अमरावतीमहाराष्ट्र

व्याघ्र प्रकल्प के सर्वेक्षण में ही 65 फीसद परिवार की सहमति

बीच में फंसे पुनर्वसित, शासन निर्णय से परेशानी

चिखलदरा/दि. 29– मेलघाट व्याघ्र प्रकल्प से 26 गांवों का पुनर्वसन होने पर सेमाडोह के 65 प्रतिशत नागरिक पुनर्वसन के लिए तैयार रहने की रिपोर्ट व्याघ्र प्रकल्प व्दारा किए गए सर्वेक्षण में सामने आई है. इस कारण बंद विकास काम और पशु पालकों को जंगल में चराई पर पाबंदी आने से परेशानी में फंसे नागरिकों ने इस परेशानी से मुक्त करने की मांग की है.

सेमाडोह गांव का पुनर्वसन सूची में नाम है. व्याघ्र प्रकल्प के सिपना वन्यजीव विभाग अंतर्गत इस गांव का समावेश है. व्याघ्र प्रकल्प व्दारा किए गए सर्वेक्षण के मुताबिक गांव में 18 वर्ष से कम और उपरी 50 प्रतिशत ऐसे नागरिक है. आबादी 2193 है. केंद्र व राज्य शासन के निर्णय के मुताबिक राज्य के वन्यप्राणी संरक्षण की दृष्टि से वन्यप्राणी (संरक्षण) अधिनियम 1972 के प्रावधान के मुताबिक 6 राष्ट्रीय उद्यान, 41 अभयारण्य व 1 संवर्धन आरक्षित क्षेत्र अधिसूचित है. इसमें से 4 राष्ट्रीय उद्यान का क्षेत्र और 6 अभयारण्य के क्षेत्र मेलघाट, पेंच, ताडोबा-अंधारी व सह्याद्री व्याघ्र प्रकल्प के तहत आते है. इन सभी इलाकों के सर्वेक्षण में रहे आदिवासी गांव की पुनर्वसन प्रक्रिया हुई है और कुछ स्थानों पर शुरु है. पुनर्वसन यह ऐच्छिक विषय है. किसी भी तरह वह लादा नहीं जा सकता. लेकिन अनेक जटिल नियम, कानून यह स्थानिकों को परेशान कर जंगल के बाहर निकालने के लिए ही तैयार हुए है ऐसा स्पष्ट है. व्याघ्र और वनविभाग के विरोध में मनुष्य संघर्ष अनेक बार हुआ है. अब लगातार मामले दर्ज होते रहने से और पूरी तरह जंगल पाबंदी ही किए जाने से आदिवासी और स्थानिकों के पुनर्वसन के अलावा पर्याय नहीं है. सेमाडोह में व्याघ्र प्रकल्प की तरफ से सितंबर माह में किए गए सर्वेक्षण में 65 प्रतिशत नागरिकों ने पुनर्वसन को सहमति दर्शायी है.

* सिपना नदी के तट पर सेमाडोह
सेमाडोह गांव अमरावती-बरहानपुर राज्य महामार्ग पर बसा है. कोलकास, हरिसाल, चिखलदरा, हतरु, रायपुर, माखला यह महत्व के गांव जोडने वाला मार्ग, दो भागों में बसे 700 मकानों की 2 हजार की आबादी वाला यह गांव है.

* विकास काम रुके, आर्थिक दुविधा में डाला
संरक्षित क्षेत्र में रही बस्ती में अस्तित्व में रही मूलभूत सुविधा और विकास के काम करने में बढोतरी करना आवश्यक है. तथापि यह काम वन्यप्राणी संरक्षण कानून, 1972 और इस निमित्त से सर्वोच्च न्यायालय के विविध निर्णय के कारण बंद पड गए. कल तक जंगल में घूमने वाले आदिवासी उसी जंगल में गए तो कब्जे में लिया जाता है. इस कारण पहले मवेशियों के लिए खुला रहा जंगल अब कारागृह का रास्ता दिखाने वाला साबित हुआ है.

* वन्यप्राणियों के लिए मनुष्य को बाहर का रास्ता
वन्यप्राणियों के लिए सुरक्षित क्षेत्र निर्मित करने के लिए और वन्यप्राणी-मनुष्य संघर्ष कम करने की दृष्टि से संरक्षित क्षेत्र की मानव बस्ती को अभयारण्य, राष्ट्रीय उद्यान के बाहर पुनर्वसित करने का आवश्यक रहने का शासन निर्णय है. संरक्षित क्षेत्र के गांव का विकास व वन्यजीव संवर्धन का मकसद पूर्ण करने के लिए संरक्षित क्षेत्र के गांव का पुनर्वसन आवश्यक रहने की बात इसमें स्पष्ट है. इसके लिए केंद्र शासन की तरफ से पुनर्वसन के लिए निधि दी जाती है.

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