अमरावती

छात्रवृत्ति के डेढ हजार करोड रूपए अटके कोर्ट में

दो साल से नहीं मिली केन्द्र की 60 फीसद निधि

* राज्य के महाविद्यालय फंसे आर्थिक दिक्कतों में
अमरावती/दि.26– उच्च शिक्षा प्राप्त करनेवाले पिछडावर्गीय विद्यार्थियों का प्रवेश श्ाुल्क सरकार द्बारा अर्थवृत्ति के रूप में अदा किया जाता है. परंतु विगत दो वर्षो से छात्रवृत्ति अदा करने की प्रक्रिया को लेकर केन्द्र व राज्य सरकार के बीच एकसूत्रता नहीं रहने के चलते 1 हजार 578 करोड रूपए की निधि अदालत की ट्रेजरी में अटकी पडी है. जिसकी वजह से राज्य के करीब 15 हजार महाविद्यालयों का दैनंदिन कामकाज चलाना संबंधित शिक्षा संस्था के लिए मुश्किल काम हो गया है.
बता दें कि, इस छात्रवृत्ति के लिए केंद्र सरकार की ओर से 40 फीसद तथा राज्य सरकार की ओर से 60 फीसद निधि प्रदान की जाती है. वर्ष 2020-21 के शैक्षणिक सत्र तक यह संपूर्ण रकम महाविद्यालयों को दी जाती थी. जिसमें से महाविद्यालय प्रशासन द्बारा प्रवेश शुल्क, ट्यूशन फीस व डेवलपमेंट फीस की कटौती करने के बाद निर्वाह एवं शैक्षणिक साहित्य खरीदी हेतु शेष रकम विद्यार्थियों को दी जाती थी. परंतु दो वर्ष पहले सरकार ने इस नियम में अकस्मात ही बदलाव कर दिया. जिसके तहत केंद्र सरकार द्बारा अपने हिस्से वाली 60 फीसद रकम को सीधे विद्यार्थियों के बैंक खाते में जमा कराया जाता है. जिसका कई विद्यार्थियों ने गलत फायदा लिया है. खाते में छात्रवृत्ति की रकम जमा होने के पश्चात अगले 7 दिन के भीतर महाविद्यालय की फीस जमा कराने का नियम रहने के बावजूद अधिकांश विद्यार्थी यह रकम महाविद्यालयों को नहीं देते. जिसकी वजह से कई महाविद्यालयों ने विद्यार्थियों के दस्तावेज अपने पास रोककर रख लेने की कठोर भूमिका अपनाई है.
छात्रवृत्ति को लेकर चल रहे इस खिलवाड को खत्म करने हेतु महाराष्ट्र के करीब 96 संस्था चालकों ने मुंबई उच्च न्यायालय की औरंगाबाद खंडपीठ में याचिका दाखिल की. जिसमें कहा गया कि, जिस तरह राज्य सरकार के हिस्से वाली रकम सीधे महाविद्यालयों को अथवा महाडीबीटी के जरिए प्रदान की जाती है. उसी तरह केंद्र सरकार के हिस्से वाली रकम भी दी जाए. यह मामला अदालत में विचाराधीन रहने के दौरान वर्ष 2021-22 तथा वर्ष 2022-23 की छात्रवृत्ति के देयक प्रलंबित रह गए. जिसकी निधि को मामले का फैसला होने तक अदालत की ट्रेझरी में रखने का आदेश हाईकोर्ट ने दिया था. जिसके चलते 1 हजार 578 करोड रुपए की निधि ट्रेझरी में जमा है.
इसी बीच उच्च न्यायालय ने संस्था चालकों के पक्ष में फैसला दिया था. परंतु इसके पश्चात केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में गुहार लगाई. जिसकी वजह से छात्रवृत्ति का मामला जस का तस अधर में लटका रहा. विशेष उल्लेखनीय है कि, सर्वोच्च न्यायालय ने भी औरंगाबाद हाईकोर्ट के फैसले को कायम रखते हुए केंद्र सरकार को हाईकोर्ट के सामने ही अपना पक्ष रखने का आदेश दिया था. पश्चात इस मामले को लेकर औरंगाबाद हाईकोर्ट ने 15 सितंबर को महत्वपूर्ण सुनवाई हुई. जिसमें अदालत ने केंद्र सरकार को राज्य सरकार की तर ही छात्रवृत्ति की रकम अदा करने का निर्देश दिया. परंतु महाडीबीटी पर पंजीकृत महाविद्यालयों व विद्यार्थियों का डाटा केंद्र को उपलब्ध करवाना होगा. इस संदर्भ में राज्य सरकार की अनुमति लेते हुए संबंधित वकील को अगली तारीख पर यानि 29 सितंबर को हाजिर होने का निर्देश कोर्ट ने दिया है.
इस दौरान केंद्र के नैशनल स्कॉलरशीप पोर्टल व महाराष्ट्र सरकार के महाडीबीटी पोर्टल के डेटा को आपस में शेअर करने की दृष्टि से महाराष्ट्र के सामाजिक न्याय विभाग ने गत वर्ष ही ‘एप्लीकेशन प्रोग्रामिंग इंटरफेस’ प्रणाली तैयार करवाई है और अब केवल सरकार की ओर से औपचारिक पत्र जारी किए जाने का इंतजार किया जा रहा है, ऐसा सूत्रों द्बारा बताया गया है.
* लाखों कर्मचारियों के वेतन पर विपरित परिणाम
यद्यपि छात्रवृत्ति की रकम नहीं मिली है, लेकिन महाविद्यालयों का दैनंदीन प्रशासन व कामकाज पर होने वाला खर्च शुरु ही है. विद्यार्थियों को दी जाने वाली सुविधाओं तथा इमारत की देखभाल का खर्च भी चल ही रहा है. जिसकी वजह से महाविद्यालय प्रबंधन काफी आर्थिक दिक्कतों में फंसे हुए है. इसका परिणाम संबंधित शिक्षा संस्थाओं व महाविद्यालयों में काम करने वाले लाखों कर्मचारियों के वेतन पर हुआ है. साथ ही कई मेधावी विद्यार्थियों के पढाई-लिखाई पर भी इसका परिणाम होने की पूरी संभावना है.
* सरकार के नियंत्रण में होने वाले प्रवेश बोगस कैसे?
कुछ शिक्षा संस्थाओं में बोगस विद्यार्थियों के नाम पर छात्रवृत्ति की रकम हासिल की जाती है. इस संदेह के चलते केंद्र सरकार ने छात्रवृत्ति की रकम सीधे विद्यार्थियों के खाते में जमा कराने की पद्धति का अवलंब किया. परंतु एमबीबीएस व इंजिनिअरिंग सहित कई व्यवसायिक पाठ्यक्रमों में होने वाले प्रवेश तो सरकार के नियंत्रण में होते है. ऐसे में महाविद्यालयों द्बारा बोगस विद्यार्थी दिखाए जाने का सवाल ही पैदा नहीं होता.

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