अमरावती/प्रतिनिधि दि.१८– एक ओर संतरे को भाव नहीं है, वहीं दूसरी ओर संतरा टपकने की समस्या से जिले का संतरा उत्पादक किसान फिर एक बार संकट में पड़ गया है. जिसमें कई संतरा उत्पादक किसान मृग व आंबिया बहार संतरे का उत्पादन लेकर लाखों रूपये की आय प्राप्त करते है. लेकिन गत चार वर्षो से संतरा उत्पादक परेशान हो गया है. संतरा बागों को टपकन का सामना करना पडऩे से संतरे को दाम मिलना मुश्किल हो गया है.
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समस्याओं का अंबार
जिले में मोर्शी, वरूड, चांदुर बाजार, अचलपुर, परतवाडा आदि क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर संतरा उत्पादक किसान फिर एक बार संकट में आ गया है. जिले में कई संतरा उत्पादक किसान मृग व आंबिया बहार संतरे का उत्पादन लेकर लाखों रूपये की आय प्राप्त करते है. लेकिन गत चार वर्षो से संतरा उत्पादक परेशान हो गया है. संतरा बागों को टपकन का सामना करना पडऩे से संतरे को दाम मिलना मुश्किल हो गया है.
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समस्याओं का अंबार
जिले में मोर्शी, वरूड, चांदुर बाजार, अचलपुर, परतवाडा आदि क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर संतरा उत्पादक किसान है. अच्छी क्वालिटी के लिए इन तीन तहसीलों का संतरा प्रसिध्द है. लेकिन गत कुछ वर्षो से संतरा उत्पादक किसान बेमौसम बारिश, ओलावृष्टि तो कभी व्यापारियों के आर्थिक शोषण से परेशान है. लगातार हो रही बारिश के बाद थोडी बहुत राहत मिली है. लेकिन दोबारा शुरू हुई बारिश के कारण तथा मौसम में हुए बदलाव के चलते संतरा बागों का बड़े पैमाने पर टपकन की बीमारी लगी है इसके पूर्व किसानों ने नागपुर के संशोधन केन्द्र में दस्तक देकर इस बीमारी पर इलाज करने के लिए आंदोलन किया था. दो दिन की चांदनी फिर अंधेरी रात के तर्ज पर इस केन्द्र का कामकाज समझ आया. इसलिए किसानों की समस्या का सामना करना पड रहा है. विशेष बात यह है कि व्यापारी भी पगडंडी मार्ग नहीं रहने से खेतों तक जाने क लिए आनाकानी करते है. जिसके कारण किसान भी जिस दाम में बोले उसी दाम में संतरा देने के लिए विवश हो जाता हैे. ४०० से ५०० रूपये कैरेट बेचे जानेवाले संतरे इन दिनों १५० से २०० रूपये कैरेट बेचे जा रहे है. एक ओर जहां संतरे के पेड़ लगाए या जलने दे, ऐसा प्रश्न किसानों के मन में निर्माण हो रहा है. वहीं दूसरी ओर बैंक के कर्ज कहां से अदा करेंगे. इसलिए संतरे की बीमारियों का इलाज ढूंढने का प्रयास किसान कर रहा है.
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कृषि विभाग ने किया निराश
शुरूआत में हजारों संतरे के पेड़ खेतों में दिखाई देते थे. अब वह आधे से भी अधिक कम हो गये है. खेत में जाने के लिए पगडंडी मार्ग नहीं रहने से स्थिति काफी गंभीर हो चुकी है. व्यापारी भी खेत तक जाने के लिए आनाकानी करते है. ऐसे में संतरा कौन खरीदेगा. ऐसा सवाल निर्माण हो रहा है. संतरा फसल को लगी टपकन बीमारी को देखने के लिए कृषि विभाग के अधिकारी भी ध्यान नहीं देते और ना ही नागपुर के संशोधन केन्द्र से राहत मिली है.
सुनील अढाव,
संतरा उत्पादक किसान