कुष्ठसेवा महर्षि पद्मश्री डॉ. शिवाजीराव उपाख्य दाजीसाहेब पटवर्धन की 39 वीं पुण्य तिथि निमित्त
तपोवन : डॉ. शिवाजीराव पटवर्धन की आत्मा !..
वसती ज्या ठायी, दीन, दु:खी, आर्त, विराजती तेथे चरण तुझे॥
तपोवन के प्रवेश द्वार पर लिखा संदेश हमेशा आने-जाने वाले लोगों को प्रेरित करता है और सत्यम शिवम सुंदरम इस प्राकृतिक सौंदर्य, सेवा, त्याग, तपस्या, संघर्ष, मूर्तिवान प्रतीक यानी पद्मश्री डॉ. शिवाजीराव उपाख्य दाजीसाहब ने स्थापित किया हुआ तपोवन
1946 से तपोवन निरंतर कुष्ठरोगियों की सेवा कर रहा है.
गांधीजी कहते थे कि कुष्ठरोगियों की सेवा मेरे जीवन का अधूरा काम है….उसी कुष्ठरोग सेवा की जिम्मेदारी लेकर उन्होंने श्री जगदम्बा कुष्ठरोग निवास तपोवन की स्थापना की. दाजीसाहब ने राष्ट्रसंतों के विचारों के अनुसार तपोवन को सर्वसुविधायुक्त आदर्श ग्राम के रूप में स्थापित किया है. जब कोई कुष्ठरोगी इलाज के लिए तपोवन में प्रवेश करता है, तो जैसे वह रोग से मुक्त होता ही है, इसके साथ ही वह तपोवन को माहौल में घुलमिल जाता है. यहां के आनंदायी वातावरण में समरस होकर वह अपने दुख, पीडा को भूल जाता है.
अमरावती के इतिहास में तपोवन का नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखा गया है, फिरभी आज अमरावती वासी यहां पर कदम नहीं रखते, ऐसा दिखाई देता है. एक आदर्श परिवार व्यवस्था, सर्वधर्म समभाव, त्याग, सेवा, अनुशासनबद्ध, नियोजनबद्ध, अद्भूत, ऐसे 400 एकड परिसर में हमारा मन रमता ही है, इसके साथही पाल्यों को यहां की सीख जीवन जीने के लिए आवश्यक मूल्यशिक्षा कार्यक्रम का एक हिस्सा है.
तपोवन प्राकृतिक सुंदरता से सजा है. यहां पर सभी वृक्षों की प्रजाति, कई प्रकार के फूलों के पौधे, अलग-अलग पक्षी यहां देखने मिलेंगे. दाजीसाहेब के शांति कुंज निवासस्थान पर हमें दाजीसाहेब के स्वाधीनता संग्राम की झलकियां, तपोवन निर्मिती के लिए उनकी पृष्ठभूमि हमें देखने मिलती है. इसके साथ ही दाजीसाहेब के निवास में व्यक्तिगत वस्तूएं, उनके पुरस्कार और तपोवन स्थापना से लेकर भेंट देने वाले सभी स्वाधीनता सेनानी, महापुरुषों की जानकारी मिलती है. यह संपूर्ण इतिहास रोंगटे खडे कर देने वाले संघर्ष डॉ.शिवाजीराव पटवर्धन उपाख्य दाजीसाहेब ने कुष्ठमरीजों के चेहरे पर मुस्कान लाने के लिए किया है, इसकी जानकारी हमें मिलती है.तपोवन परिसर में सुसज्ज कार्यालय, जीवन मासिक कार्यालय, संत अच्युत महाराज का निवासस्थान, उनके धार्मिक ग्रंथ देखने लायक है. यहां पर विविध महापुरुषों की पूर्णाकृति प्रतिमा, अर्धाकृति प्रतिमा, उनकी संदेश विचारधारा संपूर्ण परिसर में हमें प्रेरणा देने का काम करती है. यहां 75 वर्ष पूर्व स्थापित प्राचीन शिवमंदिर देखने योग्य है. इसके साथ ही विष्णू मंदिर, विठ्ठल मंदिर, राम मंदिर, दत्त मंदिर, देवी मंदिर, हनुमान आखाडा, गणेश मंदिर, हनुमान मंदिर आकर्षण का केंद्र बने है.तपोवन संस्था में आवास सभी सुविधाओं से बहुत अच्छी तरह से सुसज्जित है, महिला छात्रावास, पुरुष छात्रावास, लड़के, लड़कियों के छात्रावास अच्छी तरह से योजनाबद्ध हैं, बडा अन्न भंडार, बहुत साफ रसोई घर, भोजन की व्यवस्था अच्छी है. यहां के आश्रित उद्योग, लकड़ी का फर्नीचर, लोहे का फर्नीचर, सतरंजी फैक्ट्री, सिलाई विभाग, प्रिंटिंग प्रेस, पावरलूम, जूता निर्माण, हॉस्पिटल बैंडेज निर्माण प्रकल्प देखने लायक है.
