अमरावती

श्वसन संबंधी विकार वाले मरीज सतर्कता बरतें

डॉ. अशोक अरबट की सलाह

अमरावती/ दि. 2– दिवाली समारोह खत्म होने के साथ सांस संबंधी समस्याएं होनेवाले लोगों के लिए खुद की देखभाल करने का समय आ गया है. खासतौर पर मौजूदा हालात में जब हवा जहरीली है. प्रदूषित है और हाल ही में फोडे गए पटाखोें से बडे पैमाने पर रसायन निकले है. डॉ. अशोक अरबट, प्रसिध्द प्लमोनोलॉजिस्ट, क्रीम्स हॉस्पिटल, नागपुर ने बताया कि जब मौसम बदलता है तो हमारे शरीर को बदलते वातावरण के अनुकूल होने के लिए समय की आवश्यकता होती है. इस अवधि के दौरान, श्वसन संबंधी बीमारियां बढने लगती है. वायरल बुखार, शरीर में दर्द, सर्दी और अस्थमा का बढना आम हो गया है. जिससे बच्चों और वरिष्ठ नागरिकों पर अधिक गंभीर प्रभाव पड रहा है.

पटाखोें में इस्तेमाल होनेवाले रसायन हमारे स्वास्थ्य को कैसे प्रभावित करते हैं. यदि क्षेत्र में भारी बारिश नहीं होती है या तेज हवाएं नहीं चलती हैं तो नाइट्रस ऑक्साइड हवा में लंबे समय तक बना रहता है. जिससे ग्लोबल वर्मिंग होती है. कॉपर श्वसन तंत्र को परेशान करता है. कैडमियम : रक्त की ऑक्सीजन ले जाने की क्षमता को कम करके एनीमिया की ओर ले जाता है.
जिंक: धातु धुआं बुखार पैदा कर सकता है और उल्टी ला सकता है. लेड: नवर्स सिस्टम को हानि पहुंचाता है. मैग्नीशियम : धातु धुआं बुखार मैग्नीशियम के धुएं के कारण होता है. सोडियम: यह एक अत्यधिक प्रतिक्रियाशील तत्व है और नमी के साथ मिलकर जलने का कारण बनता है, इसके अलावा, वाहनों के दहन, औद्योगिक धुएं, निर्माण गतिविधियों, अपशिष्ट पदार्थोे को जलाने और घर के अंदर के प्रदूषण से पर्यावरण प्रदूषण उपरोक्त प्रदूषण में योगदान देता है.

आतिशबाजी से निकलनेवाले धुएं में हानिकारक तत्व होते है. नतीजतन, सर्दी, खांसी, अस्थमा, सीओपीडी, अंतरालीय फेफडों की बीमारियों वाले मरीज लो लोग कोविड-19 से उबर चुके है और कोविड-19 से संबंधित फेफडे के फाइब्रोसिस वाले व्यक्ति विशेष रूप से इस धुएं के प्रभाव के प्रति संवेदनशील हैं. इस पृष्ठभूमि पर डॉ. अरबट ने ने इस संक्रमणकालीन समय के दौरान श्वसन संबंधी विकारों विशेष रूप से सीओपीडी, अस्थमा और अन्य श्वसन विकारों के रोगियों के जोखिम को कम करने के लिए निवारक उपायों के महत्व पर जोर दिया. उनका कहना है कि व्यक्ति रसायनों के दुष्प्रभावों से लड सकता है और सुरक्षित रख सकता है. उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि शरीर के महत्वपूर्ण अंग फेफडों को सुरक्षित रखा जाना चाहिए.े आगे उन्होंने कहा कि, ऐसे व्यक्तियों को दृढतापूर्वक सलाह दी जाती है कि वे जानबूझकर पटाखों के धुएं से दूर रहे. सीओपीडी और अस्थमा के रोगियों को घर के अंदर की धूल और पटाखों के धुए से दूर रहना चाहिए. एक प्लमोनोलॉजिस्ट के रूप में, वह श्वसन संबंधी विकारों के कारणों के बारे में बहुत जिज्ञासु थे, जिसके परिणामस्वरूप क्रीम्स हॉस्पिटल द्बारा अस्थमा और सीओपीडी का अध्यययन किया गया. बरसात के मौसम से सर्दियों के महीनों के संक्रमण के कारण वातावरण में अधिक बादल छाए हुए है. ये छिटपुट बादल वायुमंडल में ओजोन के स्तर को बढाने में योगदान करते हैं. इससे आंखों में जलन, सांस लेने में कठिनाई और कुछ मामलों में सर्दी, खांसी और बुखार जैसे लक्षण हो सकते हैं. श्वसन संबंधी विकारों वाले मरीज, जिनमें वे लोग भी शामिल हैं. जिनका कोई पूर्व इतिहास नही है, उन्हें भी ऐसी स्थितियों में तीव्रता का अनुभव हो सकता है. इसके अलावा, वातावरण में धुएं को श्वसन संबंधी विकारों के लिए एक अन्य योगदान कारक के रूप में पहचाना गया है.

बार- बार होनेवाली खांसी, सर्दी और अस्थमा, सीओपीडी, इंटरस्टिशियल फेफडे की बीमारी जैसी पुरानी सांस की बीमारियों वाले सभी रोगियों को उनकी सलाह यह है कि सामान्य फ्लू और न्यूमोकोकल संक्रमण के खिलाफ टीकाकरण करवाकर खुद को सुरक्षित रखना चाहिए. यह उन्हें संक्रमण से बचाएगा या बीमारी की गंभीरता को कम करेगा. उन्होने आगे बताया कि इस मौसम में विशेष रूप से श्वसन संबंधी विकारों वाले रोगियों को गर्म कपडे पहनने चाहिए, बाहर जाते समय मास्क का उपयोग करना चाहिए, पर्याप्त पानी पीना चाहिए, पर्याप्त नींद लेनी चाहिए और निश्चित रूप से डॉक्टर के निर्देशों का पालन करना चाहिए. आपातकाल के दौरान नजदीकी अस्पताल में जाकर इलाज कराना चाहिए. जिन मरीजों का पहले से इलाज चल रहा है, उन्हें दवा की खुराक बढानी चाहिए और बचाव के उपाय करना चाहिए. संक्षेप में डॉ. अरबट ने कहा कि हर किसी को अपना ख्याल रखना चाहिए. क्योंकि वातावरण में बदलाव स्थायी रूप से होता है और इससे निपटने के लिए हमें शारीरिक रूप से फीट रहना चाहिए और जब भी आवश्यकता हो अपने डॉक्टर से परामर्श लेना चाहिए.

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