अमरावती/दि.1 – देशभक्ति गीत और काव्य रचना की परंपरा देशवासियों के लिए प्रेरणादायी है. इन्हें सुनकर देशभक्ति की भावना जागृत होती है, ऐसा प्रतिपादन नागपुर के वक्ता प्रा. राजेंद्र नाईकवाडे ने किया.
स्थानीय नगर वाचनालय में लोकमान्य तिलक व्याख्यानमाला जारी है. इस व्याख्यानमाला के 6वें दिन मराठी काव्य रचना में देशभक्ति का रंग इस विषय पर व्याख्यान का आयोजन किया गया. ग्रंथालय के सचिव रवि पिंपलगावकर की अध्यक्षता में सीमा नाईकवाडे, विनायक खोलकुटे, निलकंठ निंबालकर, किशोर बुरंगे, डॉ. सुरेश चापोरकर, गिरीष पाटील, राजेंद्र वाईकर, सतिश जयस्वाल, अशोक कारंजकर, दादाराव रेचे, जगदिश साइसीकमल, अनिल अटालकर, राजेश तायडे, धनराज पुनसे, सुधाकर चौधरी, सुरेंद्र देशमुख, अजिंक्य कावरे, मधुकर किनगे, सुभाष पाटील समेत कई मान्यवर व्याख्यान में उपस्थित थे. प्रा. राजेंद्र नाईकवाडे ने कहा कि, देशभक्ति के काव्य की शुरुआत स्वतंत्रवीर विनायक दामोदर सावरकर से हुई. वर्तमान में शिरीष देशपांडे देशभक्ति पर मराठी गीतों की रचना कर रहे है. कुसूमाग्रज, साने गुरुजी, वसंत बापट, सुरेश भट्ट ने भी देशभक्ति पर गीत लिखे है. स्वतंत्रता पूर्व कार्यकाल में देशभक्ति की भावना में प्रखरता और आक्रमकता दिखाई दे रही थी. आझादी के बाद सामाजिक और विधायक रुप देखने मिल रहा है. प्यार की सीमाएं जैसी बढती जाती है, उसी प्रकार देशभक्ति की सीमा भी निरंतर बढती रहती है. संस्कृति व देश के प्रति भक्तिभाव से काव्य की निर्मिति होती है. उस समय जनजागृति और देशभक्ति का जस्बा निर्माण करने कविता और गीत लिखे जाते थे. लेकिन कुछ समय बाद उन गीतों को लेखने वाले गीतकार कम होते गये. रविंद्रनाथ टैगोर, सुभद्राकुमारी चव्हाण जैसे कवियों ने देशभक्ति की भावनाओं को बढाया, जो आज भी बरकरार है. लेकिन उसके जनक के रुप में स्वातंत्रवीर सावरकर को भी सम्मान प्राप्त हुआ है.