अमरावतीमुख्य समाचार

… अन्यथा अनर्थ हो जाता

‘उस दिन’ पुलिस ने बचा लिया शहर को

* अपनी जान पर खेलकर लोगों की जान बचायी

* पथराव व हिंसा में 9 पुलिसवाले हुए हैं घायल

* समय-सूचकता व कडे कदमों के चलते हालात पर पाया काबू

अमरावती/दि.15- भले ही आम जनता द्वारा अक्सर पुलिस को कोसा जाता है और पुलिस के नाम पर उंगलिया फोडकर पुलिसवालों को गालिया दी जाती है. किंतु हकीकत यह है कि, यदि विगत शुक्रवार की शाम से लेेकर शनिवार की शाम तक पुलिस द्वारा समय-सूचकता दिखाते हुए कडे कदम नहीं उठाये जाते, तो अमरावती शहर को जलने और बर्बाद होने से नहीं बचाया जा सकता था.
विगत दो दिनों के दौरान की गई ग्राउंडी रिपोर्टिंग में साफ दिखाई दिया कि, तोडफोड, हिंसा व पथराव की घटनाओं के बीच जिस तरह से प्रभारी पुलिस आयुक्त संदीप पाटील सहित जिला पुलिस अधीक्षक अविनाश बारगल एवं अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक शशीकांत सातव के नेतृत्व में पुलिस ने कडी किंतु समझदारी भरी भूमिका अपनाई. उसके चलते शहर में हालात पर तुरंत ही काबू पा लिया गया, अन्यथा शहर में कोई बडा अनर्थ घटित होने की संभावना से इन्कार नहीं किया जा सकता था. क्योंकि इस दौरान शहर एक तरह से धार्मिक उन्माद के ढेर पर बैठा हुआ था.
ज्ञात रहे कि, शहर के नमूना, छत्रपुरी खिडकी, पटवा चौक, मसानगंज व हनुमान नगर जैसे इलाकों में हिंदू व मुस्लिमों की बस्तियां एकदम आसपास है और कई इलाकों में तो दोनों समुदायों की बस्तियां एक-दूसरे से मिली हुई और सटी हुई है. ऐसे में ये सभी इलाके बीते कल शनिवार को हॉटस्पॉट बने हुए थे. क्योंकि इन इलाकों में दो समूदायों के बीच भिडंत होना बेहद आसान थी. साथ ही इन दोनों समूदायों के युवा विशेषकर 16 से 25 साल की उम्र के युवक मरने-मारने पर आमादा थे. लेकिन ऐसे हालात के बीच पुलिस ने कहीं समझा-बुझाकर, कहीं लाठी भांजकर, कहीं आंसू गैस के गोले दागकर और कहीं हवाई फाईरिंग करते हुए इन युवाओं को नियंत्रित किया.
ग्राउंड रिपोर्टिंग कर रहे हमारे संवाददाताओें के मुताबिक यदि उस दिन दोनों समुदायों की रिहायशी बस्तियों से सटे इलाकों की एक भी गली में अगर किसी अन्य समूदाय के लोग घुस जाते, तो अनहोनी होना पूरी तरह से तय था. इसमें भी दोनों ओर से एक-दूसरे के खिलाफ हो रही पत्थरबाजी ने आग में घी डालने का काम किया. चूंकि यहां पर दोनों समुदायों के इलाके एक-दूसरे के साथ काफी हद तक सटे हुए है. ऐसे में यहां पर पत्थरबाजी करना बेहद आसान था और पत्थरबाजी हो भी रही थी. किंतु इन सब के बीच यह समझ से परे रहा कि, आखिर विगत दो दिनों के दौरान ही तनावपूर्ण हुई परिस्थिति के बीच दोनों समूदाय के लोगों के हाथों में नये-कोरे व चमचमाते धारदार हथियार कैसे पहुंचे? कई वीडियोज व फोटोज में तलवार, गुप्ती व सत्तूर जैसे धारदार हथियारों से लैस कम उम्रवाले युवकों को देखा जा सकता है. ऐसे में सबसे बडा सवाल यह है कि, आखिर शहर में लोगों के पास हथियारों की इतनी बडी खेप कब व कैसे पहुंची तथा अब भी शहर में कितने लोगों के पास ऐसे हथियार है. किंतु इन सबके बीच हथियारबंद युवाओं की भीड पर भी पुलिस ने बडे सहज ढंग से काबू पाया. साथ ही अब ऐसे लोगों को गिरफ्तार करने के साथ-साथ उनके पास से हथियार भी बरामद किये जा रहे है.
शनिवार को पूरा दिन जंग का मैदान बन चुके अमरावती शहर के कुछ इलाकों में लाईव रिपोर्टिंग के दौरान हमने पाया कि, उस दिन भले ही दोनों ओर के कुछ धार्मिक स्थलों सहित दूकानों व वाहनों का नुकसान हुआ और पुलिस इस नुकसान को होता देख रही थी. किंतु पुलिस की पहली प्राथमिकता लोगों की जान बचाने को लेकर थी और पुलिस हर हालत में दो समूदायों के बीच टकराव की स्थिति को टालते हुए हालात पर काबू पाने का प्रयास कर रही थी. किंतु ऐसी बिकट स्थिति में भी कुछ अति उत्साही व मौके की ताड में रहनेवाले नेताओं ने सरेआम पुलिस को लताडकर माहौल बिगाडने व पुलिस का मनोबल तोडने का प्रयास किया. लेकिन पुलिस पूरी तरह से शांत रही. बलवे और बवाल के हालात के बीच एक पुलिस अधिकारी सहित कुल 9 पुलिसवाले पत्थरबाजी के चलते बुरी तरह से घायल हुए, लेकिन पुलिस ने अपनी कार्रवाई में इतने लोगों को भी घायल नहीं होने दिया, बल्कि उत्पात व दंगा मचाने पर आमादा भीड को केवल पीछे खदेडकर ही हालात पर काबू पाया.
