* विद्यापीठ में हुआ व्याख्यान
अमरावती/दि.6- स्त्रीवाद यह एक राजनीतिक विचार प्रणाली है. जिसका कोई एक स्वरूप नहीं है, बल्कि इसमें विविध स्त्रीवादी प्रवाह शामिल है. जिनका स्त्री मुक्ति की दृष्टि से अनन्य साधारण महत्व है. ऐसे में स्त्रीवाद का आशय सर्वसमावेशक व मुक्तिदायी ग्राह्य माना जाना चाहिए. इस आशय के विचार मुंबई विद्यापीठ की मराठी विभाग प्रमुख डॉ. वंदना महाजन द्वारा किया गया.
स्थानीय संत गाडगेबाबा अमरावती विद्यापीठ के पदव्युत्तर मराठी विभाग तथा वुमेन्स स्टडीज सेंटर के संयुक्त तत्वावधान में आयोजीत कार्यक्रम में ‘स्त्रीवाद : धारणा एवं अवधारणा’ विषय पर डॉ. वंदना महाजन अपने विचार व्यक्त कर रही थी. संगाबा अमरावती विद्यापीठ के पदव्युत्तर मराठी विभाग प्रमुख डॉ. मोना चिमोटे की अध्यक्षता में आयोजीत इस कार्यक्रम में वुमन्स स्टडीज सेंटर की संचालक डॉ. वैशाली गुडधे व प्रा. भगवान फालके उपस्थित थे.
इस समय अपने संबोधन में डॉ. वंदना महाजन ने कहा कि, स्त्रीवाद सहित स्त्रीवादी महिलाओं को लेकर समाज में कई पूर्वाग्रह प्रचलित है. जिसके तहत स्त्रीवादी महिलाओं को परिवार तोडनेवाली, व्याभिचारी, असभ्य, आक्रामक व उध्दट माना जाता है. ऐसी कई अवधारणाएं कई बार अनजाने में बनती है और कई बार जानबूझकर समाज में प्रचलित की जाती है. पितृृसत्ता समाज के लाभधारकों द्वारा अपने हितसंबंधों की रचना को टिकाये रखने हेतु ऐसे पूर्वाग्रहों को प्रचलित करने का काम किया जाता है तथा आत्मभान नहीं रहनेवाली महिलाओं के साथ ही सालोंसाल से चली आ रही सोच पर चलनेवाले पुरूष भी इस पुरूषी वर्चस्व वाली सत्ता के वाहक बन जाते है. ऐसे में बेहद जरूरी है कि, सभी लोगों द्वारा स्त्रीवाद का सर्वसमावेशक दृष्टिकोण समझा जाये. जिसके लिए महिलाओं द्वारा अपनी स्वतंत्रता हेतु आज तक किये गये संघर्ष को समझा जाना चाहिए और वर्तमान दौर में उस हिसाब से आवश्यक कृतिशिलता को अंगीकार किया जाना चाहिए, क्योंकि स्त्रीवाद एक तरह से सर्जनशिल विचार है. इस समय अपने अध्यक्षीय संबोधन में डॉ. मोना चिमोटे ने कहा कि, स्त्रीवादी विचार केवल स्त्रियों की स्वतंत्रता व मुक्ति तक ही सीमित नहीं है, बल्कि समाज में विभिन्न स्तर पर कार्यरत रहनेवाली विषमता में शोषित रहनेवालों के लिहाज से भी यह विचार बेहद महत्वपूर्ण है.