अमरावती

माता-पिता बच्चों को बाल्यावस्था से नित्यक्रम में हरिनाम पाठ की आदत लगाये

कथावाचक नरेशभाई राज्यगुरु का प्रतिपादन

शुक्रवार को भक्तिधाम मंदिर में शिवपुराण कथा का सातवा दिन
अमरावती -/दि.25  स्थानीय बडनेरा मार्ग पर स्थित भक्तिधाम मंदिर में शिवपुराण कथा की प्रस्तुती हो रही है. शुक्रवार को सातवे दिन शिवपुराण कथा में नरेशभाई राज्यगुरु ने कहा कि, लोक अक्सर कहते है कि, ‘ईश्वर नाम का सुमिरन सारे’ अर्थात संसार में सारे इच्छिक कार्य पूर्ण होने पर वृद्धावस्था में भजन ही तो करना है. इस पर उन्होंने कहा कि, ईश्वर नाम का स्मरण बालकाल्य से ही करना चाहिए. यहीं वह समय होता है जब माता-पिता अपने बच्चों को नित्यक्रम में हरिनाम पाठ की आदत डाल सकते है. माता-पिता बच्चों को बाल्यावस्था से नित्यक्रम में हरिनाम पाठ की आदत लगाये. जिससे बाल्यावस्था से ही बालक नित्यहरिनाम से जूड जाता है. कथावाचक राज्यगुरु ने आगे कहा कि, जिस तरह बचपन में सिखाई गई कविताएं, काहानियां, गणित के पहाडे बच्चों को रटाये जाते है. जिससे वह ढलती उम्र मेें भी नहीं भूल पाता. उसी प्रकार ईश्वर के नाम स्मरण तथा मंत्रोच्चारण को बच्चों को रटाया जाये तो बच्चें भी बाल्यावस्था में ईश्वर की आराधना कैसे करनी चाहिए, यह सीख जाते है. जब यहीं बच्चें युवावस्था मेें पहुंच जाते है, उन्हें स्वस्थ्य विचारों का विशाल भव सागर प्राप्त होता है और वे कभी कुविचारों के मार्ग का क्रमन नहीं करेंगे.
कथावाचक नरेशभाई राज्यगुरु ने उपस्थितो को संबोधित करते हुए कहा कि, मनुष्य को जीवनकाल में चार ऋण लौटाने का पूर्ण प्रयास करना चाहिए. जो हमे जन्म के साथ प्राप्त होते है. पहला कर्ज है देव कर्ज जिसमें ईश्वर की कृपा तथा संचित पुण्य कर्म से ही हमें मानवदेह प्राप्त होता है. वह ईश्वर का आशिर्वाद है. उनका कर्ज हर मनुष्य को उतारना चाहिए. इसके लिए हमें साल में एक बार किसी भी प्रकार का देवकार्य करना चाहिए. छोटे से छोटे यज्ञ, कथा, भवदिय कार्य के माध्यम से भी हम इस कर्ज को लौटाने का प्रयास कर सकते है. दूसरा कर्ज है ऋषि कर्ज हमारे देश में प्राचीन ऋषि मुनियों ने अपने तप, आराधना, कठीन साधना से दैविय ज्ञान प्राप्त किया. ग्रंथों के माध्यम से मनुष्य को कल्याण का मार्ग दिखाया. हमारे आत्मकल्याण का मार्ग प्रशस्त किया, यह उनका कर्ज है. इससे मुक्त होने के लिए हमें ग्रंथों का पठन करना चाहिए. इनमें बताई गई बातों का पालन करने से इस कर्ज से मुक्ति प्राप्त हो सकती है. तीसरा कर्ज से समाज कर्ज समाज में हमारा जन्म हुआ है. उससे ही हमें पहचान मिली है. उस समाज का भी हम पर कर्ज होता है. जहां कहीं भी सामाजिक कार्य हो, वहां समाज की उन्नति के लिए कार्य करें, उसमें अपना सहयोग देकर इस कर्ज को चुका सकते है.
चौथा एवं अंतिम कर्ज है पितृ कर्ज अर्थात जिन माता-पिता ने हमें जन्म दिया है. कष्ट सहन कर हमें पढाया लिखाया है. अपने पैरों पर खडे होने के काबिल बनाया. उनके प्रति कर्ज से हमेें जीवन में कभी भी मुक्ति नहीं मिल सकती, लेकिन वे जब तक जीवित है तब तक उनकी सेवा कर उनका उचित सम्मान करेंगे, तो हमे इस कर्ज से कुछ राहत मिल सकती है. उनके देहांत के पश्चात पूर्वजों को माता-पिता को नित्य स्मरण करें, श्राद्धापक्ष में उन्हें याद करते हुए देवकार्य, श्राद्धकार्य, सामाजिक कार्यों मेंं उन्हें स्मृति में रखे, तो हम उनके कर्ज से मुक्त हो सकते है. कथा के अंत में भगवान गणेश का जन्मोत्सव धूमधाम से मनाया गया. इस अवसर पर दिनेशभाई सेठिया ने महादेव, मयूरबेन सेठिया ने माता पार्वती तथा नैतिक सेठिया ने भगवान गणेश की भूमिका साकार की. कार्यक्रम में उपस्थित भक्तों ने सभी की प्रशंसा की. कथा से पूर्व पूज्य नरेशभाई राज्यगुरु तथा पूज्य हरिशभाई राज्यगुरु के हस्ते लोहाणा परिषद पर्यावरण समिति तथा जलाराम सत्संग मंडल के सहयोग से भक्तिधाम मंदिर में बेलपत्र के पौधे का रोपण किया गया. इस समय पर्यावरण समिति के डॉ. धिरेंद्रभाई आडतिया, डॉ. नंदकिशोर लोहाणा, सुरेशभाई वसानी, मानव बुद्धदेव, धमेंद भाई सागलानी, जलाराम सत्संग मंडल के दिलीप भाई पोपट, हसमुख भाई कारिया, किरीट भाई गढिया, अमृत भाई पटेल तथा कार्यकारिणी के सदस्य उपस्थित थे.

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