भाजपा और राणा के बीच अब ‘मन की खटास’
राणा की ओर से लगाया गया चुनाव में निष्क्रियता का आरोप
* भाजपा की ओर से कोई खास स्पष्टीकरण नहीं, तनातनी बढी
अमरावती/दि.6– लोकसभा चुनाव की मतगणना का नतीजा सामने आते ही अब अमरावती संसदीय क्षेत्र में भारतीय जनता पार्टी तथा राणा दम्पति के बीच कुछ हद तक आरोप-प्रत्यारोप वाला मामला शुरु हो गया है. जिसके चलते दोनों और से तनातनी कुछ हद तक बढ रही है. जिसका हाल फिलहाल मेें कोई हल निकलता दिखाई नहीं दे रहा. राणा गुट की ओर से आरोप लगाया जा रहा है कि, भाजपा द्वारा नवनीत राणा को पार्टी प्रत्याशी बनाये जाने के बावजूद भी भाजपा के स्थानीय पदाधिकारियों ने नवनीत राणा के पक्ष में सही तरीके से काम नहीं किया, बल्कि कुछ लोगों ने तो ‘अंदरबट्टे’ में पार्टी प्रत्याशी के खिलाफ काम किया. जिसकी वजह से नवनीत राणा को हार का सामना करना पडा. वहीं भाजपा की ओर से केवल इतना कहकर पूरे मामले में पर्दा डालने का प्रयास किया गया कि, अगर भाजपा पदाधिकारियों द्वारा नवनीत राणा के लिए काम नहीं किया जाता, तो उन्हें 5 लाख से अधिक वोट ही नहीं मिल पाते. क्योंकि जिन लोगों ने नवनीत राणा को वर्ष 2019 में भर-भरकर वोट दिया था, वह वोट बैंक तो इस बार कांग्रेस प्रत्याशी की ओर खीसक गया था, ऐेसे में भाजपा पदाधिकरियों की मेहनत के दम पर ही नवनीत राणा को करीब 5 लाख 6 हजार वोट मिल पाये.
यहां यह विशेष उल्लेखनीय है कि, जिले की निवर्तमान सांसद नवनीत राणा एवं उनके पति व विधायक रवि राणा की भाजपा के स्थानीय पदाधिकारियों के साथ की भी पटरी नहीं बैठी. वर्ष 2014 में जब राज्य में मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्ववाली सरकार बनी थी और विधान परिषद सदस्य प्रवीण पोटे पाटिल को जिला पालकमंत्री बनाया गया था, तब राज्य के सत्तापक्ष के साथ रहने के बावजूद विधायक रवि राणा ने भीम टेकडी पर आयोजित कार्यक्रम में प्रवीण पोटे पाटिल के लिए ‘बालकमंत्री’ संबोधन का प्रयोग किया था. इसके साथ ही बडनेरा निर्वाचन क्षेत्र में शामिल अमरावती महानगर पालिका के प्रभागों में होने वाले विकास कामों के श्रेय को लेकर भी विधायक रवि राणा और भापा के स्थानीय पदाधिकारियों के बीच हमेशा ही तनातनी चलती रही. वहीं वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस व राकांपा के समर्थन से निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर सांसद निर्वाचित होने वाली नवनीत राणा ने लोकसभा में पहुंचने के तुरंत बाद ही पीएम मोदी के नेतृत्ववाली भाजपा सरकार का समर्थन करना शुरु कर दिया था और नवनीत राणा बहुत जल्द ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की ‘गुडबुक’ में शामिल हो गई थी. साथ ही इस दौरान बडनेरा निर्वाचन क्षेत्र से कांग्रेस व राकांपा सहित समविचारी दलों का समर्थन लेते हुए विधानसभा में पहुंचने वाले रवि राणा ने कांग्रेस व राकांपा के नेतृत्व वाली महाविकास आघाडी का समर्थन करने की बजाय भाजपा नेता व तब मुख्यमंत्री पद के दावेदार रहने वाले देवेंद्र फडणवीस का समर्थन करना शुरु कर दिया था. परंतु राज्य एवं राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा के तमाम बडे नेताओं के साथ बेहद नजदीकी राजनीतिक संबंध साधने वाले राणा दम्पति की इस दौरान भाजपा के स्थानीय नेताओं के साथ खटपट लगातार बढती ही रही. वहीं खास बात यह भी रही कि, इस दौरान प्रदेश भाजपा के कद्दावर नेता रहने वाले डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस सहित भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष चंद्रशेखर बावनकुले अनेकों बार राणा दम्पति के बुलावे पर अमरावती आये और युवा स्वाभिमान पार्टी के कार्यक्रमों में शिरकत की. ऐसे ही एक कार्यक्रम के दौरान भाजपा प्रदेशाध्यक्ष चंद्रशेखर बावनकुले ने इशारों ही इशरों में अमरावती संसदीय क्षेत्र को भाजपा के कोटे में रखने और यहां से नवनीत राणा को प्रत्याशी बनाये जाने का संकेत दे दिया था. उस समय स्थिति कुछ ऐसी थी कि, देवेंद्र फडणवीस की ओर से भी राणा दम्पति को कुछ विशेष तवज्जों मिला करती थी और अमरावती के बारे में कुछ भी सोच-विचार करते समय देवेंद्र फडणवीस द्वारा भाजपा के स्थानीय पदाधिकारियों की बजाय सबसे पहले राणा दम्पति से पूछताछ व बातचीत की जाती थी. ऐसे में राणा दम्पति के हाथों पहले ही अपमानित रहने वाले भाजपा के स्थानीय पदाधिकारी अपने नेताओं के व्यवहार और अपनी एक तरह की अनदेखी से पहले ही काफी आहत थे. यहीं वजह रही कि, जब-जब डिप्टी सीएम फडणवीस व प्रदेशाध्यक्ष बावनकुले ने अमरावती आकर राणा दम्पति के किसी कार्यक्रम में शिरकत की, तो ऐसे समय राज्यसभा सांसद डॉ. अनिल बोंडे के अलावा भाजपा का कोई स्थानीय नेता या पदाधिकारी ऐसे कार्यक्रमों में दिखाई नहीं दिया.
