चुनाव परिणामों पश्चात पदाधिकारी, कार्यकर्ता रिलैक्स
शुरू हुआ जीत हार का विश्लेषण
* अब कम से कम दो माह निश्चिंत
अमरावती/ दि. 25-विधानसभा चुनाव के लिए महीना भर अपने सभी कामकाज साइड में रखकर पैरों में मानो भिंगरी लगाकर घूम रहे कार्यकर्ता अब परिणाम घोषित होने के बाद थोडे रिलैक्स हो गये हैं. अब अपने समर्थित उम्मीदवार की जय पराजय की चर्चा कर रहे हैं. सोशल मीडिया पर ही एक्टीव है. वहीं पदाधिकारियों ने पार्टी प्रत्याशी के बेहतर प्रदर्शन के बाद ठंडी सांस ली हैं. हालांकि कुछ नेताओं के हिस्से में पराजय आयी. उनके कार्यकर्ता पराजय की चीरफाड कर रहे हैं.
* दिवाली बाद लगे थे काम से
विधानसभा चुनाव की अधिसूचना भले ही 20 अक्तूबर को जारी हो गई थी. किंतु कार्यकर्ता नामांकन के साथ काम से लगे थे. नामांकन रैलीया दिवाली से पहले निपटा ली गई. उसकी समय सारणी भी वैसी ही थी. नामांकन पीछे लेने का दिन दिवाली पश्चात 4 नवंबर रहने से सही परिश्रम दिवाली बाद ही प्रारंभ हुआ. घर की लक्ष्मीपूजा संपन्न कर कई कार्यकर्ता अपने उम्मीदवार के साथ ऐसे हो लिए कि घर बार भूला बैठे थे. सुबह, दोपहर, शाम, हर वक्त उन पर प्रचार और जनसंपर्क का जुनून सवार था.
* पदाधिकारियों को लोड अधिक
कार्यकर्ताओं के लिए पदाधिकारियों का आदेश मानने का काम था. जबकि पदाधिकारियों पर जिम्मेदारी अधिक रही. फिर वह कोई भी दल या गठबंधन हो. कार्यकर्ताओं को उनके क्षेत्र में प्रचार बूथ की जिम्मेदारी देना. प्रत्याशी के उस भाग में पदयात्रा, दौरे रहने पर क्षेत्र के प्रमुख लोगों को लेकर भीड जुटाना और अन्य जिम्मेदारियां थी. साथ में कार्य बराबर संपन्न हुआ अथवा नहीं, इसकी रिपोर्टिंग लेना भी पदाधिकारियों के सामने था. जिससे हर समय उनके फोन बिजी रहते. कई पदाधिकारियों ने चुनावी काम के लिए एकत्रित नंबर का जुगाड कर रखा था.
* दिन आगे बढे, काम बढा
चुनाव प्रचार के जैसे-जैसे दिन बीतते जा रहे थे. पदाधिकारियों का वर्कलोड बढ रहा था. प्रत्येक घर तक अपने प्रत्याशी और पार्टी का वचननामा एवं चुनाव निशानी बराबर पहुंचाना. इवीएम पर किस नंबर पर बटन दबाना है, इसकी पुष्टि करवाना जैसे काम थे. इसके बाद चुनाव प्रचार चरम पर पहुंचा. प्रमुख नेताओं की सभाओं में भीड जुटाने का जिम्मा भी काफी कुछ कार्यकर्ताओं के भरोसे था. जिससे काम का भार बढता जा रहा था. बेशक कई पदाधिकारियों ने इस दौरान अपनी नित्यक्रिया में बडा बदलाव किया था.
* प्रतिस्पर्धा बढी, जिम्मेदारी बढी
इस बार मविआ हो या महायुति दोनों ही तरफ के उम्मीदवारों को विद्रोही प्रत्याशियों का भी सामना करना पडा. जिससे प्रतिस्पर्धा बढती महसूस हुई थी. इससे भी कार्यकर्ताओं का जिम्मा बढ गया था. मतदान के दिन बडे सबेरे से वे वोटर्स को घरों से निकालने और बूथ तक पहुंचाने के काम में जुटे थे. मतदान के पश्चात ही कार्यकर्ता थोडे रिलेक्स हो सके.
* मतगणना संपन्न, संपूर्ण रिलैक्स
मतगणना शनिवार को हुई. दोपहर तक नतीजे घोषित हो गये. जिसके बाद कार्यकर्ताओं ने अपने उम्मीदवार सफल रहने पर जीत का जश्न मनाया. गुलाल उडाया. ताशे की थाप पर थिरके. बधाईयों और शुभकामनाओं का लेनदेन हुआ. फिर जाकर वे रिलैक्स हो पाए. यहां उल्लेखनीय है कि उम्मीदवारों को अपने लिए तगडा परिश्रम करनेवाले पदाधिकारी व कार्यकर्ता का बराबर ध्यान है.
* कई निकले धार्मिक टूर पर
पदाधिकारी व कार्यकर्ताओं ने अब ठंडी सांस लेने के साथ ही सहपरिवार देवदर्शन के टूर शुरू कर दिए हैं. अधिकांश पदाधिकारियों ने इस बात की पुष्टि की और बताया कि वह अभी शेगांव है. आगे शिर्डी जाने का कार्यक्रम है. कई पदाधिकारी तिरूपती बालाजी और कुछ राजस्थान की यात्रा पर चले गये हैं.
* कर रहे जय पराजय की मीमांसा
कार्यकर्ताओं के पीछे पखवाडे भर से चल रही दौड धूप शांत हो गई हैं. अब वे बातों की जुगाली में लगे हैं. कोई अपने नेता की जय का कारण सीना ठोककर बता रहा हैं. कोई अपने लीडर की पराजय के लिए किसी के सिर ठीकरा फोड रहा है. इसके कारण हारे, उस वजह से हारे, वहीं कई ने हमेशा की भूमिका अपनाई. जिसके राजयोग प्रबल थे, वह विजयी रहे. जिनके योग कमजोर रहे, वे थोडे अंतर से ही इस बार रह गये. कतिपय कार्यकर्ता सोशल मीडिया पर अभी भी चैटिंग में दोषारोप में जुटे हैं. इसमें एक प्रमुख पदाधिकारी ने बढिया प्रतिक्रिेया दी कि दो माह शांत रहे, आराम से रहे. दो माह बाद निकाय चुनाव की संभावना है. जिसमें फिर हमें अपने-अपने नेता, दल के लिए भिड जाना हैं.