यहां यह नहीं भूला जाना चाहिए कि, शनिवार को राजकमल चौराहे पर करीब तीन घंटे तक 5 हजार से अधिक युवाओं का हुजुम इकठ्ठा था. जिनके सिर पर कुछ भी कर-गुजरने का जुनून था और वे तोडफोड व हंगामे का हर संभव मौका ही तलाश रहे थे. किंतु पुलिस ने बडी चतुराई के साथ राजकमल की ओर जानेवाले तमाम रास्तों को रोक रखा था. इसके अलावा राजकमल चौक से सटकर ही नमूना परिसर के भीतर जानेवाली 6 गलियां है. जहां पर दोनों समुदायों की रिहाईश है और नमूना परिसर के मुहाने पर ही एक मस्जिद भी है. ऐसे में राजकमल चौक पर जमा हुजुम हर पांच मिनट के अंतराल में उन गलियों में घुसने पर आमादा दिखाई दे रहा था. साथ ही नमूना परिसर में रहनेवाले दीगर समुदाय के लोग भी पूरी ताकत के साथ इस हुजूम का प्रतिकार कर रहे थे. ऐसे में यहां पर टकराव तथा पथराववाली स्थिति बनी, लेकिन पुलिस ने यहां पर भी दोनों समुदायों के उत्तेजीत लोगों को समझा-बुझाकर शांत किया. जिससे यहां पर भी हालात तुरंत ही काबू में आ गये.
उधर जब शनि मंदिर के मुख्य प्रवेशद्वार पर तोडफोड होने के साथ ही मंदिर के पुजारी के साथ मारपीट की गई, तो लगा कि, अब मामला हाथ से निकल गया. लेकिन इस समय भी ग्रामीण पुलिस अधीक्षक अविनाश बारगल तथा अपर पुलिस अधीक्षक शशिकांत सातव खुद मौके पर पहुंचे और यहां पर कई हवाई फायर किये गये. साथ ही साथ आंसू गैस के दो दर्जन से अधिक गोले दागे गये. जिसके जरिये स्थिति पर काबू पाया गया. दिनभर चले तनाव के बाद शाम होते-होते एकाध-दो इलाकों को छोडकर समूचे शहर में कहीं पर भी टकराववाली स्थिति नहीं थी. लेकिन इसके बाद रात बडी मुश्किलोंवाली रही. क्योंकि दोनों समुदायों के लोग एक-दूसरे की संभावित घुसपैठ को लेकर डरे व सहमे हुए थे. शहर के पश्चिमी इलाकों में लगभग हर घर जागा हुआ था और पूरी रात छन-छनकर अफवाहें बाहर आ रही थी. इस समय भले ही इंटरनेट और सोशल मीडिया पूरी तरह से बंद थे, लेकिन कई समाज विघातकों द्वारा अपने परिचितों को फोन करते हुए बेसिरपैर की खबरें दी जा रही थी. जिसके चलते डर और चिंता का माहौल बढ रहा था, लेकिन हमारी मुस्तैद पुलिस ने उस काली रात में लगातार शहर के सभी रिहायशी इलाकों में अपने गश्ती वाहन दौडाते हुए लोगों को निश्चिंत करने का काम किया. जिसके जरिये शहर में शांति स्थापित करने में सफलता मिली.
जैसा कि हमने इस खबर के प्रारंभ में कहा कि, पुलिस को गाली देना और कोसना बेहद आसान है. अपने घर की चार दीवारी में सुरक्षित बैठकर पुलिस के काम में मीन-मेख निकालना भी कोई बडा काम नहीं है, लेकिन हमने ग्राउंड रिपोर्टिंग के दौरान जो अपनी आंखों से देखा, उसे आपके सामने रखने का उद्देश्य यहीं है कि, हर बात का दूसरा पहलू भी देखा जाना बेहद आवश्यक है. हालांकि यह बात भी उतनी ही सही है कि, पुलिस द्वारा शुक्रवार को मुस्लिम समूदाय की ओर से निकाले गये मोर्चे और शनिवार को हिंदू समूदाय की ओर से दिये गये तीव्र प्रतिसाद को काफी हद तक अंडर ईस्टीमेट कर गई. यदि शुक्रवार के मोर्चे में ज्यादा बंदोबस्त होता, तो शायद तोडफोड की घटना घटित नहीं होती और यदि शनिवार को तडके ही शहर के पश्चिमी इलाकों में ऐहतियातन कर्फ्यू लगा दिया जाता, तो तोडफोड व आगजनी की घटनाओं से भी शायद बचा जा सकता था. खैर बीत गई सो बीत गई की तर्ज पर अब सबकुछ भूलाकर फिर से जीवन को पटरी पर लौटना चाहिए. जिसके लिए समाज के सभी तबकों को साथ मिलकर काम करना होगा. लेकिन इन सबके बीच शनिवार व रविवार को शहर में कानून व व्यवस्था की स्थिति को बनाये रखने तथा तनाव व टकराव को टालने हेतु पुलिस द्वारा अपनायी गई भूमिका के लिए एक सैल्यूट तो बनता ही है.

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