अमरावतीमहाराष्ट्र

लगभग 40 से 50 हजार टन संतरों का ढेर

संतरा उत्पाक किसानों का भविष्य अधर में

* बांग्लादेश का संतरा लेने से इंकार
* बाजार में इतने संतरों की मांग नहीं
अमरावती/दि.6– विदर्भ के संतरा उत्पादकों के 40 से 50 हजार टन संतरे के ढेर पडे रहने से तथा बाजार में इतनी भारी संख्या में संतरों की मांग न रहने से संतरा उत्पादकों का भविष्य अधर में है. संतरे पर प्रक्रिया करने का कोई भी कारखाना अब तक विदर्भ में निर्माण नहीं हुआ है. आश्वासन अनेक मिले, संतरा उत्पादकों के सम्मेलन भी संपन्न हुए, लेकिन इससे संतरा उत्पाकों के हाथ कुछ नहीं लगा है.
बांग्लादेश यह संतरा खरीदी करने वाला बडा ग्राहक था, लेकिन उन्हें भारत सरकार ने प्याज की आपूर्ति नहीं की. इस कारण उन्होंने संतरे पर प्रतिकिलो 88 रुपए कस्टम ड्यूटी लगाते हुए संतरा खरीदी को इंकार कर दिया. इस कारण विदर्भ का संतरा वैसा ही पडा है. संतरे के भाव भी गिरने से इतनी बडी संख्या में पडे संतरों का क्या करना, यह प्रश्न कर संतरा उत्पादकों के सामने निर्माण हुआ है. संतरा उत्पादकों को दिए आश्वासन से पेट नहीं भरा जा सकता. यह फिर से एक बार सिद्ध होने से संतरा उत्पादक किसानों की आरपार की लडाई शुरु हुई है. इसी के चलते वरुड-मोर्शी तहसील के संतरा उत्पादक किसानों ने अपना रोष तहसील कार्यालय के सामने सडक पर संतरा फेंककर व्यक्त किया. लेकिन यह व्यथा अथवा असंतोष किसी भी जनप्रतिनिधि के जरिए शासन तक पहुंचती दिखाई नहीं देती. एक दशक पूर्व देश में सबसे ज्यादा संतरा उत्पादन लेने वाला महाराष्ट्र यह देश में 10वें स्थान पर पहुंच गया है. इसके पीछे संतरा उत्पादकों की समस्या किसी ने समझकर उस पर हल निकालने का प्रयास नहीं किया.

संतरे को लेकर फिलहाल जो व्यवस्था है, वह संतरा पैकिंग कर भेजने तक ही मर्यादित है. मांग होगी तो ही संतरा भेजा जाएगा, लेकिन मांग ही नहीं है इस कारण संतरा उत्पादक किसान काफी मुसिबत में है. यह परेशानी लगातार जारी रहने से विदर्भ में संतरा उत्पादन क्षेत्र तेजी से कम हो रहा है. 90 के दशक में विदर्भ में संतरा उत्पादन क्षेत्र 3 लाख हेक्टेयर था. इतने क्षेत्र में करीबन ढाई करोड संतरा पेड थे. अब यह क्षेत्र घटकर डेढ लाख हेक्टेयर तक पहुंच गया है. पिछले दशक से बदलते मौसम का असर संतरा उत्पादक किसानों को हो रहा है. 2004-05 में बारिश काफी कम होने से करीबन 40 से 50 हजार संतरा पेड तोडे गए थे. वर्तमान सत्र में संतरे गिरने से संतरा उत्पादक किसान संकट में आ गया है. उन्हें शासकीय सहायता का कोई भी आधार नहीं है. संतरा उत्पादकों पर उनके संतरा बगीचे संभालने के साथ अनेक संकटों का सामना करना पड रहा है. वरुड क्षेत्र में जलस्तर काफी नीचे पहुंच गया है. कुल मिलाकर देश-विदेश में विख्यात रहा विदर्भ का यह संतरा नामशेष रहा तो कुछ नया नहीं होगा, ऐसा अब संतरा उत्पादक किसान कहने लगे हैं.

* अन्य राज्य में संतरे का उत्पादन
महाराष्ट्र, पंजाब, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, राजस्थान, ओडिशा, पश्चिम बंगाल आदि 15 राज्यों में संतरा उत्पादन लिया जाता है. पंजाबर में करीबन 47 हजार 100 हेक्टेयर क्षेत्र में संतरा उत्पादन लिया जाता है. वहां की संतरा उत्पादकता प्रति हेक्टेयर 23.40 टन है. वहां का संतरा किन्नो नाम से पहचाना जाता है. लेकिन रंग और स्वाद बाबत किन्नो यह नागपुरी के पीछे है. मध्य प्रदेश के संतरा उत्पाद की क्षमता प्रति हेक्टेयर 17.37 टन है. मध्य प्रदेश में 8 लाख 94 हजार टन संतरा उत्पादन हुआ. महाराष्ट्र का संतरा उत्पादन औसतन 8 लाख टन है.

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