन्न मुद्दों की जांच-पडताल कर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है. इस समिति में अध्यक्ष के तौर पर सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति मारोतीराव गायकवाड, सदस्य के तौर पर उच्च शिक्षा संचालनालय के सहायक संचालक (लेखा) शिवाजी ठोंबरे व सावित्रीबाई फुले पुणे विद्यापीठ की वरिष्ठ विधि अधिकारी डॉ. परवीन सैयद तथा सदस्य सचिव के तौर पर अमरावती के विभागीय उच्च शिक्षा सहसंचालक केशव तुपे की नियुक्ति की गई है.
बता दें कि, संगाबा अमरावती विद्यापीठ से संबंधित मुद्दों को लेकर जांच करते हुए अपनी रिपोर्ट पेश करने के लिए 7 अक्तूबर 2024 के शासन निर्णयानुसार समिति का गठन किया गया था. जिसे लेकर दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने समिति के कामकाज पर स्थगिती लगाई थी. ऐसे में समिति की पुनर्रचना का मामला सरकार के समक्ष विचाराधीन था. इसके मुताबिक राज्य सरकार ने 7 अक्तूबर 2024 के निर्णय को रद्द करते हुए संगाबा अमरावती विद्यापीठ के संबंधित मुद्दों की जांच करने के लिए नए सिरे से न्या. गायकवाड के नेतृत्ववाली समिति का गठन किया है. जिसे लेकर विगत 12 फरवरी को ही शासनादेश जारी किया गया है.
राज्य सरकार की ओर से जारी शासनादेश में स्पष्ट तौर पर संत गाडगेबाबा अमरावती विद्यापीठ के कामकाज को लेकर गंभीर किस्म के मुद्दे उठाएं गए है और समिति को उन सभी मुद्दों की गहन जांच-पडताल करते हुए अपनी रिपोर्ट पेश करने हेतु निर्देशित किया गया है. इस शासनादेश के मुताबिक विद्यापीठ द्वारा आर्थिक लेखा परिक्षणों का शुल्क अदा नहीं किया गया है और बुलढाणा स्थित मॉडल डिग्री कॉलेज की इमारत के लिए निधि वितरित करने के बावजूद भी अब तक इमारत का निर्माण नहीं किया गया है. सबसे गंभीर मुद्दा यह है कि, आकृतिबंध को लेकर 22 नवंबर 2011 का शासनादेश रद्द हो जाने के बावजूद भी उसी शासनादेश के आधार पर कई कर्मचारियों को नियुक्ति व पदोन्नती दी गई है. साथ ही अनुकंपा तत्व पर नियुक्ति हेतु पद उपलब्ध नहीं रहने के बावजूद विद्यापीठ की ओर से इसे लेकर प्रस्ताव पेश किए गए है. इसके अलावा जिन मामलों में अनुकंपा तत्व पर नियुक्ति करने हेतु उच्च शिक्षा संचालक द्वारा मान्यता प्रदान की गई है, ऐसे कई मामलो में या तो नियुक्तियां ही नहीं की गई या फिर नियुक्ति करने में विलंब किया गया. इसके साथ ही विद्यापीठ द्वारा अपने फंड से की गई रोजंदारी कर्मचारियों की नियुक्ति को तय समय पर समाप्त नहीं किया गया. जिससे अदालती मुकदमों की संख्या बढी और सरकार पर बिना वजह आर्थिक बोझ बढ रहा है. सबसे विशेष एवं सनसनीखेज मुद्दा उच्च शिक्षा विभाग द्वारा यह उठाया गया है कि, संगाबा अमरावती विद्यापीठ के कुलसचिव व शारीरिक शिक्षा संचालक के पद पर नियुक्ति में अनियमितता बरती गई. यह सभी मुद्दे अपने आप में काफी गंभीर है. जिन्हें राज्य सरकार के उच्च व तंत्र शिक्षा विभाग द्वारा उठाया गया है और न्या. गायकवाड के अध्यक्षतावाली समिति को इन सभी मुद्दों की गहन जांच-पडताल करने का निर्देश जारी किया है.
इस संदर्भ में संगाबा अमरावती विद्यापीठ से जुडे स्थानीय सूत्रों से जानकारी एवं प्रतिक्रिया हेतु संपर्क किए जाने पर पता चला कि, इसमें से कई मामले विगत कुछ वर्षों से लगातार चर्चा में चल रहे है. जिनकी जांच किए जाने की मांग करते हुए उच्च व तंत्र शिक्षा विभाग के पास संभाग से बडे पैमाने पर शिक्षाविदों द्वारा शिकायते भी की गई है. जिन्हें गंभीरता से लेते हुए अब राज्य सरकार ने सभी मुद्दों की जांच करवाने का निर्णय लिया है. जिसके चलते विद्यापीठ से जुडे कई बडे अधिकारियों पर कार्रवाई की गाज भी गिर सकती है. क्योंकि विद्यापीठ में जहां एक ओर जमकर राजनीतिक हस्तक्षेप के चलते नियुक्ति एवं प्रमोशन का खेल चल रहा है, वहीं दूसरी ओर कई वरिष्ठ अधिकारी ऐसे भी है, जो सालोसाल से विद्यापीठ को अपनी बपौती समझते हुए एक ही स्थान पर टिके हुए है और ‘मलाईदार’ पदों का भरपूर लाभ भी ले रहे है. खास बात यह भी है कि, इन्हीं मुद्दों को लेकर विद्यापीठ की सिनेट बैठकों में अक्सर ही हंगामा होता रहा है. लेकिन अब तक किसी भी मुद्दे का यथोचित समाधान नहीं हो पाया था. परंतु अब हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त जस्टीस की अध्यक्षतावाली जांच समिति द्वारा की जानेवाली पडताल के बाद दूध का दूध और पानी का पानी हो जाने की पूरी उम्मीद जताई जा रही है.