अमरावतीमहाराष्ट्र

केवल घोषणा तक सीमित है संतरा प्रक्रिया प्रकल्प

एक भी प्रोजेक्ट शुरु नहीं

* सिट्रस इस्टेट अभी अधूरा
अमरावती/दि. 27– वरुड-मोर्शी को संतरा और अन्य फलों के भरपूर उत्पादन के कारण विदर्भ का कैलिफोर्निया कहा जाता था. यहां संतरा प्रक्रिया प्रकल्प की घोषणा गत छह दशकों में चार बार हो चुकी है. बजट में घोषणा के बावजूद अभी एक भी प्रकल्प चालू कंडिशन में नहीं है. उत्पादक किसानों को फल के अच्छे दाम नहीं मिलने से उनकी अवस्था बरसो बरस वैसी ही बनी हुई है. सिट्रस इस्टेट अभी भी अपूर्ण है.

* 1957 में पहला प्रकल्प
अमरावती फ्रुट ग्रोवर इंडस्ट्रीयल लि. कंपनी ने 1957 में शेंदुरजना घाट में पहला प्रकल्प स्थापित किया था. 27 नवंबर 1960 को प्रथम मुख्यमंत्री यशवंतराव चव्हाण के हस्ते उसका उद्घाटन हुआ. यहां से मुंबई, चैन्नई, कोलकाता, कानपुर, बैंगलोर, अमृतसर आदि जगहों पर बोतलबंद संतरा जूस पहुंचा. 1963 तक जिला सहकारी बैंक के सहयोग से यह प्रकल्प शुरु था. बाद में राजकीय असहकार के कारण उद्योग बंद हो गया.

* गव्हाणकुंड प्रकल्प की घोषणा
7 बरस पहले वरुड तहसील के गव्हाणकुंड में संतरा प्रकल्प की घोषणा केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने की थी. उन्होंने नागपुर के मिहान में पतंजलि के प्रकल्प हेतु गव्हाणकुंड में संतरा रस निकालने अ प्रक्रिया का ऐलान किया था, किंतु वह घोषणा हवाहवाई हो गई. अब तक प्रकल्प साकार नहीं हो पाया. जबकि इसके लिए जमीन आवंटित की गई थी.

* तीसरा प्रकल्प 1995 में
वरुड तहसील में सोपेक नामक सहकारी प्रकल्प रोशनखेडा में 1992 में शुरु किया गया था. जो आर्थिक संकट के कारण एक साल में ही बंद हो गया. 1995 में हर्षवर्धन देशमुख ने नोगा शासकीय संतरा प्रकल्प मंजूर करवाया. मायवाडी एमआईडीसी में जर्मन तकनीक की मशीने पहुंची. धूमधडाके से उद्घाटन हुआ. एक भी संतरे का जूस निकाले बगैर प्रकल्प बंद हो गया.

* 20 हजार तक बढ सकता मुनाफा
संतरा उत्पादक नीलेश रोडे ने कहा कि मोर्शी-वरुड तहसील में एक भी प्रकल्प शुरु हुआ तो किसानों को प्रति एकड 20 हजार रुपए तक लाभ बढ सकता है. उन्होंने कहा कि नांदेड में पिछले वर्ष शुरु हुए प्रकल्प में 600 टन संतरा खरीदी की जा रही है. किसानों को 10 से 16 रुपए प्रतिकिलो दाम मिल रहे हैं.

* संतरा प्रकल्प आवश्यक
जिला कृषि अधिकारी राहुल सातपुते ने जिले में संतरा प्रक्रिया प्रकल्प की आवश्यकता पर जोर दिया. उन्होंने कहा कि प्रसंस्करण उद्योग से यहां का संतरा बर्बाद नहीं होगा. वरखेड और चांदूर बाजार में सिट्रस इस्टेट मंजूर हुए हैं. अभी यह पूर्ण क्षमता से शुरु होना बाकी है.

* ओलावृष्टि करती बर्बाद
ओलावृष्टि और बेमौसम बारिश से पहले संतरा का दाम प्रति एकड 70 हजार रुपए रहता है. ओलावृष्टि के बाद व्यापारी उसी संतरे के मुश्किल से 20 से 25 हजार रुपए रेट देते हैं. जिसमें लागत भी वसूल नहीं होती. क्षेत्र के जनप्रतिनिधियों की उदासनीता के कारण आज उत्पादकों पर संतरा मिट्टी मोल बेचना पड रहा है.

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