यांत्रिक खेती की वजह से जिले में घटी बैलों की संख्या
पोले पर पूजा के लिए शहरी क्षेत्र में नहीं मिलते बैल
अमरावती/दि.14 – बदलते वक्त के साथ खेती-किसानी के तरीके भी बदल गए है और इन दिनों खेत में बुआई व जुटाई जैसे काम ट्रैक्टरों सहित अन्य यंत्रों से किए जाते है. साथ ही कुएं से पानी निकालने का काम मोट की बजाय विद्युत पंप से किया जाता है. जिसके चलते जिले के किसानों द्बारा अब बैलों की बजाय आधुनिक यंत्रों का प्रयोग किया जाता है. जिसकी वजह से खेती किसानी के कामों में बैलों का प्रयोग धीरे-धीरे घटने लगा है और इसकी वजह से जिले में बैलों की संख्या घट रही है. जिसके परिणाम स्वरुप अब शहरी इलाकों वाले कई क्षेत्रों में पोले के दिन पूजा करने हेतु बैल जोडियां ही नहीं मिलती.
उल्लेखनीय है कि, करीब एक दशक पहले तक खेतों में बुआई व जुताई के कामों सहित कुएं से पानी निकालने हेतु मोट चलाने के काम में बैल जोडियों का प्रयोग किया जाता था और खेतों में बैलजोडी को किसानों का सबसे भरोसेमंद साथी माना जाता था. लेकिन बदलते वक्त के साथ खेती किसानी के कामों में आधुनिक तंत्रज्ञान का उपयोग होने लगा है. जिसके चलते बैलों का स्थान ट्रैक्टरों ने ले लिया है. पशुसंवर्धन विभाग द्बारा दी गई जानकारी के मुताबिक इस समय जिले में 5 लाख 60 हजार पशुधन है. जिसमें से बैलों की संख्या 80 हजार 753 तथा बछडों की संख्या 38 हजार 641 है. वर्ष 2012 की पशुगणना के मुताबिक जिले में बैलों की संख्या सबसे कम है. वर्ष 2012 से पहले यह संख्या 2 लाख 55 हजार के आसपास थी. जो अब घटकर आधे से भी कम हो गई है. वर्ष 2012-13 में जिले में पशुगणना हुई थी. उस समय खेती के काम हेतु प्रयुक्त होने वाले बैलों की संख्या 3 लाख 78 हजार के आसपास थी. इसके पश्चात वर्ष 2022-23 में यह संख्या घटकर 80 हजार के आसपास जा पहुंची है.
इस दिनों खेती किसानी की पद्धति बदल गई है और अत्याधुनिक तंत्रज्ञान के चलते किसानों के पास कई तरह के यंत्र आ गए है. वहीं बैलजोडी पालने के लिए किसानों को काफी अधिक खर्च करना पडता है. जिसकी तुलना में ट्रैक्टर व अन्य यंत्रों के जरिए काम करना सस्ता पडता है. हालांकि अब भी डवरणी व सारे फालने जैसे कामों के लिए बैलों का ही प्रयोग किया जाता है. क्योंकि ऐसे काम मशीनों के जरिए व्यवस्थित ढंग से नहीं हो पाते. विगत 8-10 वर्षों से खेती किसानी का जमकर आधुनिकीकरण व यांत्रिकीकरण हुआ है. 10-15 वर्ष पहले खेती-किसानी के काम ‘सर्जा-राजा’ की जोडी के बिना होना बेहद असंभव था. परंतु कृषि संबंधी मशीनरी आने के बाद कम समय और कम मेहनत में ज्यादा काम होने लगे. हालांकि दोनों ही स्थिति में पैसा उतना ही खर्च होता था. जिसके चलते किसानों का रुझान बैलजोडी से काम करने की बजाय यांत्रिकीकरण की ओर बढने लगा. वहीं इन दिनों गांवों में मवेशियों के चारे-पानी को लेकर भी काफी दिक्कते है. इस वजह से भी बैलजोडियों की संख्या घट गई है.
* 90 फीसद काम मशीनों से
खेत में हल जोतना, फसलों की बुआई करना, फसलों के बीच जुताई करना और फसलों की कटाई करना इन सभी कामों के साथ ही खेत से फसल को घर तक अथवा बाजार तक पहुंचाना जैसे कामों को अब यंत्रों के जरिए ही किया जाने लगा है. जिसके चलते खेतों में बैलों का प्रयोग काफी हद तक घट गया है.
* बैलजोडी तथा ट्रैक्टर के फायदे व नुकसान
इस समय एक बैलजोडी 90 हजार रुपए तक आती है. वहीं एक ट्रैक्टर 8 लाख रुपए तक मिलता है. जिस तरह बैलजोडी के लिए चारेपानी का इंतजाम करना पडता है, उसी तरह ट्रैक्टर में भी इंधन के तौर पर डीजल भरवाना पडता है. हालांकि फायदा यह है कि, बैलजोडी की तुलना में ट्रैक्टर के जरिए काफी तेज गति से काम होता है और ट्रैक्टर ट्रॉली के जरिए खेत से कृषि उपज बाजार में भी जल्दी पहुंचाया जा सकता है.
* खेतों में देशी बैलों का प्रयोग
बैलों की संख्या पहले की तुलना में काफी हद तक कम हो गई है. ग्रामीण क्षेत्र में हालांकि अब भी बैलजोडियों के जरिए ही खेती किसानी के काम किए जाते है. हर बछडा 2 साल में परिपक्व बैल के रुप में तैयार हो जाता है. जिसके बाद वह 9 से 10 साल तक और कभी-कभी 14 साल तक खेती किसानी के काम में आता है. जिले में संकरित व देशी प्रजाति के बैल पाए जाते है. इसमें से संकरित बैलों को कंधा नहीं रहने की वजह से उनका खेती किसानी के कामों में प्रयोग नहीं हो सकता. जिसके चलते खेती-किसानी में देशी बैलों का प्रयोग किया जाता है.
– डॉ. संजय कावरे,
उपायुक्त, जिला पशु संवर्धन
* क्या कहते हैं किसान?
पोले के पर्व पर तहसील क्षेत्र के कुछ किसानों से बातचीत करने पर पता चला कि, पहले के जमाने में खेतीबाडी संयुक्त हुआ करती थी. जिसके चलते प्रत्येक किसान परिवार के यहां 2-3 बैलजोडियां रहा करती थी. परंतु अब खेतों का विभाजन हो जाने के चलते इतनी बैलजोडियों की जरुरत नहीं पडती. साथ ही इन दिनों खेती किसानी के ज्यादातर कामों में यंत्रों का प्रयोग होता है. हालांकि इसके बावजूद कुछ काम ऐसे है, जिन्हें बैलजोडियों के साथ ही करना पडता है. क्योंकि उन कामों को मशीनों के जरिए करने पर फसलों का नुकसान हो सकता है. इसके साथ ही सभी किसानों ने यह भी स्वीकार किया कि, खेती किसानी करने का असली मजा बैलजोडियों के साथ पारंपारिक पद्धति से काम करने में ही है.