अमरावती

जिले की शिवसेना में नई जान फूंक रहे धाने पाटील

जिला समन्वयक के तौर पर पूरा हुआ छह माह का कार्यकाल

* सभी तहसील व ग्रामीण स्तर पर पार्टी संगठन को दी मजबूती
* ग्रापं चुनाव में कई स्थानों पर पार्टी का शानदार प्रदर्शन
अमरावती/ दि.31 – शिवसेना के पूर्व विधायक ज्ञानेश्वर धाने पाटील के संगठन कौशल्य व नेतृत्व क्षमता को देखते हुए पार्टी ने उन्हें छह माह पूर्व जिला समन्वयक के पद की जिम्मेदारी सौंपी थी. जिसपर पूरी तरह से खरा उतरते हुए पूर्व विधायक धाने पाटील ने जिले की विभिन्न तहसील एवं ग्रामीण शाखाओं के बीच बेहतर समन्वय स्थापित करते हुए नई जान फूंकने का काम किया. जिसके परिणाम विगत दिनों हुए ग्रापं चुनाव में भ्ी दिखाई दिए. जब कई स्थानों पर पार्टी ने शानदार प्रदर्शन किया. विशेष उल्लेखनीय है कि, छह माह पूर्व ही शिंदे गुट ने शिवसेना के खिलाफ बगावत की थी और पार्टी दो धडों में बंट गई थी. ऐसे समय शिवसेना के पार्टी प्रमुख उध्दव ठाकरे के प्रति अपनी पूरी निष्ठा बरकरार रखते हुए जिला समन्वयक के तौर पर पूर्व विधायक धाने पाटील ने अमरावती में पार्टी को एकसंघ बनाये रखने पर जोर दिया. यहीं वजह है कि यहां पर शिंदे गुट का कोई विशेष प्रभाव नहीं दिखाई दिया.
ज्ञानेश्वर धाने पाटील 1990 से शिवसेना के सक्रिय पदाधिकारी रहे है और उन्होंने संगठन की मजबूती के लिए अथक परिश्रम किया है. उपशहर प्रमुख पद के रुप में वर्ष 1990 में पार्टी ने उन्हें पहले जिम्मेदारी सौंपी. पश्चात उन्हें उपजिला प्रमुख बनाया गया. उनके संगठन कौशल्य व नेतृत्व क्षमता को देखते हुए पार्टी ने उन्हें वर्ष 1995 में बडनेरा विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र से विधानसभा की उम्मीदवारी दी और इस चुनाव में शानदार प्रदर्शन करते हुए निर्वाचित हुए. निर्वाचन के बाद उन्होंने अपने विधानसभा क्षेत्र में विकास कार्य के साथ गांव-गांव शिवसेना की शाखाएं खोलकर पार्टी को मजबूत करने का काम जारी रखा. उनके इसी कार्य को देखते हुए पार्टी ने वर्ष 1999 के विधानसभा चुनाव में भी विश्वास जताकर दोबारा उम्मीदवारी दी और वें चुनाव जीते. लेकिन बाद में वर्ष 2004 में धाने पाटील को पराजय का सामना करना पडा. इस चुनाव में राकांपा उम्मीदवार सुलभा खोडके विजयी हुई थी. लेकिन इस हार के बाद ज्ञानेश्वर धाने पाटील ने घर न बैठते हुए पार्टी के प्रति अपनी निष्ठा कायम रखी. पार्टी ने वर्ष 2009 में बडनेरा विधानसभा क्षेत्र से धाने पाटील के स्थान पर सुधीर सूर्यवंशी को उम्मीदवारी दी. इस चुनाव में रवि राणा निर्दलीय के रुप में चुनाव जीते. लेकिन धाने पाटील ने उम्मीदवारी न मिलने पर निराश न होते हुए 18 साल तक लगातार अपना जनसंपर्क कार्यालय शुरू रखा. सभी पदाधिकारी और कार्यकर्ताओं के संपर्क में रहकर उनके लिए वें सेवारत रहे. साथ ही आम नागरिकों से भी उनका संपर्क कायम रहा. इसी कारण छह माह पूर्व उन्हें पार्टी के मुखिया उद्धव ठाकरे ने अमरावती जिला समन्वय की जिम्मेदारी सौंपी. यह पद स्वीकारने के बाद उन्होंने लगातार जिले के दौरे जारी कर कार्यकर्ताओं से मिलना और मार्गदर्शन करने के साथ संगठन को मजबूत करने का काम किया. ऐसे में शिवसेना दो फाड हो गई. एकनाथ शिंदे- देवेंद्र फडणवीस की सरकार राज्य में आने के बाद अनेक लोग बगावत करने लगे. लेकिन धाने पाटील ने उद्धव ठाकरे पर ही विश्वास कायम रखा और पार्टी के अपने सहयोगी पदाधिकारी व कार्यकर्ताओं के साथ संगठन मजबूती के लिए काम जारी रखा. इसी कारण जिले में शिंदे गुट का प्रभाव राज्य के अन्य जिलो की तुलना में नगण्य है. वर्तमान में जिले की विभिन्न तहसीलो में ग्राम पंचायत चुनाव में पराजित उम्मीदवारो से भेंट जारी रखा संगठन को आगे बढ़ाने में धाने पाटील जुटे हुए है.

