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एक घंटे की दूरी के लगे छह घंटे

दोनों कारसेवा में बहन के साथ सहभागी हुई भावना जोशी

* अंजान ने दिया खाना, लौटने के बाद सत्कार
* अनुभव कथन सुनने आतुर रहते लोग
अमरावती/दि. 2- 1990 और 1992 दोनों बार की राम मंदिर कारसेवा के लिए संघ परिवार के संगठन के पदाधिकारी जोश के साथ गए थे. उनमें अमरावती की भावना जोशी शामिल थी. उनकी बडी बहन विशाखा जोशी के साथ वे लगभग 30 महिलाओं संग नवंबर में ही अयोध्या जा पहुंची थी. दूसरी बार अर्थात 1992 की कारसेवा में माया बुजोने, भारती बुजोने, मंजीरी पाठक, विशाखा हरकरे, आरती पैठणकर के साथ वे अयोध्या में कारसेवकों की मदद कर रही थी. उन्होंने गुजरात, पंजाब, हरियाणा से आई महिलाओं के साथ मिलकर यथोचित काम किया. विशेषकर वे उत्साह बढाने जय श्रीराम के नारे लगाती. साथी महिला कारसेवक भी उनका पूरा साथ दे रही थी.
* 6 दिसंबर को क्या हुआ
भावना जोशी ने बताया कि 6 दिसंबर को कारसेवक अनियंत्रित हो गए. वे विवादित ढाचे पर चढ गए. उन्हें दूर ही रोक लिया गया था. जिससे वे वहां से आ रही सूचनाओं पर ही अमल कर सकी. दोपहर 4 बजे खबर मिली की ढाचा धराशाही कर दिया गया है. जिससे बडा ही अफरा तरफरी का माहौल था. उन्हें बहन विशाखा व अन्य साथी कारसेवकों के साथ ढाचे से दूर किया गया. ऐसे में उन्हें यह भी निर्देश मिले की अयोध्या से बाहर चले जाए. जिसका उन्होंने पालन किया. उनके साथ आई महिलाओं की सेफ्टी आवश्यक थी.
* टूटा पैर, 6 किमी चली पैदल
आपाधापी में भावना जोशी एक जगह किसी के धक्के से गिर गई. उनका पैर फ्रैैक्चर हो गया. फिर भी चलने की मजबूरी रही. करीब 6 किमी लंगडाते चलने के बाद साधन मिले. किंतु वे भी अयोध्या से प्रयागराज तक ही थे. यह एक घंटे की दूरी उन्हें तय करने में 6 घंटे लग गए.
*भूखे-प्यासे कारसेवक
सभी साथी कारसेवक भूखे-प्यासे थे. उनकी वापसी की राह कठिन हो गई थी. ट्रेन और गाडियां नहीं मिल रही थी. ट्रेन बदल बदलकर दो दिन में इटारसी पहुंचे. तब जाकर थोडी राहत मिली. इटारसी से नागपुर आते समय ट्रेन में किसी अंजान ने उन्हें चिवडा खाने को दिया. महिलाएं वह खाने से संकोच कर रही थी. उन्हें चिवडे के विषैले होने का अंदेशा बताया गया था. तब अपरिचित व्यक्ति ने स्वयं पहले वह चिवडा खाकर दिखाया. तब भावना जोशी और उनकी साथी महिलाओं ने अपनी थोडी भूख शांत की.
* नागपुर में स्वागत, अनुभव कथन के निमंत्रण
भावना जोशी ने बताया कि नागपुर पहुंचने पर कारसेवकों का जोरदार स्वागत किया गया. अनेक जगह उन्हें फूल मालाएं पहनाई गई. उसी प्रकार कारसेवा से लौटी अत: उनके अनुभव कथन के लिए कई संस्था व संगठनों ने उन्हें आमंत्रित भी किया. आदर सत्कार सहित वे अपनी अयोध्या यात्रा के अनुभव बतलाती. उन्होंने कारसेवा पर अनेक लेख भी लिखे. उस समय भावना जोशी 17-18 वर्ष की होकर प्रथम वर्ष की छात्रा थी. (शेष अगले अंक में)

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