सबसे महत्वपूर्ण यहां पर सभी सुविधाओं से युक्त हॉस्पिटल व्यवस्था है. अ श्रेणी का सरस्वति वाचनालय होकर विभिन्न ग्रंथ साहित्य उपलब्ध है. इसके साथही तपोवन संस्था का महा मन मालवीय हाईस्कूल जो 1962 से चल रहा है, वह एक आदर्श शाला के रूप में विख्यात है. कलागुणों को बढावा देने के लिए ज्योति मंदिर रंगमच है. यहां का पौधारोपण अभियान, पवनचक्की, दाजीसाहेब समाधिस्थल नवीनतम है. यहां के शिव उद्यान में स्व.दाजीसाहेब का पूर्णाकृति पुतला है. इसके सामने ही पार्वती उद्यान है, यहां पर स्व.पार्वतीबाई पटवर्धन की पूर्णाकृति प्रतिमा लगाई गई है. संस्था के परिसर में गौशाला, कृषि विभाग, अनेक महापुरुषों की वाणी, उनके विचार निरंतर प्रेरणा देते है. तथा प्रार्थना, भजन, धार्मिक कार्य मन को सुकून देते है.
दाजीसाहब पटवर्धन ने सभी सुविधाओं से युक्त एक आदर्श एवं अत्यंत सुंदर परिसर बनाया है. दाजीसाहब ने अपना पूरा जीवन कुष्ठ सेवा, नेत्रहीनों, दिव्यांगों, विधवाओं इन जरूरतमंदों के लिए समर्पित कर दिया. तथा पाई-पाई जोडकर तपोवन नामक स्वर्ग बनाया.
दाजीसाहब पटवर्धन की कुष्ठ सेवा का दीपक आज भी जल रहा है, समय बदल गया है, लेकिन आज भी यहां सेवा, प्रार्थना, परंपरा और अनुशासन की परंपरा जीवित है.
हालही में तपोवन में दाजीसाहेब के साथ काम करने वाले कुष्ठसेवा कार्यकर्ता डॉ.सुभाष गवई की संस्था के अध्यक्ष पद पर नियुक्ति हुई. उनके मार्गदर्शन में और संस्था के निष्ठावान कार्यकर्ताओं की मेहनत के जोर पर संस्था आगे बढेगी, इसमें संदेह नहीं. दाजीसाहेब के कार्य को आगे ले जकार नए काम, योजना संस्था को देकर उपकृत करें और भविष्य में नियोजनबद्ध तैयारी कर संस्था और कार्य का शतकोत्तर महोत्सव मनाया जाए, यह मानस सभी ने रखकर अपनी यथाशक्ति सेवा अर्पित की तो यहीं दाजीसाहेब को सच्ची आदरांजलि व श्रद्धांजलि होगी.
सर्वेत्र सुखिंन सन्तु सर्वे सन्तु निरामया….
-उमेश ज्ञानेश्वर ईखे, सहायक क्षेत्र अधिकारी
भारतीय मृदा व भू उपयोग सर्वेक्षण
नागपुर
9518571138