अमरावतीविदर्भ

भूल को स्वीकार करना है हमारी संस्कृति

आचार्य भगवंत पूज्य भावचंद्र महाराज ने पिरोए विचार

  • वन जैन प्रोग्राम अंतर्गत एक साथ एक मंच पर

  • अनेक संतो ने मनाया संवत्सरी समूह क्षमा याचना

अमरावती ऑल इंडिया श्वेतांबर स्थानकवासी जैन कॉन्फ्रेंस दिल्ली और बृहद मुंबई वर्धमान स्थानकवासी जैन महासंघ के संयुक्त उपक्रम में लाइव के माध्यम द्वारा संवत्सरी समूह क्षमापना अवसर मनाया गया.

महावीर ने सभी से मैत्री स्थापित कर ली थी. वैसे भी हमें भी करनी चाहिए. चट़्टानों से, पेड से,पर्वतों से, पशु से, पक्षी से मैत्री,सबसे मैत्री भाव हो. ‘श्रमण संघीय आचार्य भगवंत पूज्य श्री शिव मुनि जी महाराज साहब ‘भूल होना प्रकृति है लेकिन भूल को स्वीकार कर लेना संस्कृति है‘ अजरामर संप्रदाय के आचार्य भगवंत पूज्य श्री भावचंद्रजी महाराज साहब पांच प्रकार की क्षमा होती है, उपकार क्षमा,अपकार क्षमा, विपाक क्षमा, वचन क्षमा और धर्म क्षमा‘ गोंडल गच्छ शिरोमणी पूज्य री जसराज जी महाराज साहब ‘क्षमा हमारी ताकत है, जो व्यक्ति क्षमा मांगना और करना जानता है वह इस दुनिया का सबसे सामथ्र्यवान व्यक्ति होता है. युवाचार्य पूज्य श्री महेन्द्र ऋषिजी महाराज साहब चंदन जब स्वंय घिस जाता है तभी उसकी महक चारों और फैल सकती है, जिसने सहन कर लिया वही सर्वोच्च स्थान पर पहुंच सकता है.‘ कच्छ आठ कोटी पूज्य श्री नरेश मुनिजी महाराज साहब ‘अनेकता में एकता इस सिध्दांत को हमें जीवन के आचार विचार में अपना लेना चाहिए. उपाध्याय पूज्य श्री रविन्द्र मुनिजी महाराज साहब ‘जब हम किसी को दु:ख देनेवाला मानते है तब हम उन पर क्रोधित होते है. पर जब हम सामने वाले को उपकारी मानते है तब उनके लिए क्षमा रखना सहज हो जाता है. राष्ट्रसंत परम गुरूदेव श्री नम्रमुनि महाराज साहब.

इस अवसर पर श्रमण संघीय आचार्य भगवंत पूज्य श्री शिवमुनिजी महाराज साहब ने कहा, महावीर ने सभी से मैत्री स्थापित कर ली थी. चट्टानों से, पेड से, पर्वतों से, पशु से, पक्षी से वैसे ही हमें भी सबसे मैत्री स्थपित करनी चाहिए, साथ ही, अजरामर संप्रदाय साथ ही,अजरामर संप्रदाय के आचार्य भगवंत पूज्य श्री भावचंद्रजी महाराज साहेब ने अपने भाव व्यक्त करते हुए कहा,क्षमा मांगने वाला बन जाता है विजेता. भूल होना प्रकृति है. लेकिन भूल को स्वीकार कर लेना संस्कृति है. क्षमा ही धर्म है. जो क्षमा कर सकता है वही तपस्वी होता है। क्षमा ही प्रेम का अंतिम रुप है.

गोंडल गच्छ शिरोमणि पूज्य श्री जशराज जी महाराज साहेब ने पांच प्रकार की क्षमा – उपकार क्षमा, अपकार क्षमा, विपाक क्षमा,वचन क्षमा और धर्म क्षमा का वर्णन करते हुए क्षमा को अपने अंतर में लाने का उपाय बताया। युवाचार्य पूज्य श्री महेंद्र ऋषि जी महाराज साहेब ने हृदय उद् गार व्यक्त करते हुए कहा कि,जिसके अंतर में समझ होती है, सत्य की दृष्टि होती है वहीं वचन क्षमा और धर्म क्षमा कर सकते हैं।

क्षमा का एक फल होता है, प्रतिक्रिया रहित होना। क्षमा हमारी ताकत है, जो व्यक्ति क्षमा मांगना और करना जानता है वह इस दुनिया का सबसे सामर्थ्यवान व्यक्ति होता है। चंदन जब स्वयं घिस जाता है, तब ही उसकी महक चारों और फैल सकती है। जिसने सहन कर लिया वही सर्वोच्च स्थान पर पहुंच जाता है। सहनशीलता की क्षमता जिसमें होती है उसी की क्षमापना सार्थक हो जाती है, पूज्य श्री नरेश मुनिजी महाराज साहेब के यह भाव व्यक्त करने के बाद, अनेकता में एकता इस सिद्धांत को हमें अपने जीवन के आचार विचार में अपनाना चाहिए, यह प्रेरणा जगाते हुए उपाध्याय पूज्य श्री रविन्द्रमुनिजी महाराज साहेब ने अपने भावों की अभिव्यक्ति करते ही उपस्थित देश विदेश के हज़ारो भाविक संतो की ऐसी एकता देखकर जिनशासन के प्रति वंदित अभिवंदित हुए थे।

जिसके जीवन में क्षमा होती है उसके चेहरे पर मुस्कान होती है, इस भावों को व्यक्त करते हुए, राष्ट्रसंत परम गुरुदेव श्री नम्रमुनि महाराज साहेब ने फरमाया की, हमें अपने जीवन का एक मंत्र बना लेना चाहिए इस कान से उस कान चेहरे पर मुस्कान। जब भी किसी की निगेटिव बात सुनने मिले तब इस कान से उस कान चेहरे पर मुस्कान।जब हम किसी को दु:ख देने वाले मानते हैं तब हम उन पर क्रोधित होते हैं, पर जब सामने वाले को उपकारी मानते हैं, तब उनके प्रति क्षमा भाव रखना सहज हो जाता है। ऐसी सहज क्षमा ही हमारे अंदर से आत्मिक विकास का कारण बन जाती है।

लाइव प्रसारण के माध्यम से उपस्थित सभी गुरु भगवंतों द्वारा वी जैन वन जैन अंतर्गत आयोजित किए गए इस संवत्सरी समूह क्षमापना कार्यक्रम के अंत में ऑल इंडिया श्वेतांबर स्थानकवासी जैन कॉन्फ्रेंस, दिल्ली और बृहद मुंबई वर्धमान स्थानकवासी जैन महासंघ के सभी सदस्यों की एकता का दर्शन कराने वाले इस पुरुषार्थ की प्रशस्ति की गई।

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