अमरावतीमहाराष्ट्र

देश की मजबूती व प्रगति के लिए ‘एक देश, एक चुनाव’ जरुरी

‘वन नेशन-वन इलेक्शन’ परिचर्चा से निकला निष्कर्ष

* सिटीजन फोरम व त्रिवेणी चैरिटेबल फाउंडेशन का आयोजन
अमरावती /दि.3– यदि देश को मजबूत करना है और देश को प्रगतिपथ पर आगे बढाना है तो ‘एक देश, एक चुनाव’ की कार्यपद्धति को अमल में लाना होगा. क्योंकि, चुनाव अपनेआप में काफी खर्चिली प्रक्रिया है. जिसमें पैसों के साथ-साथ समय व श्रम की भी बर्बादी होती है और देश में हमेशा ही कहीं ना कहीं चुनाव होते रहने की वजह से विकास कामों की प्रक्रिया प्रभावित होती है. अत: सभी राज्यों के विधानसभा व संसदीय आम चुनाव एक साथ कराए जाने की संकल्पना को अमल में लाया जाना चाहिए, इस आशय के विचार गत रोज अमरावती में ‘वन नेशन-वन इलेक्शन’ से संबंधित परिचर्चा में अधिकांश वक्ताओं द्वारा व्यक्त किए गए.
अमरावती सिटीजन फोरम व त्रिवेणी चैरिटेबल फाउंडेशन के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित इस परिचर्चा की अध्यक्षता श्री शिवाजी शिक्षा संस्था के उपसभापति हेमंत कालमेघ द्वारा की गई. इस अवसर पर बतौर प्रमुख वक्ता पूर्व आईएएस अधिकारी अविनाश धर्माधिकारी, प्रा. डॉ. किशोर फुले, सीए राजेश चांडक के साथ ही भाजपा के ग्रामीण जिलाध्यक्ष व राज्यसभा सांसद डॉ. अनिल बोंडे, शिवसेना उबाठा के नेता व पूर्व सांसद अनंत गुढे एवं अमरावती आयएमए की अध्यक्षा डॉ. अलका कुथे उपस्थित थी. इस समय सभी उपस्थित गणमान्यों द्वारा डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर व छत्रपति शिवाजी महाराज की प्रतिमाओं पर पुष्प अर्पित किए गए. साथ ही इस कार्यक्रम दौरान यूपीएससी परीक्षा उत्तीर्ण जयकुमार काले, पवन मेश्राम व किरण लव्हाले का सत्कार किया गया.

* संविधान संमत है ‘वन नेशन-वन इलेक्शन’
इस अवसर पर प्रमुख वक्ता व पूर्व आईएएस अधिकारी अविनाश धर्माधिकारी ने कहा कि, इस देश में जब-जब डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर के विचारों से दूरी बनाई है, तब तक यह देश संकट में फंसा है. डॉ. आंबेडकर ने धारा 370 का समर्थन नहीं किया था और इसका मसौदा तक तैयार करने के इंकार कर दिया था. लेकिन इसके बावजूद इस धारा को संविधान में शामिल किया गया और उस दिन डॉ. आंबेडकर दिल्ली में नहीं थे. इसी तरह डॉ. आंबेडकर ने संविधान में समाजवादी व शेक्युलर शब्द को भी शामिल नहीं किया था. क्योंकि वे इन दोनों शब्दों को भारत के लिए घातक मानते थे और डॉ. आंबेडकर के विरोध की अनदेखी करने के बावजूद उठाए गए कदमों के नतीजे आज सबके सामने है. पूर्व आईएएस अधिकारी अविनाश धर्माधिकारी ने यह भी कहा कि, ‘वन नेशन-वन इलेक्शन’ की अवधारणा पूरी तरह से संविधान सम्मत है. अत: पूरे देश में विधानसभा व लोकसभा के चुनाव एक साथ कराने की राह में कोई दिक्कत नहीं है. बल्कि ऐसा करने से काफी हद तक पैसे व समय की फिजूल खर्ची को बचाया जा सकता है. धर्माधिकारी के मुताबिक प्रत्येक चुनाव में उम्मीदवारों द्वारा अपने प्रचार के लिए बेतहाशा धन खर्च किया जाता है. जो लोकतंत्र के लिए काफी हद तक घातक है. अत: इस पर तत्काल प्रभाव से नियंत्रण लगाए जाने की जरुरत है.
इस समय कई राजनीतिक दलों द्वारा ‘वन नेशन-वन इलेक्शन’ का विरोध किए जाने को बेवजह बताते हुए अविनाश धर्माधिकारी ने कहा कि, महाराष्ट्र व कर्नाटक के चुनाव में मतदाताओं ने केंद्र में अलग व राज्य में अलग दलों की सरकारे चुनी. अत: ‘एक देश, एक चुनाव’ के खिलाफ यह दलील पूरी तरह से बेमानी है कि, देश के मुद्दे राज्यों पर हावी हो जाएगे तथा मतदाताओं द्वारा देश के नेता को देखते हुए राज्य के चुनाव में मतदान करेंगे. यह दलील देनेवाले राजनीतिक दलों ने यह नहीं भुलना चाहिए कि, मतदाता अपनेआप में काफी होशियार होते है और कालानुरुप व परिस्थिति नुसार मतदान करते है.