इन्हीं तमाम बातों को ध्यान में रखते हुए जब लोकसभा चुनाव से ठीक पहले यह सुगबुगाहट शुरु हो गई कि, नवनीत राणा को भाजपा द्वारा पार्टी में प्रवेश देने के साथ ही उन्हें अमरावती संसदीय क्षेत्र से प्रत्याशी भी बनाया जा सकता है और इसके लिए नवनीत राणा के खिलाफ जाति वैधता के मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में चल रहे मुकदमें को भी ‘अदृश्य शक्ति’ के जरिए रफा-दफा किया जा सकता है, तो अमरावती शहर सहित जिले के भाजपा के सभी पदाधिकारियों ने जबर्दस्त एकजूटता दिखाई और सभी लोग एक साथ मिलकर पार्टी प्रदेशाध्यक्ष बावनकुले से मिलने नागपुर पहुंचे थे. जिनसे मुलाकात के समय गुहार लगाई गई थी कि, नवनीत राणा को किसी भी सूरत में भाजपा में शामिल न किया जाये और अमरावती संसदीय क्षेत्र से नवनीत राणा को पार्टी प्रत्याशी न बनाया जाये. लेकिन भाजपा के स्थानीय नेताओं और पदाधिकारियों की यह कोशिश अगले ही दिन व्यर्थ साबित हुई. जब बिना पार्टी प्रवेश के ही भाजपा ने नवनीत राणा को अमरावती संसदीय क्षेत्र से अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया था. जिसे लेकर पार्टी के केंद्रीय कार्यालय से प्रत्याशियों के नामों को लेकर जारी सूची में अमरावती संसदीय क्षेत्र से नवनीत राणा को प्रत्याशी बताया गया था. जिसके बाद उसी दिन शाम में भाजपा के स्थानीय पदाधिकारियों को एक बार फिर नागपुर बुलाया गया. इसके साथ ही नवनीत राणा भी अपने समर्थकों सहित पूरे लावलष्कर के साथ नागपुर पहुंची और फिर देर रात नवनीत राणा का भाजपा में प्रवेश हुआ. इसी दौरान बडी तेजी से घटित घटनाक्रम के बीच विगत करीब डेढ वर्ष से सुप्रीम कोर्ट के समक्ष लंबित रहने वाला नवनीत राणा के जाति वैधता प्रमाणपत्र का मामला भी ‘सलट’ गया. जिसका ‘क्लोज फॉर ऑर्डर’ फरवरी माह के अंत में हुआ था और 15 मार्च तक उस मामले का फैसला आ जाना चाहिए था. लेकिन फैसले के इंतजार हेतु मार्च माह तक अंत तक इंतजार करना पडा था और ऐन नामांकन प्रक्रिया के समय इस मामले का फैसला नवनीत राणा के पक्ष में आया. जब उन्होंने भाजपा में प्रवेश कर लिया और भाजपा द्वारा उन्हें अमरावती संसदीय क्षेत्र से अपना प्रत्याशी बनाया गया.
लेकिन इन तमाम उठापठक के बावजूद भी अनुशासित राजनीतिक दल कही जाने वाली भारतीय जनता पार्टी के स्थानीय नेता व पदाधिकारी अपने आप को पार्टी नेतृत्व के फैसले से नहीं जोड सके. जिसमें से कुछ पदाधिकारियों ने तो खुले तौर पर बगावती सुर उठाते हुए स्पष्ट कर दिया कि, वे नवनीत राणा के लिए प्रचार नहीं करेंगे. जिनमें तुषार भारतीय का नाम सबसे प्रमुख था, जिन्होंने अमरावती की बजाय वर्धा संसदीय क्षेत्र में जाकर वहां के भाजपा प्रत्याशी का प्रचार किया. वहीं भाजपा के कई स्थानीय पदाधिकारी अपनी पार्टी निष्ठा और कुछ हद तक मजबूरी के चलते नवनीत राणा के साथ खडे तो दिखाई दिये, लेकिन उन्होंने दिल से नवनीत राणा के पक्ष में प्रचार नहीं किया. यह भी साफ दिखाई दिया.
