चूरणी दि.23– झाडू या कह लीजिए बुहारी, प्रत्येक घर में होती है. घर की स्वच्छता के लिए झाडू का उपयोग होता है. उसे लक्ष्मी का स्वरुप माना जाता है. घर का कचरा और गंदगी हटते हीे स्वच्छता, पवित्रता और संपत्ति अपने आप आने की मान्यता है. मगर झाडू बनाने वाले पीढियों से यहीं व्यवसाय कर रहे है. जबकि आज के दौर में उनका झाडू बनाने का व्यवसाय खतरे में पडा है. उनका कहना है कि, पूरा परिवार इसी व्यवसाय पर चलता है. मगर झाडू की कीमत यथोचित अदा नहीं होती. जिससे घर परिवार का खर्च पूरा नहीं पडता. इसलिए वे केवल परंपरा कायम रखने व्यवसाय कर रहे हैं. इस बारे में समाज और शासन को सोचना चाहिए.
* दीपोत्सव पर महत्व
दीपोत्सव पर सामान्यजन सबसे पहले नई झाडू की खरीदी करते हैं. मान्यता है कि, झाडू लाये बगैर दिवाली की खरीदी पूर्ण नहीं होती. ऐसे ही पूर्वजों ने झाडू को लक्ष्मी का स्वरुप देते हुए उसके उपयोग से पहले कुमकुम और हल्दी तथा थोडा जल डालकर पूजन करने की परंपरा रची है. अस्वच्छता रुपी लक्ष्मी को बाहर निकालने की परंपरा आज भी गांव देहातों में कायम है. दिवाली में लक्ष्मी पूजन के दिन झाडू की पूजा का मान रहता है.
* बदली जीवनशैली
जीवनशैली में बडा परिवर्तन आया है. घर छोटे हो गये है. पारंपारिक झाडू का उपयोग अब कम हो रहा है. एक प्रकार से यह उपेक्षित हैं. जिससे आधुनिक दौर में झाडू की मांग कम हो जाने की जानकारी एक वृद्ध कारागिर ने दी. उन्होंने बताया कि, दिवाली से 2 माह पहले ही झाडू बनाकर रखने होते है. घर के अधिकांश सदस्य इसी व्यवसाय में होने से उसकी तरफ समाज और शासन का ध्यान अपेक्षित है.