* अंतर्राष्ट्रीय फारेस्ट दिवस पर विशेष
अमरावती/ दि.21– जंगल के संतुलन को बनाए रखने के लिए वहां के जंगली जानवरों की सुरक्षा सबसे ज्यादा जरुरी हैं. लिहाजा राज्य का वन विभाग इन वनजीवों की रेबिज से सुरक्षा को लेकर खास मुसतैद नजर आ रहा हैं. अमरावती जिले के हरिसाल वनक्षेत्रों में गत वर्ष नवंबर माह में तीन जंगली सूअरों के साथ भी दो सियारों में घातक रैबिज की पुष्टि हुई थी. जिसके बाद वन महकमें में हडकंप मच गया था और कई आवारा श्वानों के साथ ही हिरण व नीलगाय जैसे प्राणियों की रैबिज को लेकर जांच की गई थी. उस समय कुल छह वनप्राणियों को रैबिजग्रस्त पाया गया था. जिसके बाद वन विभाग ने इन प्राणियों का उपचार करवाया.
शिकारी प्रवृत्ति के जानवरों में रैबिज की मौजूदगी को देखते हुए बडे शिकारी प्राणियों में भी रैबिज पाए जाने का खतरा बढ गया हैं. आवारा श्वान अक्सर हिरण व नीलगाय जैसे प्राणियों पर हमला कर निशाना बनाते हैं. इनके माध्यम से हिरण के झूंड में रैबिज फैलने का खतरा अधिक हैं. जबकि हिरण का शिकार तेंदुओं व बाघों व्दारा किया जाता हैं. ऐसी स्थिति में मेलघाट में जंगली जानवरों की सुरक्षा एक मसला बनकर उभरी है.
नवंबर 2021 में स्थानीय वनविभाग की ओर से राज्य वनविभाग को पत्र लिखकर कहा गया था कि, मेलघाट वन क्षेत्र में मौजूद करीब 30 हजार जंगली श्वानो व लगभग इतनी ही संख्या में मौजूद जंगली सुअरों तथा सियारों को रैबिज के इंजेक्शन देने की आवश्यकता हैं. ऐसा न होने की स्थिति में मेलघाट व्याघ्र प्रकल्प को काफी नुकसान उठाना पड सकता हैं. जिसके बाद हाल ही में वनमंत्रालय व्दारा इस मामले को मंजूरी दे दी गई है. अप्रैल माह से ही संबंधित वन प्राणियों को रैबिज के इंजेक्शन देने की मुहिम शुरु कर दी जाएगी.
रैबिज से वन प्राणियों में बडी बीमारी का खतरा
वन क्षेत्र में अगर रैबिज की समस्या को नियंत्रित नहीं किया गया तो इससे वन प्राणियों में बडी बीमारियों का खतरा बढ सकता हैं. इसी बात को ध्यान में रखते हुए यह कदम उठाया गया हैं.
– डॉ. शशांक माली, वन्य पशु सुरक्षा अधिकारी