अमरावती

ईश्वर की आराधना करते समय उनके प्रति एकचित होना जरुरी

मां कनकेश्वरी देवी का कथन

  • मयूरेश भवन में श्रीमद देवी भागवत कथा का छटवां दिन

अमरावती/दि.24 – ईश्वर की आराधना करते समय उनके प्रति एकचित होना जरुरी है. जब हम खुद को ईश्वर के प्रति समर्पित करते है तब हमें ब्रम्हज्ञान की प्राप्ति होती है. साधक जब चिंतन करता है तब वह ईश्वर के नामस्मरण में इतना तल्लीन होना चाहिए कि वह सांसारिक जीवन की सभी चिंताओं से मुक्त हो जाए. जब कोई मनुष्य अवतार लेता है तब उसके लिए साधना जरुरी होती है अन्यथा जीवन में सुख और दुख रुपी उतार-चढाव से मनुष्य हमेशा प्रभावित होता रहता है ऐसा कथन मां कनकेश्वरी देवी ने व्यक्त किया.
मां कनकेश्वरी देवी स्थानीय अकोली स्टेशन के समीप मयूरेश भवन में मंगलवार से प्रारंभ श्रीदेवी भागवत कथा के अवसर पर छटवें दिन भाविकों को संबोधित कर रही थी. मंगलवार से यहां मां कनकेश्वरी देवी के मुखराबिंद से श्रीमद देवी भागवत कथा जारी है. जिसमें कथा के छटवें दिन महामंडलेश्वर मां कनकेश्वरी देवी ने आगे कहा कि, जब मनुष्य को सुख और दुख प्रभावित करने लगते है तब साधक भी व्यतीथ होता है बाकी कथा का श्रवण करे तो हृदय आकाश की तरह मजबूत बन जाता है. ईश्वर का नामस्मरण हमें आत्मीक शक्ति प्रदान करता है.
जब तक हम रहते है तब तक सतोगुण और रजोगुण बने रहेंगे सांसारिक जीवन मनुष्य को पाप के लिए प्रेरित करता है. इसलिए जीवन में गुरु का महत्व बताया गया है. गुरुवचनों का 10 प्रतिशत भी हम अपने जीवन में अपनाए तो जीवन का उद्धार होगा. मनुष्य जीवन में कई बार नीतियों से समझौता करता है लेकिन अपनी नीतियों को नहीं छोडना चाहिए. जब हमें मर्यादा के लिए कपडे मिल जाए तो आत्मा को कमजोर क्यों करते है.
गर्भावस्था के दौरान मां को गर्भ में पल रहे बच्चें पर अच्छे संस्कार डालने के लिए मां अंबा का स्मरण करना चाहिए जो व्यक्ति खून पसीने की कमाई से जीवन यापन करता है वह जमीन से जुडा होता है. इसलिए जीवन में ईमानदारी और मेहनत से पैसे अर्जित करने का प्रयास मां कनकेश्वरी देवी ने बताई.
कथा के छटवें दिन मां कनेकश्वरी देवी का स्वागत संपत शर्मा, सुगना शर्मा, जोधपुर के रमेश शर्मा, ओमप्रकाश मालवीय, अजय देशमुख, मीरा भरतीया, रिता चंदेल, पंकज तापडिया, अनिल मुणोत, जांगीड परिवार, अनिता शर्मा, रामसिरे चंदेल, विश्वास गावाडे, अशोक जोशी, दिपक अग्रवाल, किशोरी साहु, भालचंद्र देशमुख, गौरव भुतडा, भानुदास बोधडे, रवि कोपलवार, प्रज्ञा सिकची, पवन जवेरी, तोताराम खत्री, अरुण कडू, तथा गायत्री परिवार के रमाकांत कुर्तकोरी ने किया.

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