* लोकसभा चुनाव में मेलघाट की थी जिम्मेदारी
वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में आनंदराव अडसूल ने ज्ञानेश्वर धाने पाटील के संगठन कौशल्य को देखते हुए मेलघाट की जिम्मेदारी सौंपी थी. इस चुनाव के पूर्व मेलघाट से शिवसेना हमेशा पिछडी रहती थी और 30 से 35 हजार मतो का जो अंतर रहता था. वहां धाने पाटील ने संपर्क प्रमुख रहते गांव-गांव के दौरे कर कार्यकर्ता और पदाधिकारियों की सहायता से मतो का अंतर केवल 10 हजार तक पहुंचा दिया. इस चुनाव अडसूल चुनाव हार गए. लेकिन पाटील के इन कार्यो को देखते हुए विधानसभा चुनाव में उन्हें तिवसा की जिम्मेदारी सौंपी गई. जहां वें शिवसेना प्रत्याशी राजेश वानखडे के निर्वाचन के लिए प्रयासरत रहे. उनकी जगह-जगह बैठक और अथक प्रयासो के कारण वानखडे केवल पांच हजार मतो से पराजित हुए. शिवसेना इस चुनाव में दूसरे स्थान पर रही. जबकि एड. यशोमती ठाकुर ने यह चुनाव जीत लिया.

* विरोधियों को मुंहतोड जवाब देनेवाले एकमात्र नेता
राज्य में उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में महाविकास आघाडी सरकार रहते उद्धव ठाकरे पर जब राज्य के अनेक नेता और राणा दंपति ने मोर्चा खोला था तब ज्ञानेश्वर धाने पाटील ने उन्हें समय-समय पर मुंहतोड करारा जवाब दिया. हनुमान चालीसा के मुद्दे पर जब राज्य में राजनीति काफी गरमा गई थी तब अमरावती में शिवसेना के राणा दंपति के विरोध में आक्रामक आंदोलन चलते रहे. पश्चात शिवसेना दो धडो में बंटने के बावजूद जिले में इसका कोई खासा असर नहीं दिखाई दिया.

* विधायक रहते मनपा-जिप पर भी रहती थी नजर
ज्ञानेश्वर धाने पाटील वर्ष 2004 तक शिवसेना के विधायक रहे. उस समय मनपा में शिवसेना के 18 और जिला परिषद में 13 सदस्य थे. लेकिन बाद में 11 पश्चात 8 और उसके बाद मनपा में केवल शिवसेना के 7 सदस्य रहे. इस तरह मनपा सहित जिले के स्थानीय स्वराज्य संस्थाओं में शिवसेना का वर्चस्व कम दिखाई देने लगा. पार्टी के कम होते ग्राफ को देखते हुए नेतृत्व ने छह माह पूर्व उन्हें जिला समन्वयक के रुप में नियुक्ति कर संगठन में जान फूंकने और मजबूती प्रदान करने जिम्मेदारी सौंपी है. जिसे वें पूरी निष्ठा से संभालते हुए पार्टी को आगे बढ़ाने में जुटे है. छह माह में उन्होंने यह कर भी दिखाया है.

* आगे भी संगठन का काम करने के इच्छुक
पूर्व विधायक तथा जिला समन्यवक ज्ञानेश्वर धाने पाटील का कहना था कि उनका पार्टी के नेता उद्धव ठाकरे पर पूर्ण विश्वास है. बलासाहब की सही हिंदुत्ववादी पार्टी उद्धव ठाकरे की शिवसेना ही है. इसी कारण विदर्भ में शिंदे गुट का प्रभाव नहीं है. आगामी स्थानीय स्वराज्य संस्था के चुनाव में उनकी पार्टी का प्रदर्शन शानदार रहेंहा ऐसा उन्होंने विश्वास जताया है और अब नववर्ष से सामाजिक, राजनीतिक क्षेत्र में और भी मजबूती से काम करते हुए संगठन को आगे ले जाने का मानस है. जनसंवाद यात्रा के माध्यम से जिले की हर तहसील में बैठको का दौर जारी है. जहां अपनी आक्रामक शैली में कार्यकर्ताओं से मुलाकात व मार्गदर्शन कर पार्टी को मजबूती प्रदान करने में वें जुटे हुए है.

* हर जिम्मेदारी को तैयार
ज्ञानेश्वर धाने पाटील का कहना था कि वह पार्टी नेतृत्व आगे जो भी जिम्मेदारी देंगी उसे स्वीकारने तैयार है. वह पार्टी का जिले में विस्तार और मजबूती प्रदान करने कोई भी जिम्मेदारी लेने तैयार है.

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