अमरावतीमहाराष्ट्र

पुराने रास्तों से चलकर नई मंजिल नहीं मिलती

उपाध्याय प्रवर प.पू. प्रवीण ऋषिजी म.सा.का कथन

अमरावती/दि.15– पुराने रास्तों से चलकर नई मंजिल कभी नहीं मिलती. नई मंजिल पाने के लिए नये रास्तों से गुजरना होता है. वहीं धर्मात्मा कहलाता है. नई मंजिल पाने के लिए नये रास्ते ढुंढना होता है. तभी मंजिल तक पहुंच पाते है, यह बात उपाध्याय प्रवर प.पू. श्री प्रवीण ऋषिजी म.सा. ने बडनेरा रोड स्थित जैन स्थानक में उपस्थित श्रावक श्राविकाओं से कही. उन्होंने कहा की जीव त्रस, स्थावर आदि दो प्रकार के होते है. मनुष्य जीवन बहुत किंमती है क्योंकि उनके पास बहुत विकल्प होते है, हमें क्रोध से बचने का प्रयास करना चाहिये. रास्ते में पत्थर आया तो वह रुक जाता है और वहीं पानी बह जाता है, रुकता नहीं, ऐसी ही मंजिल पाने के लिए नया रास्ता खोजना होता है, हम क्या करें मुश्किल आने के बाद माथे पर हाथ लगाये, उस मुश्किल से निकालने का रास्ता ढुंढे. हमें स्वयं को तय करना होगा कि, हमें क्या बनना है.

जिन के मन में संशय होता है जिनके मन में संशय नहीं होता वह बडे दुर्भागी होते है कुछ संशय ज्ञान को जन्म देते है. जो कुछ रिसर्च हुई है उसका मूल कारण संशय है. वैज्ञानिकों के मन में कई बातों को लेकर संशय हुआ तभी बडे बडे संशोधन किया गये. इसी लिए संशय का मन में आना सौभाग्य होता है. संशय के चलते दिमांग 5 जी की स्पीड से अधिक तेज गती से चलता है, स्पिड को कंट्रोल करना मुश्किल होता है और स्पिड पर कंट्रोल न होने के कारण जिंदगी को सही दिशा नहीं मिलती और जिंदगी उलझ जाती है. कनफ्युजन होना डिसिजन की प्रोसेस है. अंतिम समय में यमदूत या धर्मदूत या किस के पास जाना है यह ऑपशन मनुष्य के पास है. इतिहास को दौराने में या अपना भविष्य बनाने में हमारी जिंदगी कहां बीत रही है यह हमें सोचना चाहिये.

धर्म ही ऐसा है जहां पिसा हुआ आटा नहीं पिसता, हमेशा नया सिखाते है, नया करने की शक्ती जब तक नहीं आती तब तक यथा प्रवृत्ती करन में धर्म नहीं होता, जो अपूर्व करन के रास्ते पर चलता है वहीं धर्म करता है, जो कर सकते है वे कर गुजरते है, वे महावीर के बंदे होते है. जो देता है उसे मिलता है और जो लेता है उसे देना पडता है, यह जीवन का छोटासा मंत्र है यह अमूल्य उद्बोधन महाराज साहब ने फर्माया. दो दिनों तक म.सा. के सानिध्य में समाजबंधुओं ने धर्मलाभ लिया.

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