* खर्चिले चुनाव से धन की बर्बादी व भ्रष्ट्राचार को बढावा
इस परिचर्चा में वक्ता के तौर पर अपने विचार व्यक्त करते हुए सीए राजेश चांडक ने कहा कि, देश में आए दिन कहीं न कहीं चुनाव होता रहता है. जिसकी वजह से भारत को चुनावों का देश कहा जाता है. क्योंकि हमारे देश में सालभर कहीं न कहीं चुनाव चलते रहते है. जिसकी वजह जहां एक ओर पैसे व मनुष्यबल के साथ-साथ समय की बर्बादी होती है. वहीं चुनावों पर होनेवाले खर्च के चलते भ्रष्ट्राचार को भी बढावा मिलता है. यह नहीं भुला जाना चाहिए कि, देश के पहले संसदीय चुनाव में महज 10 करोड रुपयों का खर्च हुआ था. लेकिन गत वर्ष हुए संसदीय चुनाव पर 50 हजार करोड रुपए खर्च करने पडे. जिससे सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि, अगर यह सरकारी खर्च का आंकडा है तो उम्मीदवारों व राजनीतिक दलों द्वारा चुनाव प्रचार पर कितना पैसा खर्च किया जाता होगा. साथ ही बेतहाशा खर्च करते हुए चुनाव जितनेवाले प्रत्याशियों द्वारा आगे चलकर भ्रष्ट्राचार किए जाने की भी पूरी संभावना रहती है. वहीं दूसरी ओर देश के प्रशासनिक अधिकारी एवं सुरक्षा बलों को भी पूरे सालभर के दौरान देश में अलग-अलग स्थानों पर होनेवाले चुनाव में जुटे रहना पडता है. ऐसे में यदी ‘वन नेशन-वन इलेक्शन’ की अवधारणा पर काम किया जाता है तो बहुत सारी समस्याओं का अपने आप ही समाधान हो सकता है.


* राष्ट्र निर्माण के लिए ‘एक देश, एक चुनाव’ जरुरी
इस समय प्रा. डॉ. किशोर फुले ने वक्ता के तौर पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि, इन दिनों राष्ट्रीय अस्मिता में प्रादेशिक अस्मिता द्वारा अतिक्रमण किया जा रहा है. ऐसे में यदि हमें देश को मजबूत बनाना है, तो हमें ‘वन नेशन-वन इलेक्शन’ की तरफ बढना ही होगा. इस समय देश में हमेशा ही कहीं ना कहीं चुनाव होते रहते है और आचारसंहिता लागू रहती है. जिसके चलते देश में विकास काम ठप पडे रहते है. इस स्थिति को सुधारने हेतु ‘वन नेशन-वन इलेक्शन’ की पद्धति को लागू करना बेहद जरुरी है. जिसके जरिए आयाराम-गयाराम वाली प्रवृत्ति एवं दल बदलू संस्कृति को रोकने में मदद मिल सकती है. अत: अब ‘एक देश, एक चुनाव’ की संकल्पना पर अमल किए जाने की सख्त जरुरत है. जिसके लिए देश के नागरिकों को जागरुक भी किया जाना चाहिए और सभी राजनीतिक दलों पर भी इसके लिए दबाव बना जाना चाहिए.

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