उधर दूसरी ओर भले ही नवनीत राणा ने अधिकृत तौर पर भाजपा में प्रवेश किया था और वे भाजपा के कमल चुनाव चिन्ह पर पार्टी की अधिकृत प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड रही थी. लेकिन चुनाव प्रचार की पूरी कमान भाजपा के स्थानीय नेताओं की बजाय युवा स्वाभिमान पार्टी के नेताओं यानि विधायक रवि राणा व उनके भाई सुनील राणा के ही पास थी तथा भाजपा के स्थानीय पदाधिकारियों को राणा दम्पति व युवा स्वाभिमान पार्टी के पदाधिकारियों की ओर से दिये जाने वाले दिशा-निर्देशों के मुताबिक ही काम करना पड रहा था, यह बात भी भाजपा के कई स्थानीय नेताओं व पदाधिकारियों को नागवार गुजर रही थी, लेकिन वे सभी जैसे-तैसे मतदान निपट जाने का इंतजार कर रहे थे और मतदान के निपटते ही भाजपा के सभी पदाधिकारियों ने एक तरह से राणा दम्पति के साथ अपना रिश्ता खत्म कर लिया. ऐसा इसलिए भी कहा जा सकता है कि, मतगणना वाले दिन मतगणना स्थल पर भाजपा की पूर्व जिलाध्यक्ष निवेदिता चौधरी के अलावा भाजपा का कोई नेता दिनभर के दौरान एक बार के लिए भी दिखाई नहीं दिया. हालांकि मतगणना के खत्म होते-होते भाजपा के ग्रामीण जिलाध्यक्ष व राज्यसभा सांसद अनिल बोंडे कुछ देर के लिए लोकशाही भवन जरुर पहुंचे जिन्होंने मतगणना को लेकर अपनी आपत्ति दर्ज कराने के साथ ही वोटों की दोबारा गिनती किये जाने की मांग उठाई. जिसके बाद वे भी वहां से चल दिये. इसके अलावा ध्यान देने वाली बात यह भी है कि, 4 जून की शाम मतगणना के नतीजे घोषित हुए अब करीब 72 घंटों से अधिक समय बीत चुका है, लेकिन शहर सहित जिले का कोई भाजपाई नेता या पदाधिकारी अपनी पराजीत प्रत्याशी नवनीत राणा को सांत्वना देने या उनके साथ बैठकर हार के कारणों की समीक्षा करने के लिए शंकर नगर परिसर स्थित ‘गंगा-सावित्री’ बंगले पर नहीं पहुंचा है. इसे लेकर भी अच्छी खासी चर्चाएं चल रही है और इन्हीं सब बातों के मद्दनेजर अब राणा दम्पति एवं युवा स्वाभिमान पार्टी के पदाधिकारियों द्वारा आरोप लगाया गया जा रहा है कि, भाजपा के स्थानीय नेताओं ने भी जानबुझकर अपनी खुन्नस के चलते अपनी ही पार्टी और प्रत्याशी की लुटिया डूबोई.
उधर दूसरी ओर भाजपा द्वारा राणा दम्पति व युवा स्वाभिमान पार्टी की ओर से लगाये जा रहे तमाम आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए कहा गया है कि, अगर भाजपा के स्थानीय पदाधिकारियों व स्थानीय कार्यकर्ताओं द्वारा नवनीत राणा के पक्ष में काम नहीं किया जाता, तो नवनीत राणा को 5 लाख 6 हजार वोट नहीं मिलते. क्योंकि पिछली बार जिन मतदाताओं ने नवनीत राणा को वोट दिया था, उनमें से आधे से अधिक मतदाताओं ने इस बार कांगे्रस प्रत्याशी के पक्ष में वोट डाला. ऐसे में नवनीत राणा को मिले सभी वोट भाजपा समर्थक मतदाताओं के ही है. जिसके जवाब में राणा गुट का कहना रहा कि, नवनीत राणा ने वर्ष 2014 के अपने पहले लोकसभा चुनाव में ही लगभग 4 लाख वोट हासिल किये थे और वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में लगभग 5 लाख 10 हजार वोट हासिल करते हुए नवनीत राणा चुनाव जीती थी. वहीं इस बार के चुनाव में नवनीत राणा को 5 लाख 6 हजार वोट मिले है, जो पूरी तरह से राणा एवं युवा स्वाभिमान पार्टी समर्थकों के वोट है. ऐसे में भाजपा समर्थक वोट कहा चले गये. इस बात का अब भाजपा के स्थानीय नेताओं ने जवाब देना चाहिए.
कुल मिलाकर अब स्थिति यह है कि, भाजपा के स्थानीय नेताओं तथा राणा गुट के बीच ‘मन की बात’ बनते-बनते बिगड गई और नवनीत राणा के चुनाव हार जाते ही अब दोनों ओर से ‘मन की खटास’ शुरु हो गई है. जिसके हाल फिलहाल में खत्म होने के कोई आसार नहीं है. ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि, आखिर खटासवाली यह बात कहां तलक जाती है.